किसी ने सही ही कहा है, “जिसका काम उसी को साजे, दूजा करे तो ठेंगा पावे!” अब इसके पीछे एक स्पष्ट तर्क है- कुछ लोग कुछ ही कार्यों के लिए बने होते हैं, यदि वो अपनी क्षमता और अपनी कार्यशैली के विपरीत कार्य करें तो न वे घर के रहेंगे, न घाट के, और इस बात को जुगल हंसराज से बेहतर कौन समझ सकता है भला?
मासूम फिल्म देखी है? यदि नहीं, तो शेखर कपूर द्वारा निर्देशित इस फिल्म को आपको अवश्य एक बार देखना चाहिए। 1983 में प्रदर्शित यह फिल्म केवल नसीरुद्दीन शाह और शबाना आज़मी के कारण चर्चा में नहीं आई, ये फिल्म एक बाल कलाकार के कारण भी बराबर चर्चा में रही, जिसने अपने अभिनय से कई लोगों का ध्यान आकृष्ट किया। जुगल हंसराज यही अभिनेता थे।
बाल कलाकार के रूप में डेब्यू
1972 में मुंबई में जन्मे जुगल हंसराज ने 1983 में “मासूम” से बतौर बाल कलाकार डेब्यू किया, और इसी फिल्म में उर्मिला मातोंडकर भी बाल कलाकार के रूप में दिखीं थीं। परंतु जुगल का प्रभाव कुछ अलग ही था। तद्पश्चात जुगल ने कुछ अन्य फिल्मों में बतौर बाल कलाकार काम किया, जिनमें लगभग अधिकतम ब्लॉकबस्टर ही थे। “झूठा सच” हो, “सल्तनत” हो, “हुकूमत” हो, “कर्मा” हो, या फिर “लोहा” हो, जुगल हंसराज ने लगभग हर जगह अपना प्रभाव छोड़ा।
फिर आया वर्ष 1994, जब जुगल हंसराज ने बतौर मुख्य अभिनेता पदार्पण किया। फिल्म का नाम था “आ गले लग जा”, और सोचिए इनके समक्ष अभिनेत्री कौन थी? वही उर्मिला मातोंडकर, जो 1983 में “मासूम” में थीं। इस फिल्म में इनके अलावा परेश रावल, रीमा लागू, अजीत, गुलशन ग्रोवर जैसे कलाकार भी उपस्थित थे। फिल्म ने ठीक ठाक बिजनेस भी किया, और जुगल हंसराज का करियर एक नये मोड़ पर निकल पड़ा।
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“द डॉन” में सहायक भूमिका
1995 में मिथुन चक्रवर्ती के फिल्म “द डॉन” में इन्हें सहायक भूमिका मिली, और फिर “पापा कहते हैं” में ये मयूरी कानूनगो के साथ प्रमुख भूमिका में नज़र आए। अब फिल्म कुछ खास नहीं चली, परंतु इसके गीत काफी चर्चा में रहे, जिसमें से एक “घर से निकलते ही, कुछ दूर चलते ही” सुपरहिट रहा, और आज सोशल मीडिया पर भांति-भांति के मीम्स के चलते पुनः लोकप्रिय हुआ।
मोहब्बतें तो बाद में आई, परंतु बहुत कम लोगों को पता है कि जुगल हंसराज ने “कुछ कुछ होता है” के शीर्षक गीत का म्यूज़िक भी कम्पोज किया था। फिल्म अब जैसी भी हो, परंतु इस बात से कोई नहीं मना कर सकता है कि उसका संगीत लोकप्रिय था, और स्वयं करण जौहर ने अपने पुस्तक “एन अनसूटेबल बॉय” में सिद्ध किया है कि जुगल ने “कुछ कुछ होता है” की सिग्नेचर ट्यून रची, जो आज “धर्मा प्रोडक्शंस” के लोगों का भी एक अभिन्न अंग है।
जुगल हंसराज को भी लोग जानने लगे
फिर आई 2000 में मोहब्बतें। यूं तो ये आदित्य चोपड़ा की प्रथम फिल्म होने वाली थी, परंतु कई कारणों से उन्हें इस फिल्म को “दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे” के बाद प्रदर्शित किया। इस फिल्म ने कथित तौर पर “डेड पोएट्स सोसाइटी” से भी कुछ तत्व उठाए। अब इस बात में कितनी सच्चाई है, ये तो आदित्य चोपड़ा ही जाने, परंतु यह फिल्म 2000 की सबसे बड़ी हिट फिल्मों में से एक रही, और इसमें अमिताभ बच्चन से लेकर हर कलाकार की भूमिका को सराहा गया। जिन तीन नवयुवकों पर इस फिल्म से स्पॉटलाइट पड़ी, उनमें से एक जुगल हंसराज भी थे।
परंतु जहां उदय चोपड़ा ने कुछ हद तक “धूम” फ्रैन्चाइज़ से अपना करियर संभाला, और जिमी शेरगिल ने विशुद्ध अभिनय पर अपना ध्यान केंद्रित किया, जुगल हंसराज न घर के रहे, न ही घाट के। उन्हें लगा कि वे कुछ भी कर सकते हैं और इसी पसोपेश में उन्होंने अभिनय से लेकर फिल्मांकन तक में हाथ आजमाया। परंतु न तो वे जनता का मनोरंजन कर पाए और न ही वे फिल्मकार के रूप में एक अलग दृष्टिकोण पेश कर पाए।
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सब जुगल से कन्नी काटने लगे
धीरे-धीरे सब जुगल से कन्नी काटने लगे और जब तक जुगल समझ पाते कि उन्होंने अपने करियर के साथ क्या किया है, उन्होंने बहुत देर कर दी। अब उन्हें चाहकर भी रोल नहीं मिल पा रहे थे। उन्होंने 2017 में लेखन में भी अपना हाथ आजमाया, परंतु यहां भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी। OTT पे उन्होंने ‘Mismatched’ से अपना पदार्पण किया, परंतु वे कब आए और कब गए, किसी को नहीं पता चला और 2016 में प्रदर्शित “कहानी 2 : दुर्गा रानी सिंह” में इनके रोल के बारे में जितना कम बोलें, उतना ही अच्छा।
तो आखिर जुगल हंसराज का करियर क्यों ढलान पे चला गया? स्वयं जुगल की माने तो वे एक विशुद्ध आउटसाइडर थे, और उनके पास अन्य लोगों जितने “कनेक्शन” नहीं थे। परंतु ये आंशिक रूप से सही है, पूर्णत्या नहीं।
जुगल हंसराज को अवसर ही नहीं मिले
अब ऐसा भी नहीं था कि जुगल हंसराज को अवसर ही नहीं मिले। चूंकि करण जौहर और चोपड़ा परिवार से इनके संबंध अच्छे थे, इसलिए इन्हें कई फिल्मों में, विशेषकर YRF में खूब अवसर मिला। यहां तक कि जुगल हंसराज ने यशराज फिल्म्स के माध्यम से बतौर निर्देशक अपना डेब्यू भी किया। 2008 में “रोडसाइड रोमियो” के रूप में इन्होंने एक एनिमेटेड फिल्म प्रदर्शित की, जिसमें सैफ अली खान, करीना कपूर खान और जावेद जाफरी ने प्रमुख तौर पर अपनी आवाज़ें दीं।
इसके अतिरिक्त 2010 में “प्यार इम्पॉसिबल” को भी निर्देशित किया, जिसमें उदय चोपड़ा और प्रियंका चोपड़ा प्रमुख भूमिकाओं में थे। इसे बेस्ट एनिमेटेड फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला, अब वो अलग बात है कि दोनों ही फिल्में बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिरी और बतौर प्रमुख अभिनेता, वह उदय चोपड़ा की अंतिम फिल्म थी। अब ऐसे में जुगल पर कौन निवेश करने की भूल करता?
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अपने ही करियर को बर्बाद किया
कुछ दिनों पूर्व मुरली विजय ने क्रिकेट से सन्यास लिया था, परंतु अपने करियर का आत्मवलोकन करने के बजाए वे हर व्यक्ति को दोष दे रहे थे, भले ही उन्होंने टेस्ट के अतिरिक्त कहीं भी विशेषज्ञता न प्राप्त की हो। अब जुगल हंसराज के करियर में विवाद हो या नहीं, वो अलग वाद विवाद का विषय है, परंतु जब बात अपने हाथों से अपने करियर को बर्बाद करने की हो, तो फिर ये मुरली विजय से कहीं से भी कम नहीं रहे, फील्ड भले ही अलग रही हो।
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