“मैं एक उदाहरण देता हूँ, अभी कुछ समय पूर्व हो हल्ला चीन द्वारा विवादित क्षेत्र में पुल बनाने को लेकर। ये क्षेत्र क्या अभी अभी चीनी नियंत्रण में आया? नहीं न, ये 1962 से उनके नियंत्रण में है। फिर ये क्यों नहीं समझते कि हर समय बाल की खाल निकालना अच्छा नहीं? “
ये शब्द थे हमारे वर्तमान विदेश मंत्री एस जयशंकर के, जो इस समय लिबरल गैंग के कोपभाजन का केंद्र बने हुए हैं। हो भी क्यों ना, आखिर इनके “माई बाप” जॉर्ज सोरोस को उसके अनर्गल प्रलाप पे दर्पण जो दिखाया है। परंतु जयशंकर ने मानो ठान लिया है : अब लिबरल बिरादरी की खैर नहीं।
हाल ही में ANI की प्रमुख पत्रकार स्मिता प्रकाश के साथ एस जयशंकर की एक पॉडकास्ट वायरल हो रही है। इसमें इन्होंने लगभग हर वर्तमान विषय पर मुखर होकर बोला है, और इन्होंने कुछ निजी अनुभव भी साझा किये।
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उदाहरण के लिए उन्होंने बताया कि कैसे वे ब्यूरोक्रेट्स के परिवार से आते हैं और हमेशा एक बेहतरीन ऑफिसर बनना चाहते थे। अपने पिता को याद करते हुए जयशंकर ने बताया कि उनके पिता सचिव पद (1979) तक पहुँच गए थे।
इतना ही नहीं, उन्होंने ये भी साझा किया कि कैसे उनके परिवार को कांग्रेस के हाथों अन्याय झेलना पड़ा।
उनके अनुसार,
“जब 1980 में इंदिरा गाँधी की सरकार बनी तो मेरे पिता के जयशंकर को उनके पद से हटा दिया गया। वे उस वक्त डिफेंस प्रोडक्शन डिपार्टमेंट में सचिव थे। मेरे पिता संभवतः पहले सचिव थे जिन्हें इंदिरा गाँधी ने सरकार बनने के बाद सबसे पहले हटाया था। राजीव गाँधी के प्रधानमंत्री रहते हुए भी उनको नज़रअंदाज किया गया और उनके जूनियर को कैबिनेट सचिव बनाया गया”।
जयशंकर का वो बयान जो लिबरल और कांग्रेस नही पचा पा रहे!
एस. जयशंकर आगे कहते हैं कि उनके पिता एक ईमानदार व्यक्ति थे, और हो सकता है इसकी वजह से समस्या हुई हो। उसके बाद वो कभी सचिव नहीं बने। उनके अनुसार, परिवार में इस बात को लेकर कभी चर्चा तो नहीं हुई लेकिन जब उनके बड़े भाई सचिव बने तो पिता काफी खुश हुए थे। बाद में एस. जयशंकर भी विदेश सचिव बने, हालाँकि तब तक उनके पिता का निधन हो चुका था। पिता ने भले ही उन्हें सचिव के पद पर नहीं देखा, लेकिन पिता के रहते जयशंकर ग्रेड वन तक पहुँच चुके थे जो सेक्रेटरी के बराबर का ही रैंक होता है।
परंतु जयशंकर उतने पे नहीं रुके। विपक्ष के एक एक आरोप की उन्होंने बुरी तरह धज्जियां उड़ाई। उदाहरण के लिए विपक्ष के इस नैरेटिव कि ‘मोदी सरकार चीन का नाम लेने से डरती है’ वहांये बात करते हुए जयशंकर ने किसी मंझे हुए राजनेता की तरह विपक्षियों की हवा निकाल दी। उन्होंने कहा, ‘चीन की सीमा पर आज हमारे पास इतिहास की सबसे बड़ी तैनाती है और मैं चीन का नाम ले रहा हूं। अगर हम रक्षात्मक हो रहे थे तो इंडियन आर्मी को एलएसी पर किसने भेजा? राहुल गांधी ने उन्हें नहीं भेजा, नरेंद्र मोदी ने भेजा। आज चीन सीमा पर शांतिकाल में हमारे इतिहास की सबसे बड़ी सैन्य तैनाती है। हम अपने जवानों को तैनात किए हुए हैं। हमने अपनी सरकार के दौरान बॉर्डर इन्फ्रास्ट्रक्चर पर खर्च को 5 गुना बढ़ाया है। अब बताइए कौन रक्षात्मक है? कौन सच्ची बात कह रहा है? कौन सही-सही बता रहा है?”
इसके अलावा जब जयशंकर से पूछा गया कि क्या भारत सरकार पर चीन के मामले में डिफेंसिव रहने और देर से कदम उठाने के आरोप उचित हैं, तो विदेश मंत्री ने जवाब में कहा था, “नहीं….ऐसा बिलकुल नहीं है.. देखिए, वे हमसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं…हमें ऐसे में क्या करना चाहिए? एक छोटी इकॉनमी के तौर पर क्या हम आगे बढ़कर अपने से बड़ी इकॉनमी से लड़ाई कर लें? यहां सवाल रिएक्टिव होने यानी बाद में कदम उठाने का नहीं है..यह सवाल कॉमनसेंस के इस्तेमाल का है.”
उन्होंने कांग्रेस पर जानबूझकर तथ्यों को गलत ढंग से पेश करने का आरोप भी लगाया था. जयशंकर ने चीन के साथ मौजूदा सीमा विवाद के लिए कांग्रेस की 60-62 साल पुरानी सरकारों को जिम्मेदार ठहराते हुए तंज भरे लहजे में कहा था कि कांग्रेस को C से शुरू होने वाले शब्दों को समझने में दिक्कत होती है.
असल में कांग्रेस के नेतृत्व वाली लिबरल मंडली इसलिए भी कुपित है क्योंकि इन्होंने जॉर्ज सोरोस को पटक पटक के धोया था। एक व्याख्यान में जयशंकर ने स्पष्ट कहा,
“सोरोस बूढ़े, अमीर, जिद्दी, पूर्वाग्रही और खतरनाक हैं, जो कहानियां गढ़ने में माहिर हैं। जो न्यू यॉर्क में बैठकर अब भी यह सोचते हैं कि दुनिया उनके हिसाब से चले। दुनिया उनके विचारों के आधार पर काम करे। अब अगर मैं बूढ़े, धनी और पूर्वाग्रही तक रुक सकता तो रहने देता, लेकिन वह बूढ़े, धनी, पूर्वाग्रही और खतरनाक हैं”
इसके आगे उन्होंने ये भी कहा कि सोरोस जैसे लोगों को लगता है कि अगर उनकी पसंद का व्यक्ति चुनाव जीतता है, तो वह चुनाव अच्छा था, लेकिन अगर नतीजा कुछ और निकले तो वह देश के लोकतंत्र में खामियां ढूंढने लगते हैं। मजे की बात यह है कि यह सब खुले समाज का समर्थन करते हैं।
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जयशंकर ने कहा, हमारे लोकतंत्र में लोग बढ़-चढ़कर चुनाव में हिस्सा लेते हैं, जो अभूतपूर्व है। हमारे चुनाव नतीजे पर पहुंचते हैं। चुनाव की प्रक्रिया पर सवाल नहीं उठते हैं। हम उन देशों में से नहीं हैं जहां चुनाव के बाद अदालत में मध्यस्थता कराई जाती है। हमारा देश औपनिवेशिक दौर से गुजर चुका है। हम इस खतरे से अच्छी तरह से वाकिफ हैं, जब बाहरी हस्तक्षेप होता है तो क्या होता है। कुछ साल पहले सोरोस ने भारत पर लाखों मुसलमानों की नागरिकता छीन लेने की साजिश रचने का आरोप लगाया था। अगर आप इस तरह की अफवाहबाजी करेंगे, जैसे दसियों लाख लोग अपनी नागरिकता से हाथ धो बैठेंगे तो यह वास्तव में हमारे सामाजिक ताने-बाने को बहुत नुकसान पहुंचाएगा।
जयशंकर के इन बयानों से लिबरल बिरादरी में कितना त्राहिमाम मचा हुआ है, ये आप कांग्रेस के विलाप से ही समझ सकते हैं। कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने विदेश मंत्री के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए कहा, “विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने चीन को लेकर जो बोला है वो चिंताजनक है. हमारे देश के विदेश मंत्री कह रहे हैं, क्योंकि हम छोटी अर्थव्यवस्था हैं, इसलिए चीन जैसी बड़ी अर्थव्यवस्था को अटैक नहीं कर सकते. विदेश मंत्री ने देश के हर सैनिक का हौसला तोड़ने का काम किया है। क्या एस. जयशंकर जी स्टॉकहोम सिंड्रोम से ग्रसित हैं? चीन से सवाल पूछने की जगह आप और आपके आका जब देखो शी जिनपिंग से गलबहियां करने लगते हैं.”
ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि एस जयशंकर भली भाँति जानते हैं कि कौन भारत का हितैषी है, और कौन नहीं। उनके बयान से ही अगर लिबरल ईकोसिस्टम थर्रा सकता है, तो वास्तव में उन्होंने भारत के महत्वपूर्ण विषयों पर कुछ कदम उठाया, तो फिर इनका क्या हाल होगा… ..
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