कांग्रेस के लिए राहुल गांधी वैसे ही हैं, जैसे टीम इंडिया के लिए के एल राहुल। दोनों के चर्चे बहुत हैं, दोनों का टीम में स्थान फिक्स है, लेकिन दोनों ही अपनी टीम से अधिक विपक्षी टीम का उद्धार करते हैं। अब समय की मांग के अनुसार कर्नाटक कांग्रेस ने हाईकमान से एक विशेष अनुरोध किया है: कुछ भी कीजिए, पर राहुल गांधी को ‘नियंत्रित कीजिए’।
इस लेख में पढिये कि कैसे कर्नाटक कांग्रेस विधानसभा चुनाव में अपनी संभावनाओं को प्रबल बनाना चाहती है, और कैसे इस योजना में “भाजपा के स्टार प्रचारक” आड़े आ सकते हैं।
कर्नाटक कांग्रेस का धर्मसंकट
इन दिनों कर्नाटक कांग्रेस अजब धर्मसंकट में है। परिस्थितियाँ इनके पक्ष में होते हुए भी ये चुनाव के लिए बहुत आश्वस्त नहीं है। ये ठीक भी है, परंतु समस्या ये है कि इनके पास सशक्त नेतृत्व ही नहीं है क्योंकि सिद्दारमैया उस योग्य हैं नहीं, डीके शिवकुमार चाहकर भी अपना सिक्का नहीं जमा पा रहे, जी परमेश्वर वर्तमान नेतृत्व में चुनाव में सक्रिय रूप से भाग ले पाएंगे नहीं और मल्लिकार्जुन का “दिल्ली कनेक्शन” ही उनके आड़े आ रहा है। कुल मिलाकर बहुत घोर संकट है कांग्रेस के पास।
ऐसे में ये खबर आ रही है कि कांग्रेस के स्थानीय नेता राहुल गांधी के संबंध में चाहते हैं कि वे जितना हो सके, अपने एजेंडावाद से दूर रहें। उनके अनुसार राहुल स्थानीय मुद्दों पर कम, और मोदी अडानी पर आवश्यकता से अधिक अनर्गल प्रलाप करते हैं। उनके अनुसार, “एक दो बार हो तो चलता भी है, परंतु स्थानीय विषयों को दरकिनार कर अपने ही एजेंडे को थोपना कहाँ की समझदारी है?”
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पंजाब और हिमाचल मॉडेल की सफलता
कर्नाटक कांग्रेस के स्थानीय नेता इस विषय पर किसी भी एंगल से गलत नहीं सोच रहे। उन्होंने 2017 के पंजाब चुनाव, 2018 के कर्नाटक चुनाव एवं 2022 के हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव का अनुभव किया है।
तो इन सबमें समान बात क्या है? सर्वप्रथम यहाँ स्थानीय नेतृत्व ने मोर्चा संभाला हुआ था, और यहाँ राहुल गांधी की उपस्थिति लगभग नगण्य थी। 2017 में तत्कालीन मुख्यमंत्री, कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सुनिश्चित किया था कि राहुल पंजाब के आसपास भी न दिखाई दे, और 2022 में तो स्वयं प्रियंका गांधी ने मोर्चा संभाला हुआ था।
इसके अतिरिक्त कर्नाटक में भी प्रमुख तौर से सिद्दारमैया ने उस समय मोर्चा संभाला हुआ था, और परिणामस्वरूप इनमें से किसी भी राज्य में कांग्रेस को कोई हानि नहीं हुई। जहां एक ओर पार्टी के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लग चुका था, तो दूसरी इन राज्यों के परिणामों ने ये सिद्ध किया कि पार्टी का स्थानीय नेतृत्व अभी नष्ट नहीं हुआ है। कर्नाटक में भले ही एक वर्ष के लिय सही, परंतु भाजपा से कम सीट होते हुए भी कांग्रेस ने सत्ता प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की थी। राजनीति इसी का नाम है।
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राहुल गांधी मानेंगे?
परंतु सबसे बड़ा प्रश्न तो अभी भी यथावत है : क्या कांग्रेस के “युवराज” इन शर्तों को स्वीकार करेंगे? इनके पुराने रिकॉर्ड और इनकी मंशाओं को देखकर ऐसा बिल्कुल नहीं लगता। वर्षों पूर्व स्थानीय मुद्दों के विषय पर राहुल गांधी ने एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता को बुरी तरह अपमानित किया था, और उस दिन के बाद से उसी हिमन्ता बिस्वा सरमा की कृपा से कांग्रेस पूर्वोत्तर में सरकार बनाना तो दूर, 10 सीट भी नहीं जुटा पा रही है।
इसके अतिरिक्त इनके उच्च विचारों से कोई भी अनभिज्ञ नहीं है। जब भी इनका मुख खुलता है, भाजपा के वोट प्रतिशत में बढ़ोत्तरी गारंटी रहती है। इन्हे यूं ही “भाजपा का स्टार प्रचारक” नहीं कहा जाता, ये बातों ही बातों में इतना आयुध देते हैं, जिसका उपयोग कर भाजपा कांग्रेस के रेतीले दुर्ग का विध्वंस करने में सफल रहती है।
इसके अतिरिक्त जिस प्रकार से कांग्रेस इन दिनों राई का पहाड़ बनाने पे तुली हुई है, उससे ये भी स्पष्ट है कि 2024 के पूर्व वे किसी भी स्थिति में राहुल गांधी का कद कम नहीं होने देंगे। ऐसे में कर्नाटक कांग्रेस ने आगामी विधानसभा चुनावों में अपने हित के लिए काफी सही प्लानिंग की है, परंतु राहुल गांधी के रहते ये योजना सफल भी होंगी, इसके आसार नगण्य है।
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