अंग महाजनपद: भारत का प्राचीन इतिहास शौर्य गाथाओं, किस्से-कहानियों और समृद्धि से भरा हुआ है। वर्तमान समय में उपलब्ध प्राचीन काल के किसी भी ग्रंथ को उठाकर देखें तो हमें कई ऐसे साम्राज्य देखने को मिलेंगे, जहां शासन व्यवस्था से लेकर वाणिज्य, सेना और सामाजिक व्यवस्थाएं सभी उस स्तर की होती थी, जैसी आज के किसी शहर में होती हैं। आज हम अपने इस लेख में प्राचीनकाल के एक अंग साम्राज्य के बारे में चर्चा करेंगे।
अंग साम्राज्य प्राचीन काल में महाजनपदों में से एक था। छठवीं शताब्दी ईसा पूर्व में भारत कुल 16 महाजनपदों में विभाजित हुआ करता था। अंग साम्राज्य अपनी संपन्नता और वैभव के लिए जाना जाता था। ये मगध साम्राज्य का प्रतिद्वंद्वी राज्य था। अंग महाजनपद का क्षेत्र बिहार के भागलपुर के समीपवर्ती क्षेत्र में स्थित था और इसकी राजधानी चंपा हुआ करती थी। व्यापारिक दृष्टि से देखा जाए तो ये काफी महत्वपूर्ण राज्य था। अंग राज्य के बारे में अथर्वेद, बु्द्ध ग्रंथ अंगुत्तरनिकाय और महाभारत में उल्लेख मिलता है।
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शहरीकरण का केंद्र था अंग
16 महाजनपदों के बारे में बताया जाता है कि सिंधु घाटी सभ्यता के बाद भारत में इनके द्वारा ही शहरीकरण हुआ था। असल में कहा जाए तो प्राचीन काल के अंग और दूसरे महाजनपद वे राज्य थे जिनके द्वारा भारत का पूर्वी भाग खासकर बिहार राजनीति और अर्थव्यवस्था के केंद्र के रूप में उभरकर सामने आया। यही नहीं 16 महाजनपदों के काल में लोहे से बने औजार और शहरीकरण का विकास बड़े पैमान पर हुआ था।
अंग राज्य चंपा नदी के किनारे पर फला-फूला था। इसे गंगा का डेल्टा भी कहा जाता है और यहां बड़े पैमाने पर मिट्टी की उर्वरक होती है। गंगा डेल्टा वाले क्षेत्र के लिए कहा जाता है कि यहां के लोग किसी भी चीज को अपने खेतों में छिटक दें बस उसके बाद तो गंगा मिट्टी संभाल लेगी। आज के समय में भी यह इलाका धान की खेती के लिए जाना जाता है। इसलिए इस बात में कोई शंका नहीं होनी चाहिए कि प्राचीन समय में यह राज्य कृषि और व्यापारिक दृष्टि से काफी ज्यादा महत्वपूर्ण राज्य था। यही नहीं इसकी समृद्धि के चलते पड़ोसी राज्य मगध ने कई बार इस पर आक्रमण भी किया था।
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महाभारत में महत्व
महाभारत और रामायण में अंग प्रदेश का बड़ा महत्व रहा है। बताया जाता है कि धृतराष्ट्र ने अपने बेटे दुर्योधन को यह राज्य उपहार में दिया था और बाद में दुर्योधन ने अपने विश्वास पात्र मित्र कर्ण को इस राज्य का कार्यभार चलाने के लिए सौंप दिया था। परन्तु कुछ सालों के बाद कर्ण ने अंग राज्य की गद्दी को छोड़ दिया था।
आज हम जिस समय में जी रहे हैं वो एक ऐसा समय है जिस में प्रत्येक व्यक्ति के अपने कुछ अधिकार हैं और उसका अपना मत है। परंतु अगर हम 16 महजनपदों के बारे में पढ़ें तो हमें कई स्थानों पर गणतंत्र समाज देखने के लिए मिलता है। इसके अलावा हमें समाज में कई अलग-अलग प्रकार के जातियों के रहने के भी प्रमाण मिलते हैं।
मानचित्र के हिसाब से देख सकते हैं अंग प्रदेश के व्यापारिक महत्व के बारे में अधिक कुछ तो नहीं मिलता है परंतु 600 ई. पूर्व के भारत के मानचित्र और इस राज्य की भौगोलिक स्थिति से देख सकते हैं कि यह कितना महत्वपूर्ण रहा होगा। अगर आप इस मानचित्र को देखें तो हमें अंग महाजनपद की भारत के उस पूर्वी भाग पर स्थित है जहां से भारत दुनियाभर से जुड़ सकता है और व्यापार कर सकता है।
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यदि अंग साम्राज्य के बारे में संक्षेप में कहा जाए तो यह एक ऐसा राज्य था जो न केवल व्यापारिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था बल्कि कृषि कार्यों, शहरीकरण सभ्यता के विकास के हिसाब से भी जरूरी था और यहां पर मुख्य रूप से बोली जाने वाली भाषा अंगिका थी।
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