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राष्ट्रपति और राज्यपाल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची केरल सरकार।

केरल की मार्क्सवादी सरकार पहले ही राज्यपाल डॉ. आरिफ मोहम्मद खान से सीधे-सीधे टकराव पर उतरी हुई थी, अब उसने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के खिलाफ भी मोर्चा खोल दिया है।

Akash Gaur द्वारा Akash Gaur
4 April 2024
in चर्चित, राजनीति
केरल सरकार, सुप्रीम कोर्ट, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, राज्यपाल डॉ. आरिफ मोहम्मद खान
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केरल की मार्क्सवादी सरकार का दुराग्रह चरम पर पहुंच गया है। माकपा के नेतृत्व वाली वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) सरकार पहले ही राज्यपाल डॉ. आरिफ मोहम्मद खान से सीधे-सीधे टकराव पर उतरी हुई थी। फिर वह उनके खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में गई और अब उसने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के खिलाफ भी मोर्चा खोल दिया है। 

राष्ट्रपति के खिलाफ यातिका दाखिल

केरल की पिनराई विजयन सरकार ने 23 मार्च को राष्ट्रपति के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की है। इसमें उसने आरोप लगाया है कि राज्यपाल डॉ. आरिफ मोहम्मद खान द्वारा प्रस्तावित कई विधेयकों को राष्ट्रपति ने रोक रखा है। साथ ही, राज्यपाल पर भी आरोप लगाया है कि उन्होंने ‘वर्षों’ तक इन विधेयकों को रोके रखा। 

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राज्य सरकार राज्यपाल पर लगा रही आरोप

राज्य सरकार का तर्क है कि इन विधेयकों को समयबद्ध मंजूरी मिलनी चाहिए। उसका आरोप है कि राज्यपाल विधानसभा के कानून बनाने के अधिकार में बाधा डाल रहे हैं। इस याचिका में राज्यपाल भी प्रतिवादी हैं।

इससे पहले, केरल सरकार ने यह कहते हुए राज्यपाल के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया था कि वह राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को रोक रहे हैं। इसके बाद राज्यपाल ने 7 विधेयक राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भेजे थे। 

और पढ़ें:- क्या है एक्स-मुस्लिम मूवमेंट जो अमेरिका से भारत तक फैल चुका है?

राज्यपाल ने नहीं दी विधेयकों को मंजूरी

इनमें से पांच विधेयक विश्वविद्यालय कानून संशोधन से संबंधित थे, जिनका उद्देश्य राज्यपाल से राज्य में विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति की शक्ति छीनना है। इनमें से एक विधेयक एपीजे अब्दुल कलाम तकनीकी विश्वविद्यालय से संबंधित है। इससे पहले सितंबर 2023 में पारित केरल भूमि आवंटन (संशोधन) विधेयक को लेकर तो राज्य सरकार का राज्यपाल के साथ टकराव चरम पर पहुंच गया था। 

जब राज्यपाल ने विधेयक को मंजूरी देने से इनकार कर दिया तो माकपा और पिनराई सरकार गुस्से से आगबबूला हो गई थी। माकपा के गुंडों ने राज्यपाल पर हमला भी किया था। इसी तरह, केरल सहकारी दुग्ध विपणन महासंघ (संशोधन) विधेयक पर भी राज्यपाल को आपत्ति है। 

उनका कहना है कि यह लोकतंत्र की भावना और सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है। राज्यपाल का तर्क है कि जो लोग डेयरी किसानों के प्रतिनिधि नहीं हैं, विधेयक के जरिए उन्हें अधिकार देकर हेर-फेर किया जा सकता है। 

केरल लोकायुक्त संशोधन विधेयक पर उन्होंने यह कहते हुए हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था कि यह लोकायुक्त को नख-दंत विहीन एक निरर्थक निकाय बना देगा। हालांकि राष्ट्रपति ने इस विधेयक को मंजूरी दे दी थी, लेकिन चार विधेयकों को अस्वीकार कर दिया था। राष्ट्रपति के पास अब दो ही विधेयक लंबित हैं। 

राष्ट्रपति ने जिन चार विधेयकों को मंजूरी नहीं दी, वे हैं-

  1. केरल विश्वविद्यालय कानून (संशोधन नंबर-2) विधेयक-2022 : इसका उद्देश्य राज्यपाल को विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के पद से हटाना है।  
  2. विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) विधेयक-2021: इसका उद्देश्य राज्यपाल को बाहर रखना और सरकार को अपीलीय न्यायाधिकरण नियुक्त करने का अधिकार देना है।
  3. विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) विधेयक-2022: यह कुलपति के चयन के लिए खोज समिति के विस्तार से संबंधित है।  
  4. मिल्मा यानी केरल सहकारी दुग्ध विपणन महासंघ (संशोधन) विधेयक-2022: इसका उद्देश्य नामित सदस्यों के माध्यम से केरल सहकारी दुग्ध विपणन महासंघ पर ‘कब्जा’ करना है।

कानूनी विशेषज्ञ राष्ट्रपति के खिलाफ केरल सरकार के अदालत जाने के कदम का समर्थन नहीं कर रहे हैं। इस संबंध में वरिष्ठ अधिवक्ता, कानूनी सलाहकार और राजनीतिक टिप्पणीकार के. रामकुमार ने कहा कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 361 राष्ट्रपति, राज्यपालों और राजप्रमुखों को संरक्षण प्रदान करता है। इसमें प्रावधान है कि –

  1. राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल या राजप्रमुख अपने कार्यालय की शक्तियों और कर्तव्यों के प्रयोग व प्रदर्शन या उन शक्तियों और कर्तव्यों के प्रयोग और प्रदर्शन में उनके द्वारा किए गए या किए जाने वाले किसी भी कार्य के लिए के लिए किसी भी अदालत के जवाबदेह नहीं होंगे।
  2. अनुच्छेद 61 के अनुसार, किसी शिकायत की जांच के लिए संसद के किसी सदन द्वारा नियुक्त या नामित कोई भी न्यायालय, न्यायाधिकरण या संस्था राष्ट्रपति के आचरण को जांच के दायरे में ला सकती है।
  3. राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल या राजप्रमुख के खिलाफ उनके कार्यकाल के दौरान किसी भी अदालत में कोई भी आपराधिक कार्यवाही शुरू या जारी नहीं रखी जा सकती है।
  4. राष्ट्रपति या राज्यपाल या राजप्रमुख के लिए कोई भी अदालत गिरफ्तारी वारंट जारी नहीं कर सकती है।
  5. राष्ट्रपति या राज्यपाल के खिलाफ उनकी व्यक्ति क्षमता में किए गए कार्यों पर दीवानी कार्यवाही केवल 2 महीने की पूर्व सूचना के बाद ही की जा सकती है।

कानूनी विशेषज्ञ नहीं कर रहे समर्थन

राज्य के जाने-माने अधिवक्ता और राजनीतिक टिप्पणीकार जयशंकर का भी यही कहना है कि इन सबके बावजूद यदि राज्य सरकार देश के राष्ट्रपति के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में गई है तो उसका मामला टिक नहीं पाएगा। 

शायद इसीलिए राज्य सरकार ने प्रतिवादी के रूप में (राष्ट्रपति के) सचिव का नाम रखा है। राज्य सरकार केवल उन लोगों के लिए क्षमादान के मामलों में कुछ राहत की उम्मीद कर सकती है, जो मृत्यु दंड के अदालती फैसले का सामना कर रहे हैं। 

जयशंकर ने क्षमादान और दया याचिका पर निर्णय लेने में 11 वर्ष की देरी का हवाला देते हुए राजीव गांधी के हत्यारों की मौत की सजा को उम्रकैद में बदलने के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का उदाहरण दिया, जिसमें तीनों हत्यारे संथन, मुरुगन और पेरारिवलम फांसी से बच गए थे। 

हालांकि इस मामले में सर्वोच्च नयायालय ने केंद्र के उस तर्क को को खारिज किया था कि उसकी दया याचिका पर निर्णय लेने कोई अनुचित देरी नहीं हुई थी। साथ ही, यह भी कहा था कि राष्ट्रपति को संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत छूट प्राप्त है। उन्होंने केरल सरकार के मामले में बेहतर यही होगा कि हम इंतजार करें और देखें।

उधर, अतिंगल लोकसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी और केंद्रीय मंत्री वी. मुरलीधरन ने मीडिया से कहा कि राष्ट्रपति के खिलाफ केरल सरकार का सर्वोच्च न्यायालय जाने का फैसला चौंकाने वाला है। 

आज तक किसी सरकार या पार्टी ने ऐसा नहीं किया। यह इस तथ्य को रेखांकित करता है कि माकपा राष्ट्रपति विरोधी है। वह महिला विरोधी होने के साथ-साथ वनवासी समुदाय की भी विरोधी है। राष्ट्रपति का अपमान करने की माकपा की कोशिश हास्यास्पद है।

सच तो यह है कि एलडीएफ सरकार वनवासियों के धन का दुरुपयोग करती है। यहां तक कि उन्हें छात्रवृत्ति भी नहीं देती है। लेकिन कांग्रेस का रुख माकपा के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ एलडीएफ के जैसा ही है। 

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और एर्नाकुलम जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष मोहम्मद शियास का कहना है कि यदि विधेयक पारित होते हैं, तो राज्यपाल से यह उम्मीद की जाती है कि वे इनका समर्थन करें। इसी तरह, यदि ऐसे विधेयक राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजे जाते हैं, तो उन्हें रोका नहीं जाना चाहिए।

राज्य सरकार व्यर्थ ही राज्यपाल और राष्ट्रपति से टकराव मोल ले रही है।

बहरहाल, राज्य में अधिकांश लोगों को लगता है कि राज्य सरकार व्यर्थ ही राज्यपाल और राष्ट्रपति से टकराव मोल ले रही है। इससे उसे कुछ हासिल नहीं होगा। बेवजह के कानूनी पचड़ों में पैसा, समय और शक्ति लगाने के बजाय राज्य सरकार कुछ सकारात्मक काम करे। 

राज्य में कर्मचारियों को समय पर वेतन नहीं मिल रहा है। सरकारी कर्मचारियों की पेंशन और बुजुर्गों को कल्याण पेंशन देने में भी सरकार आनाकानी कर रही है। पुलिसकर्मियों को आवश्यक वाहन और ईंधन बिल आदि का भुगतान करने के लिए भी पैसे नहीं मिलते हैं। यह स्थिति ठीक नहीं है।

और पढ़ें:- ‘I.N.D.I.A.’ नाम के इस्तेमाल को लेकर याचिका, हाईकोर्ट ने मांगा आखरी जवाब

Tags: Governor Dr. Arif Mohammad KhanKerala GovernmentPresident Draupadi MurmuSupreme Courtकेरल सरकारराज्यपाल डॉ. आरिफ मोहम्मद खानराष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मूसुप्रीम कोर्ट
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