कुछ लोग अपनी पिछली गलतियों से कुछ नहीं सीखते हैं और नीतीश कुमार निश्चित रूप से उन लोगों में आते हैं जो अपनी गलतियों पर विचार भी नहीं करते हैं, उनसे सीखना तो दूर की बात रही। संयुक्त विपक्ष के माध्यम से प्रधानमंत्री बनने के अपने अधूरे सपने को पूरा करने के लिए वह दर-दर भटक रहे हैं और इसी बीच उन्हे दर्पण दिखाने का बीड़ा यशवंत सिन्हा ने संभाला है।
इस लेख में पढिये एक राजनीतिक ड्रामा के बरे में, जहां कॉमेडी भी हैं, इमोशन भी और एक्शन भी। आइए बिहार के राजनीतिक परिदृश्य में सामने आ रही इस मनोरंजक गाथा पर गौर करें।
“हम नहीं सुधरेंगे!”
नीतीश का हिसाब सिम्पल है : आग लगवे बस्ती में, हम अपना मस्ती में! स्वास्थ्य संरचना चरमरा रही है, शैक्षणिक व्यवस्था लगभग नगण्य है, ऊपर से भ्रष्टाचार, लूटमार, सो अलग। परंतु नीतीश बाबू के लिए महागठबंधन का विकास अधिक सर्वोपरि है। अरे जाग जाओ मोहन प्यारे, ये 1990 का दशक नहीं! मॉर्निंग वॉक ले लीजिए, परंतु इसकी गारंटी भी कम ही है।
हर बार की भांति नीतीश कुमार पिछली गलतियों को निर्लज्जता से दोहराने को उद्यत हैं और यशवंत सिन्हा उन्हें इसे भूलने नहीं देंगे। जहां नीतीश संयुक्त विपक्ष के माध्यम से पीएम बनने के अपने अधूरे सपने को पूरा करने में व्यस्त हैं, वहीं सिन्हा अपने मजाकिया अंदाज के साथ कुछ जरूरी ज्ञान देने के लिए तैयार हैं। यह इतिहास के खुद को दोहराने का मामला है और सिन्हा ऐसा अवसर हाथ से क्यों जाने देते?
जैसे ही नीतीश कुमार ने बहुप्रचारित महागठबंधन बैठक का आयोजन किया, ऐसा प्रतीत होता है कि सारे जहां की मुसीबत एक साथ टूट पड़ी। बत्ती गुल हुई, आम आदमी पार्टी नाराज फूफा की भांति फिर कमी निकालने लगी, और घूम फिरके पुनः कोई निष्कर्ष नहीं निकाली। यह राजनीतिक समारोहों में गड़बड़ी का एक क्लासिक मामला है, और सिन्हा कुमार के खर्च पर एक हास्यास्पद चुटकी लेने से खुद को रोक नहीं सके।
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हृदय परिवर्तन या अपना उल्लू सीधा करना?
अपने दिलचस्प अंदाज में यशवंत सिन्हा ने नीतीश के व्यापक हृदय परिवर्तन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि कैसे ठीक एक साल पहले, जब राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव हो रहे थे, तो नीतीश कुमार ने सिन्हा का फोन उठाने की भी जहमत नहीं उठाई। लेकिन अब, वह अचानक विपक्षी एकता के अग्रदूत बन गए हैं। “हृदय परिवर्तन के लिए महत्वपूर्ण 12 महीने” के बारे में सिन्हा की टिप्पणी ने हमें सोचने पर विवश कर दिया कि क्या यह वास्तविक परिवर्तन था या एक चतुर राजनीतिक रणनीति थी।
अपने शब्दों के खेल के लिए चर्चित सिन्हा ने बिहार में नीतीश के बुनियादी ढांचे के संकट पर मज़ाक उड़ाने का मौका नहीं छोड़ा। उनके अनुसार, “एक ओर वास्तविक पुल ताश के पत्तों की भांति बिखर रहे हैं, तो वहीं नीतीश ने पार्टियों के बीच राजनीतिक पुल बनाने का काम अपने हाथ में ले लिया है। सिन्हा ने इसपर उन्हें शुभकामनाएं दीं और व्यंग्यात्मक लहजे में सुझाव दिया कि हालांकि यह नीतीश के राजनीतिक करियर के लिए अच्छा हो सकता है, लेकिन यह बिहार के लोगों के लिए अच्छा नहीं हो सकता है। काफी गहरी बात बोल गए सिन्हा महोदय!
बोए पेड़ बबूल के तो आम कहाँ ते होय
एक समय एक ही सरकार का हिस्सा होने और वैचारिक झुकाव साझा करने वाले नीतीश और यशवंत सिन्हा अब परस्पर विरोधी बन रहे हैं। यह राजनीतिक गठबंधनों में बदलाव का एक उत्कृष्ट मामला है, और इनकी खीचमतानी भारतीय राजनीति की तरल प्रकृति को उजागर करता है। सिन्हा की चतुर टिप्पणियाँ और नीतीश की प्रतिक्रियाएँ हमें याद दिलाती हैं कि राजनीति में पलक झपकते ही दोस्ती बदल सकती है।
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बिहार में यशवंत सिन्हा बनाम नीतीश कुमार का मुकाबला एक ऐसा तमाशा है जो राजनीतिक क्षेत्र में मनोरंजन का स्पर्श जोड़ता है। जैसे-जैसे वे हॉर्न बजाना और अपनी पंचलाइन देना जारी रखेंगे, हम अपने भूजा के साथ यहां शो का आनंद लेने के लिए तैयार रहेंगे। तो आराम से बैठें, और बिहार के इस मनोरंजक लड़ाई का आनंद लें।
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