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स्मार्टफोन में NavIC अनिवार्य, अमेरिकी GPS को भारत का गुडबाय

NavIC बदलेगा खेल के समीकरण!

Prashant Srivastava द्वारा Prashant Srivastava
30 September 2022
in तकनीक
NavIC
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समय स्वयं में एक अद्भुत चमत्कार लिए हुए है और वह चमत्कार है बदलने का, समय का बदलना भले ही आपको सामान्य प्रक्रिया लगे किंतु उसका प्रभाव सदा मूल्यवान होता है। यह समय और भारत का अथक परिश्रम ही है कि आज भारतवर्ष की ठसक विश्व पटल पर है। भारत ने रुकने-झुकने एवं सहने की नीति का पूर्णतः त्याग कर दिया है। वह विकास के पथ पर अग्रसर होकर नयी-नयी विकास गाथाएं लिखता जा रहा है। लगभग सभी क्षेत्रों में विकास कर रहा भारत क्या अर्थव्यवथा, क्या रक्षा, क्या बुनियादी ढांचा और क्या अंतरिक्ष, इन क्षेत्रों में जिस वृद्धि दर के साथ वह आगे बढ़ रहा है वह पूरी दुनिया को स्तब्ध कर रहा है।

वर्तमान में सभी विकसित एवं विकासशील देश भारत से बेहतर रिश्ते चाहते हैं, इसी क्रम में एक तरफ जहां रूस भारत को अपने पक्ष में करने के लिए लुभावना ऑफर दे रहा है तो वहीं दूसरी तरफ अमेरिका भी भारत को अपने पक्ष में करने के लिए अनेक चालें चल रहा है, किंतु इतिहास के पृष्ठों को हम टटोलेंगे तो पाएंगे कि अमेरिका ही वह देश हैं जिसने अवसर मिलने पर भारत का उपहास उड़ाने का कोई अवसर अपने हाथ से जाने नहीं दिया है।

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अमेरिका द्वारा उपहास का बदला

याद करिए वो दौर जब भारत खाद्य संकट से जूझ रहा था और हमारे देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अमेरिका से खाद्यान लाने गई थीं, किंतु अमेरिका ने उपहास उड़ाते हुए भारत को सार्वजनिक कानून 480 के तहत अमेरिका से गेहूं आयात करने की आज्ञा दे दी। इस कार्यक्रम को फ़ूड फ़ॉर पीस” कार्यक्रम भी कहा जाता है। इसके अंतरगत जो गेहूं भारत लाया गया वह इतने घटिया गुड़वत्ता का गेहूं था कि उसे अमेरिका में लोग अपने पालतू जानवरों को खाने में खिलाते थे। एक वह दिन और एक आज का दिन है, उस दिन भारत ने सौगंध उठाई थी कि आज के बाद वह कभी भी किसी अन्य देश से गेहूं एवं चावल जैसे अनाज उधार के तौर पर नहीं लेगा और हुआ भी ऐसा ही। भारत में हरित क्रांति की जो लहर चली उसने भारत को खाद्यान के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बना दिया।

इसी प्रकार अमेरिका के ओछेपन की एक दूसरी कहानी है वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध की। कारगिल युद्ध में पाकिस्तान भारत से ऊंचाई वाले क्षेत्र में था, जिसक वह पूरा लाभ उठा रहा था। उस समय भारत ने अमेरिका से जीपीएस को लेकर सहायता मांगी थी, किंतु अपने नाजायज़ लड़के के प्रेम में पगलाए अमेरिका ने भारत को अंगूठा दिखा दिया था। हालांकि भारत के वीर सपूतों ने फिर भी पाकिस्तनियों को धूल चाट दी थी किंतु जीपीएस की कमी को भारत ने अच्छे से महसूस किया था, तत्पश्चात् भारत ने यह निर्णय कर लिया था कि वह भी आने वाले समय में नेविगेशन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन के रहेगा। इसी का परिणाम है Indian Regional Navigation Satellite System यानी NavIC.

दरअसल, वर्ष 2006 में भारत सरकार ने इसे अपनी स्वीकृति दी थी, इसी क्रम में 28 मई, 2013 को, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने परियोजना के एक भाग के रूप में अपने डीप स्पेस नेटवर्क (डीएसएन) के भीतर एक नई सुविधा खोली। जिससे देश अपने स्वयं के नेविगेशन प्रणाली को प्राप्त करने के क्रम में आगे बढ़ा।

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वर्तमान में 8 उपग्रह शामिल हैं

वस्तुतः इसरो द्वारा खोले गए डीप स्पेस नेटवर्क के अंतर्गत देशभर में 21 रेंजिंग स्टेशनों का एक नेटवर्क उपग्रहों के कक्षीय निर्धारण और नेविगेशन सिग्नल की निगरानी के लिए डेटा प्रदान करेगा। जबकि तीन उपग्रह हिंद महासागर की भूस्थिर कक्षा में हैं, कम ऊंचाई की स्थिति में उनका स्थान कम झुकाव वाले उपग्रहों की सुविधा प्रदान करेगा। NavIC में वर्तमान में 8 उपग्रह शामिल हैं जो क्रमशः निम्न हैं- IRNSS-1A, IRNSS-1B, IRNSS-1C, IRNSS-1D, IRNSS-1E, IRNSS-1F, IRNSS-1G, IRNSS-1I ॥

प्रत्येक उपग्रह की लागत लगभग $20 मिलियन है जबकि जमीनी खंड की लागत $40 मिलियन है, इस प्रकार संचयी लागत US $189 मिलियन हो जाती है। प्रारंभ में, NavIC में सात उपग्रह और दो बैकअप उपग्रह होने चाहिए थे। हालांकि, पहले उपग्रह IRNSS 1A की परमाणु घड़ी ने काम करना बंद कर दिया और IRNSS 1H को लॉन्च के समय दोषपूर्ण पाया गया। उसके बाद बैकअप उपग्रहों के मांग बढ़ने और पीएसएलवी-एक्सएल की अचानक लॉन्च ने मूल बजट को बदल दिया। भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAGI) ने सरकार को जो लागत के बारे में बताया था वह $ 298 मिलियन था।

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GPS V/S NavIC

एक ओर जहां ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम पूरे विश्व की निगरानी करता है और इसका स्वामित्व संयुक्त राज्य अमेरिका के पास है। इस प्रणाली को लगभग 24 परिचालन उपग्रहों की आवश्यकता है और इसके कक्षा में 31 उपग्रह हैं। सभी 55 उपग्रह भू-समकालिक उपग्रह हैं, जिसका अर्थ है कि वे परिक्रामी पृथ्वी के संबंध में अंतरिक्ष में स्थिर नहीं रहते हैं। इसके अलावा जीपीएस एकल आवृत्ति का उपयोग करता है जो अधिक जटिल है तो वहीं दूसरी ओर भारत के NavIC में चार जियोसिंक्रोनस और तीन जियोस्टेशनरी सैटेलाइट हैं। चूंकि इन सभी उपग्रहों को उच्च कक्षा में स्थापित किया गया है इसलिए अवरोध की संभावना कम है। GPS की तुलना में, NavIC में दो फ्रीक्वेंसी बैंड, L5 बैंड और S-बैंड का उपयोग किया गया है जिससे सिस्टम अधिक सटीक और विश्वसनीय हो जाता है।

जहां तक ​​सटीकता का संबंध है तो GPS की तुलना में NavIC की सटीकता दर बहुत अच्छी देखने को मिलती है। इस प्रणाली को भारतीय भूभाग पर 10 मीटर से कम और हिंद महासागर में 20 मीटर से कम की पूर्ण स्थिति सटीकता प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इसके अलावा यह 1,500 किमी से अधिक के विस्तार वाले क्षेत्र को भी कवर करेगा। 2017 में अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र ने कहा कि नाविक जीपीएस द्वारा पेश किए गए 20 से 30 मीटर की तुलना में 5 मीटर के अपने उपयोगकर्ताओं को सटीक स्थिति सेवा प्रदान करेगा।

इसे मोबाइल टेलीफोनी मानकों के समन्वय के लिए एक वैश्विक निकाय, तीसरी पीढ़ी की भागीदारी परियोजना (3GPP) द्वारा प्रमाणित किया गया है। साथ ही इसे 2020 में हिंद महासागर क्षेत्र में संचालन के लिए वर्ल्ड वाइड रेडियो नेविगेशन सिस्टम (WWRNS) के एक भाग के रूप में अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) द्वारा मान्यता भी दी गयी थी इसी क्रम में इसरो स्वदेशी परमाणु घड़ियों और नेविगेशन सेवाओं में वृद्धि के साथ आईआरएनएसएस उपग्रहों की अगली पीढ़ी के निर्माण के लिए कार्य कर रहा है।

और पढ़ें- इसरो द्वारा विकसित सैटेलाइट चीन और पाक का बनने जा रहा है सबसे बुरा सपना

NavIC का महत्व

इसके महत्व की बात करें तो यह 2 सेवाओं के लिए वास्तविक समय की जानकारी देता है अर्थात नागरिक उपयोग के लिए मानक स्थिति सेवा और प्रतिबंधित सेवा जिसे सेना के लिए अधिकृत उपयोगकर्ताओं के लिए एन्क्रिप्ट किया जा सकता है। इसी के साथ-साथ NavIC का प्रयोग स्थलीय, हवाई और समुद्री नेविगेशन, आपदा प्रबंधन, वाहन ट्रैकिंग और बेड़े प्रबंधन (विशेषकर खनन और परिवहन क्षेत्र के लिए) मोबाइल फोन के साथ एकीकरण एवं मैपिंग और जियोडेटिक डेटा कैप्चरिंग इत्यादि के लिए किया जा सकेगा।

शीर्ष के देशों में शुमार भारत

इसी क्रम में भारत उन 5 देशों में से एक बन गया जिनके पास अपना स्वयं का नेविगेशन सिस्टम है जैसे ‘यूएसए का जीपीएस’, रूस का ग्लोनास, यूरोप का गैलीलियो और चीन का बेईडौ। इससे नौवहन उद्देश्यों के लिए अन्य देशों पर भारत की निर्भरता कम हो जाती है। यह भारत में वैज्ञानिक तकनीकी प्रगति में मदद तो  करेगा ही साथ ही यह देश की संप्रभुता और सामरिक आवश्यकताओं के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है।

अप्रैल 2019 में, सरकार ने निर्भया मामले के फैसले के अनुसार देश के सभी वाणिज्यिक वाहनों के लिए NavIC- आधारित वाहन ट्रैकर्स को अनिवार्य कर दिया साथ ही क्वालकॉम टेक्नोलॉजीज ने NavIC का समर्थन करने वाले मोबाइल चिपसेट का अनावरण भी किया है। इसके अलावा व्यापक कवरेज के साथ, परियोजना के भविष्य के उपयोगों में से एक में सार्क देशों के साथ परियोजना को साझा करना शामिल है। इससे क्षेत्रीय नौवहन प्रणाली को और एकीकृत करने में मदद मिलेगी और इस क्षेत्र के देशों के प्रति भारत की ओर से कूटनीतिक सद्भावना का संकेत मिलेगा।

और पढ़ें- ISRO के वैज्ञानिक ने किया चौकाने वाला खुलासा, ‘मुझे जहर दिया गया’, कौन बनाना चाहता है इसरो को निशाना?

पूरे भारतीय उपमहद्वीप में NavIC एक महत्वपूर्ण नैविगेशन प्रणाली के रूप में विकसित होकर सामने आएगा। अन्य देश जैसे नेपाल, भूटान, म्यांमार, बांग्लादेश इत्यादि देश भी आने वाले समय में NavIC का उपयोग करेंगे जिससे भारत चाहे तो इसकी सरविस बेचकर पैसे भी कमा सकता है, अपितु इसकी सरविस मुफ़्त देकर भारत इन देशों के साथ अपने सॉफ़्टपावर को भी बढ़ा सकता है जो समय पड़ने पर अनेक मंचों पर इन देशों द्वारा भारत के पक्ष में समर्थन के रूप में दिखायी देगा।

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Tags: GPS V/S NavICग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम
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