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Meghalaya Assembly election 2023: कांग्रेस अस्तित्व बचाने के लिए लड़ेगी, किंग मेकर बन सकती है भाजपा

मेघालय विधानसभा चुनाव, 2023 में ही होना है। ऐसे में आइए समझते हैं कि राज्य में कैसे चुनावी समीकरण बन रहे हैं।

Awanish Tiwari द्वारा Awanish Tiwari
11 January 2023
in समीक्षा
Meghalaya Election 2023

Source- TFI

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Meghalaya Assembly election 2023: वर्ष 2023 में देश के 10 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, जिसे लेकर राजनीतिक पार्टियों ने अपनी तैयारियां आरंभ कर दी है। इन चुनावी राज्यों में नॉर्थ ईस्ट के कई राज्य शामिल हैं, जिनमें मेघालय भी एक है। मेघालय में मौजूदा समय में कॉनराड संगमा के नेतृत्व में एनपीपी+भाजपा और अन्य क्षेत्रीय पार्टियों की गठबंधन की सरकार है। संगमा वर्ष 2018 में चुनाव के बाद सीएम बने थे और अभी तक अपने पद पर बने हुए है, जबकि मेघालय में ऐसा होता नहीं है। 1972 में राज्य बनने के बाद प्रदेश में करीब 1 दर्जन सरकारें बन चुकी हैं और मुख्यमंत्रियों का औसत कार्यकाल 18 महीने रहा है।

लेकिन कॉनराड संगमा काफी लंबे समय बाद ऐसे मुख्यमंत्री बने हैं, जिन्होंने अपना कार्यकाल पूर्ण किया है। अब राज्य में चुनाव होने वाले हैं और ऐसे में चुनावी समीकरण क्या होंगे, इस पर सभी की नजरें टिकी हुई है। संगमा वापसी कर पाएंगे या नहीं? कांग्रेस का स्तर कितना गिरेगा? भाजपा की स्थिति क्या होगी? एनपीपी कितना कमाल दिखा पाएगी? टीएमसी कितना बढ़ेगी ? ये कुछ ऐसे सवाल हैं, जिनका जवाब आपको जानना चाहिए। इस लेख में हम आपको मेघालय के चुनावी समीकरण के बारे में स्पष्ट रूप से बताएंगे, जिनमें आपके इन प्रश्नों का उत्तर भी होगा।

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और पढ़ें: चुनावी विश्लेषण: छत्तीसगढ़ में भाजपा के लिए कठिन है सत्ता की राह

मेघालय चुनाव 2013 और 2018 की स्थिति

मेघालय में कांग्रेस काफी मजबूत रही है लेकिन पिछले कुछ चुनावों में उसकी जो दुर्दशा हुई है, वह राज्य में उसके विनाश को परिलक्षित करती है। मेघालय में 60 विधानसभा सीटें हैं और बहुमत के लिए 31 विधायकों का समर्थन अनिवार्य है। मेघालय विधानसभा चुनाव 2013 में कांग्रेस पार्टी ने 29 सीटों पर जीत हासिल करते हुए क्षेत्रीय दलों के समर्थन से सरकार बनाया था। उस चुनाव में भाजपा- 0, एनपीपी-2, यूडीपी-8, पीडीएफ-4, डेमोक्रेटिक पार्टी ने 1 सीट पर जीत हासिल की थी।‌ भाजपा ने उस चुनाव में 47 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। उसके बाद लोकसभा चुनाव 2014 में मेघालय की दो सीटों में से 1 पर कांग्रेस तो दूसरे पर एनपीपी ने कब्जा जमाया था। लेकिन राज्य में सरकार बनाने के बावजूद मेघालय विधानसभा चुनाव 2018 में कांग्रेस पार्टी फ्लॉप साबित हुई और सत्ता परिवर्तन हो गया।

ध्यान देने योग्य है कि मेघालय विधानसभा चुनाव 2018 में राज्य के 59 सीटों पर चुनाव हुए थे, एक सीट पर उम्मीदवार की हत्या के कारण चुनाव रोक दिया गया था। कांग्रेस ने 2018 में 59 में से मात्र 21 सीटों पर जीत हासिल की थी। उस चुनाव में भाजपा 2, यूडीपी 6, पीडीएफ 2, एनपीपी-19 और डेमोक्रेटिक पार्टी को 2 सीटें मिली थी। किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था, इस वजह से भाजपा ने बाजी पलट दी और नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPP) के साथ मिलकर सरकार बनाई। सीएम की कुर्सी कॉनराड संगमा को मिली।

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि राज्य में 21 सीटों पर जीत हासिल करने वाली कांग्रेस के पास अब मेघालय में एक भी विधायक नहीं हैं। यानी 2018 विधानसभा चुनाव में बिखरने के बाद कांग्रेस पार्टी अपने नेताओं को भी बिखरने से नहीं बचा पाई। नवंबर 2021 में राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री मुकुल संगमा समेत कांग्रेस के 13 एमएलए ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए थे। उसके बाद फरवरी 2022 में पार्टी के 5 विधायकों ने भी सत्ताधारी गठबंधन मेघालय डेमोक्रेटिक एलायंस (एमडीए) में शामिल होने का फैसला किया था। स्थिति ऐसी है कि राज्य में कांग्रेस पूरी तरह से खत्म हो गई है।

एनपीपी के घाटे से होगा भाजपा को फायदा

अब अगले Meghalaya Assembly election 2023 में कांग्रेस लिए राज्य में अपनी स्थिति को मजबूत करने की नहीं बल्कि अस्तित्व बचाने की चुनौती होगी। दूसरी ओर एनपीपी की स्थिति भी डांवाडोल हो चली है। मेघालय विधानसभा चुनाव 2013 में 2 सीटें जीतने से लेकर मेघालय चुनाव 2018 में 19 सीटें जीतने तक एनपीपी ने खूब पसीने बहाए थे लेकिन सत्ता हाथ में आते ही स्थिति में परिवर्तन देखने को मिला। पार्टी से विधायकों की नाराजगी देखने को मिली। दिसंबर 2022 में पार्टी के 2 विधायकों ने भाजपा का दामन थाम लिया था। वहीं, एक निर्दलीय और एक टीएमसी के विधायक भाजपा में शामिल हुए थे। यानी राज्य में भाजपा के विधायकों की संख्या अब 6 पहुंच चुकी है।

वहीं, दूसरी ओर मेघालय भाजपा ने ऐलान भी कर दिया है कि आगामी Meghalaya Assembly election 2023 में पार्टी सभी 60 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी। हाल ही में मेघालय भाजपा के अध्यक्ष अर्नेस्ट मावरी ने कहा था कि पार्टी विधानसभा चुनाव में राज्य की सभी 60 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी, जो अब से पांच महीने से भी कम समय में है। मावरी ने मीडिया से कहा कि भाजपा आगामी चुनावों में मेघालय में अच्छा प्रदर्शन करेगी क्योंकि लोग भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा लागू की जा रही योजनाओं से बहुत खुश हैं। उन्होंने कहा कि पार्टी ने आगामी विधानसभा चुनावों में अन्य दलों से मुकाबला करने के लिए अपनी रणनीति को पहले ही अंतिम रूप दे दिया है।

इस ऐलान के पीछे का बड़ा कारण यह भी बताया जा रहा है कि इस समय भाजपा, जिस मेघालय डेमोक्रेटिक अलायंस (एमडीए) सरकार के प्रभुत्व वाली नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) के साथ गठबंधन में है, उससे पार्टी का टकराव बढ़ रहा है। ऐसे में भाजपा अब यहां असम का फॉर्मूला अपना सकती है, जिसमें अकेले लड़कर सरकार बनाना अहम होगा।

और पढ़ें: चुनावी विश्लेषण: कांग्रेस का ‘राजस्थान गढ़’ भी जाने वाला है

जाति समीकरण और मुद्दे

समीकरणों की बात करें तो मेघालय के अधिकांश भाग में जनजातीय लोग रहते हैं। इनमें खासी समुदाय सबसे बड़ा समूह 34 फीसदी है। इसके बाद गारो 30 फीसदी और जयंतिया 18.5 प्रतिशत आते हैं। मेघालय राज्य ईसाई बाहुल्य इलाका माना जाता है। वहां मुख्य रूप से बोली जाने वाली भाषाओं में खासी, गारो, प्नार, बियाट, हजोंग और बांग्ला आती हैं। इन भाषाओं के अलावा मेघालय में हिंदी भी बोली जाती है। हिंदी भाषी लोग मुख्यत: शिलांग में रहते हैं।

अहम बात यह है कि मेघालय में राजनीतिक अस्थिरता, अवैध प्रवासन और सीमा विवाद मुख्य मुद्दों में से एक है। भाजपा इन तीनों ही मुद्दों काफी मुखर रही है। अगर भाजपा को बहुमत मिलता है तो राजनीतिक अस्थितरता की समस्या को भाजपा आसानी से सुलझा सकती है क्योंकि अन्य राज्यों में चल रही भाजपा की सरकारें इसके मुख्य उदाहरण हैं। वहीं, अवैध प्रवासन के मुद्दे पर भाजपा के क्षेत्रीय नेतृत्व से लेकर केंद्रीय नेतृत्व तक नेता काफी एक्टिव रहे हैं और इसका विरोध किया है। भाजपा को इसका भी फायदा मिल सकता है। अब अगर हम सीमा विवाद की बात करें तो असम-मेघालय सीमा विवाद काफी अधिक सुर्खियों में रहा है।

इसका अभी तक किसी भी तरह का कोई समाधान नहीं निकल पाया है। इस बात की संभावना अधिक है कि असम में भाजपा की ही सरकार है और ऐसे में अगले चुनाव में जीत के बाद सीमा विवाद के मामले को लेकर भाजपा कोई पूर्णकालिक समाधान निकाल सकती है। अभी तक सरकारों ने इस मामले को लेकर कुछ किया नहीं है, सरकार ही स्थिर नहीं रही है। दोनों राज्य 855 किमी लंबी सीमा साझा करते हैं और उनमें 12 बिंदुओं पर विवाद है, कई मौतें भी हो चुकी है। ऐसे में हिमंता बिस्वा सरमा इस विवाद को लेकर संभावित खेला कर सकते हैं जिससे चुनावी मोमेंटम भाजपा की ओर शिफ्ट हो सकता है।

मेघालय में दिलचस्प होगा मुकाबला

आपको बताते चलें कि राज्य में मौजूदा समय में ऐसी कोई भी पार्टी नहीं है, जो अपने दम पर चुनाव में जीत हासिल कर सरकार बना पाए। भाजपा इस रिक्तता को भर सकती है और पार्टी के पास इसे भरने का पूरा सामर्थ्य भी है। आगामी चुनाव में कांग्रेस, एनपीपी के डाउन जाने सीधा असर भाजपा के वोट बैंक पर देखने को मिलेगा। भाजपा के समर्थन से एनपीपी ने कार्यकाल पूरा किया है, ऐसे में लोगों को भाजपा से उम्मीदें भी हैं। इसके अलावा नॉर्थ ईस्ट के चाणक्य कहे जाने वाले हिमंता बिस्वा सरमा की पकड़ राज्य की राजनीति में काफी अधिक है, जिसका लाभ भी Meghalaya Assembly election 2023 में पार्टी को मिल सकता है।

वहीं, केंद्र सरकार की नॉर्थ ईस्ट पॉलिसी भी लोगों को भाजपा की ओर मोड़ रही है। नॉर्थ ईस्ट को एशिया का मुख द्वारा बनाने की केंद्र की रणनीति काफी कारगर सिद्ध हो सकती है। ध्यान देने योग्य है कि एनपीपी के नेतृत्व में राज्य में गठबंधन की सरकार चल रही है लेकिन एनपीपी से भी लोगों को मोह भंग होता हुआ दिख रहा है। कांग्रेस खत्म हो चुकी है। क्षेत्रीय पार्टियां कुछ कमाल कर सकती हैं। टीएमसी अपना प्रभुत्व जमाने की कोशिश कर रही है और काफी हद तक कुछ सीटें निकालने में सफल भी हो सकती है। टीएमसी के आने से कांग्रेस का बचा-खुचा वोट बैंक भी खिसक जाएगा लेकिन इस चुनाव में भाजपा का अलग रंग देखने को मिल सकता है।

क्योंकि भाजपा को लेकर राज्य की जनता में आक्रोश न के बराबर है। ऐसे में अगर पार्टी 15-20 सीटें भी ले आती है तो निर्णायक की भूमिका निभा सकती है। यह भी हो सकता है कि अन्य दलों के साथ गठबंधन कर पार्टी अपना मुख्यमंत्री भी बना ले। मेघायल चुनाव को लेकर ज्यादा संभावनाएं भाजपा के लिहाज से सहज मानी जा रही हैं और इसके कारण Meghalaya Assembly election 2023 इस बार काफ़ी दिलचस्प माना जा रहा है।

और पढ़ें: असम के ‘शिवाजी’ वीर लचित बोरफुकन के शौर्य को राष्ट्रीय स्तर पर ला रहे हैं हिमंता बिस्वा सरमा

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