“हाँ मैं रावण हूँ, आते हैं मुझे सब जलाने, पर वापस कितने राम हैं जाते, मैंने सीता को पाक था रखा, हैं कितने ज्ञाने ये समझने वाले?” सोशल मीडिया पर ऐसी बकवास आपने बहुत देखी और सुनी होगी। इस बारे में तो पहले ही बहुत चर्चा हो चुकी है पर इसी को आधार बनाकर रावण को त्रिविक्रमी, चक्रवर्ती और विश्व विजेता जैसे न जाने कितने उपाधियों से सुशोभित किया जाता है। देखो मित्रों, हम भारतीयों की एक आदत, हम निकृष्ट से निकृष्ट वस्तु में भी कुछ न कुछ अच्छाई ढूंढ निकालते हैं, परंतु इसका अर्थ ये तो नहीं है न कि हम दानव, राक्षस को भी दैवतुल्य या ईश्वर ही बना दें। इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे रावण न तो त्रिविक्रमी था, न ही कोई विश्व विजेता और वह चक्रवर्ती तो कतई नहीं था। रावण कायर था।
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एक अत्याचारी शासक
कहते हैं कि रावण बड़ा गुणी था, और बलवान भी। हो भी सकता है, वो था भी तो दानवी कैकसी एवं ऋषि विश्रवा का पुत्र। अब बंधुवर ने ब्रह्मदेव को प्रसन्न करने हेतु कठोर तपस्या की, अमरत्व हेतु। इसलिए नहीं कि जन कल्याण करना था, परंतु इसलिए कि उन्हें बनना था दद्दा, यानी आम शब्दों में एक अत्याचारी शासक। परंतु उसकी हवा एक नहीं अनेक लोगों ने निकाली थी और अभी तो हमने श्रीराम और उनके अनन्य भक्त हनुमानजी का उल्लेख भी नहीं किया है।
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ब्रह्मदेव से वरदान मिलने के पश्चात रावण में काफी अभिमान भर आया था। वह विचरण करते हुए युवावस्था में एक समय किसी प्रांत में गया। उसने देखा कि नदी का जल इतना कम कैसे है, जबकि पहले तो इसमें बहुत जल भरा हुआ करता था। फिर साथियों ने थोड़ा आगे बढ़कर देखा तो एक बांध दिखायी दिया जिसमें नदी का समस्त जल रोका गया था और बांध को बाणों से बनाया था। तब रावण के साथियों ने उसको बताया कि, किसी ने अपनी अद्भुत धनुर्विद्या के प्रयोग द्वारा बाणों से बांधकर जल को रोका है।
वो सब आगे बढ़े, उन्हें कुछ शस्त्रधारी सुरक्षा में लगे सैनिक दिखे। रावण ने पूछा कौन हो और ये बांध किसने बनाया है? स्थानीय लोगों से ज्ञात हुआ कि ये बांध कार्तवीर्य अर्जुन ने बनाया है, जिन्हें कुछ लोग सहस्त्रबाहु अर्जुन भी कहते हैं। रावण ने फिर कुछ ऐसा किया कि सहस्त्रबाहु क्रोध से लाल पीले हो गए। हुआ यह कि रावण ने उक्त बांध को ध्वस्त कर दिया जिससे सहस्त्रबाहु की अनेकों पत्नियां भी बह गई।
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सहस्त्रबाहु और रावण का युद्ध
इस बात पर सहस्त्रबाहु और रावण का युद्ध हो गया, जिसमें रावण पराजित हुआ और उसे बंदी बनाया गया। उसके साथी भाग गये और रावण के दादा जी मुनि पुलस्त्य को बताया गया तब उन्होंने सहस्त्रबाहु अर्जुन के पास संदेश भेजा कि रावण युवक है और युवावस्था में भूल की सम्भावना हो जाती है इसलिए उसे छोड़ दो। अर्जुन ने उसे इस शर्त पर छोड़ा कि वह वह ब्राह्मण है और उसके लिए ब्रह्महत्या पाप समान है।
परंतु जो अपनी भूल से सीखे, वो रावण कहां? इन्द्र से विजयी होने के पश्चात रावण को एक बार पता चला कि वानर उसका आधिपत्य नहीं मानते। वह तुरंत उन्हें पराजित करने निकल पड़ा। उस समय वानरों का राजा बालि एक वृक्ष के नीचे संध्या वंदन कर रहे थे। रावण उसे देख कर हंस पड़ा और फिर उसे छेड़ने लगा और युद्ध करने के लिए उकसाने लगा। परंतु बालि ध्यान में लीन था इसलिए उसने रावण को घास तक नहीं डाली। क्रोध में रावण ने उसको जोर से लात मारी और बोला, “पाखंडी, मेरे ललकारने के बाद मेरे डर से ध्यान में बैठा है, सीधे-सीधे बोल कि मैं नहीं लड़ सकता”।
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रावण कायर था
पूजन भंग होने पर बालि क्रोध से ऊबल पडा और उसने रावण को पटक-पटक कर इतना मारा कि वह मरणासन्न मुद्रा में पड़ा था। तद्पश्चात उसे अपनी पूंछ में बांधकर लपेट लिया। पुन: संध्या वंदन समाप्त करके उसने रावण के गर्व को चूर-चूर कर दिया। इतना ही नहीं छ: महीने तक बालि ने उसे अपनी कैद में रखा। एक दिन उसे अपने बाएं हाथ से उसको अपनी कांख में दबाकर बालि जा रहा था तभी उसके हाथ की पकड़ ढीली हो गयी और रावण भाग निकला, वह ऐसा भागा की दिखाई नहीं दिया। तब रावण को पता चला कि उससे भी बलशाली लोग हैं यानी जो बातें सोशल मीडिया पर फैलाई जाती है कि रावण बड़ा वीर था, ऐसा कुछ नहीं है। रावण सबसे बड़ा कायर था।
ये तो हुई सहस्त्रबाहु और बाली की बात, और अभी तो हमने पवनपुत्र हनुमान, अंगद और श्रीराम पर प्रकाश भी नहीं डाला है। पवनपुत्र हनुमान ने निजी तौर पर रावण को कोई क्षति नहीं पहुंचाई, परंतु उसकी सोने की लंका का क्या हाल किया इस पर कोई शोध की आवश्यकता नहीं। इसके अतिरिक्त श्रीराम के साथ जब युद्ध हुआ तो प्रथमत्या रावण को उन्होंने शस्त्रहीन कर दिया, और अवसर होने के बाद भी उन्होंने केवल इसलिए जाने दिया, क्योंकि श्रीराम के लिए निहत्थे को युद्ध में मारना शास्त्र विरुद्ध है।
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