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पाप में जन्मा पंचशील समझौता: भारत के लिए आज भी चुनौती।

पंचशील समझौते के बाद 'हिंदी-चीनी भाई-भाई' के नारे लगे, लेकिन चीन ने 1962 में भारत पर हमला करके इस भाईचारे को धोखा दिया।

Akash Gaur द्वारा Akash Gaur
4 July 2024
in इतिहास, भू-राजनीति, समीक्षा
पंचशील समझौता, तिब्बत, चीन, भारत, जवाहरलाल नेहरू
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चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पंचशील समझौते की तारीफ करते हुए इसे वैश्विक शांति और सहयोग का आदर्श बताया है। उन्होंने इस समझौते की 70वीं वर्षगांठ के अवसर पर कहा कि यह दुनिया में बढ़ते संघर्षों को कम करने का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। चीनी राष्ट्रपति ने पंचशील सिद्धांतों की प्रशंसा करते हुए कहा कि ये सिद्धांत आज भी अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए महत्वपूर्ण हैं और बेहतर भविष्य के लिए एकता, सहयोग, संवाद, और आपसी समझ को बढ़ावा देने का तरीका हैं।

पंचशील सिद्धांत: परिचय

पंचशील सिद्धांतों की शुरुआत 29 अप्रैल, 1954 को भारत, चीन और म्यांमार के बीच सीमा विवाद सुलझाने के उद्देश्य से हुई थी। इन सिद्धांतों में पांच प्रमुख बिंदु शामिल हैं:

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  1. एक-दूसरे की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान
  2. गैर-आक्रामकता
  3. एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना
  4. समानता और पारस्परिक लाभ
  5. शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व

चीन में इन्हें ‘शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के 5 सिद्धांत’ कहा गया। इस समझौते के समय चीन के प्रधानमंत्री झ़ोउ एनलाई थे।

ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

पंचशील समझौते के बाद ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ के नारे लगे, लेकिन चीन ने 1962 में भारत पर हमला करके इस भाईचारे को धोखा दिया। यह जवाहरलाल नेहरू की दूरदर्शिता-हीन सोच का परिणाम था, क्योंकि उन्होंने चीन के फेंके हुए पास में आकर देश की सुरक्षा व्यवस्था की अनदेखी की। इस समझौते को उस समय ऐतिहासिक बताया गया, लेकिन बाद में यह एक बड़ी भूल साबित हुई।

पंचशील समझौते का प्रभाव

इस समझौते के तहत भारतीयों को चीन नियंत्रित जमीन में स्थित कैलाश मानसरोवर जैसे पवित्र हिन्दू स्थलों में दर्शन की अनुमति मिली। 15 मई को संसद में जवाहरलाल नेहरू ने तिब्बत में यथास्थिति को मान्यता दी, जो कि एक स्वतंत्र राष्ट्र था, लेकिन चीन के कब्जे में था। इस प्रकार नेहरू ने चीन के साम्राज्यवादी कृत्य को मान्यता दे दी।

आलोचनात्मक दृष्टिकोण

कॉन्ग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी ने संसद में खुल कर इस समझौते का समर्थन किया, लेकिन आज़ादी के समय कॉन्ग्रेस अध्यक्ष रहे आचार्य JB कृपलानी ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि चीन ने तिब्बत पर अत्याचार किया है और इसे पाप में जन्मा समझौता बताया।

कूटनीतिक कमजोरी

बीजिंग में भारत के राजदूत N राघवन और चीन के उप विदेश मंत्री झांग हांफू के बीच इस समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे। इसके तहत भारत तिब्बत को लेकर अपना प्रभाव खोता चला गया। सीमा विवाद आज भी वैसे का वैसा ही है। 

हनीट्रैप और भारतीय कूटनीति

बीजिंग में पदस्थापित भारत के राजनयिक TN कौल चीन की एक महिला से प्यार में थे और उससे शादी करना चाहते थे। यानी, चीन ने हनीट्रैप के खेल का बखूबी इस्तेमाल किया। NT पिल्लई ने तत्कालीन पीएम को याद दिलाया कि विदेश मंत्रालय के अधिकारियों को विदेशी महिला से शादी से पहले केंद्र सरकार की अनुमति लेनी ज़रूरी है। एक तो लड़की के बारे में कुछ पता नहीं था, ऊपर से कौल पहले से ही शादीशुदा थे। उनके 2 बच्चे भी थे। सबसे बड़ी बात, वो भारत की तरफ से मोलभाव की जिम्मेदारी सँभाल रहे थे।

निष्कर्ष

पंचशील समझौते की 70वीं वर्षगांठ पर चीन की तारीफ से यह समझौता फिर से चर्चा में है। यह समझौता भारत-चीन संबंधों में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, लेकिन इसके परिणामस्वरूप भारत ने तिब्बत पर अपना प्रभाव खो दिया और चीन ने भारत पर आक्रमण किया। आज भी भारत और चीन के बीच सीमा विवाद जारी है। इस समझौते ने भारत की कूटनीति और सुरक्षा नीति में कई कमजोरियों को उजागर किया है, जो आज भी चर्चा का विषय है।

और पढ़ें:- तिब्बत के स्थानों के नाम बदलकर चीन को भारत ने दिया करारा जवाब

Tags: ChinaIndiaJawaharlal NehruPanchsheel AgreementTibetचीनजवाहरलाल नेहरूतिब्बतपंचशील समझौताभारत
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