आरक्षण का मुद्दा गर्म है। अमेरिका में राहुल गांधी आरक्षण पर नई बहस छेड़ देते हैं, तो कभी अखिलेश यादव कहते हैं बीजेपी आरक्षण खत्म करना चाहती है। संसद से लेकर सड़क तक चल रही बहस के बीच बहनजी चुप थीं। लेकिन कब तक चुप रहतीं। आखिरकार मैदान में खुलकर उतरना पड़ा। वसीम बरेलवी की एक शायरी है कि जो ज़िंदा हों तो ज़िंदा नज़र आना ज़रूरी है। इसी तरह सियासत के अखाड़े में भी आपको ख़ुद को ‘ज़िंदा’ दिखाना पड़ता है। मायावती भी राहुल गांधी के आरक्षण राग के खिलाफ उतर ही आईं। जता दिया कि आरक्षण की ठेकेदारी राहुल बाबा या अखिलेश यादव की बपौती नहीं है। आखिर मायावती को क्यों ऐसा करने की जरूरत पड़ी? इस पर भी बात करेंगे लेकिन उससे पहले राहुल गांधी और मायावती के आरक्षण पर हालिया बयानों को जानते हैं।
‘कांग्रेस आरक्षण खत्म करने की साजिश में वर्षों से जुटी’
मायावती ने अपने आधिकारिक एक्स अकाउंट से सिलसिलेवार आठ पोस्ट किए हैं। पांच पोस्ट सोमवार को और तीन मंगलवार यानी आज किया गया है। इसमें मायावती ने राहुल गांधी और कांग्रेस पर आरक्षण विरोधी होने का आरोप लगाया है। मायावती ने सोमवार को एक्स पर पोस्ट में लिखा, ’केन्द्र में काफी लम्बे समय तक सत्ता में रहते हुए कांग्रेस पार्टी की सरकार ने ओबीसी आरक्षण को लागू नहीं किया और ना ही देश में जातीय जनगणना कराने वाली यह पार्टी अब इसकी आड़ में सत्ता में आने के सपने देख रही है। इनके इस नाटक से सचेत रहें, जो आगे कभी भी जातीय जनगणना नहीं करा पाएगी। अब कांग्रेस पार्टी के सर्वेसर्वा श्री राहुल गांधी के इस नाटक से भी सतर्क रहें, जिसमें उन्होंने विदेश में यह कहा है कि भारत जब बेहतर स्थिति में होगा, तो हम SC, ST, OBC का आरक्षण खत्म कर देंगे। इससे स्पष्ट है कि कांग्रेस वर्षों से इनके आरक्षण को खत्म करने के षडयंत्र में लगी है। इन वर्गों के लोग कांग्रेसी नेता श्री राहुल गांधी के दिए गए इस घातक बयान से सावधान रहें, क्योंकि यह पार्टी केन्द्र की सत्ता में आते ही, अपने इस बयान की आड़ में इनका आरक्षण जरूर खत्म कर देगी। ये लोग संविधान व आरक्षण बचाने का नाटक करने वाली इस पार्टी से जरूर सजग रहें। जबकि सच्चाई में कांग्रेस शुरू से ही आरक्षण-विरोधी सोच की रही है। केन्द्र में रही इनकी सरकार में जब इनका आरक्षण का कोटा पूरा नहीं किया गया, तब इस पार्टी से इनको इंसाफ ना मिलने की वजह से ही बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने कानून मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। लोग सावधान रहें। कुल मिलाकर, जब तक देश में जातिवाद जड़ से खत्म नहीं हो जाता है, तब तक भारत की स्थिति अपेक्षाकृत बेहतर होने के बावजूद भी इन वर्गों की सामाजिक, आर्थिक व शैक्षणिक हालत बेहतर होने वाली नहीं है। अतः जातिवाद के समूल नष्ट होने तक आरक्षण की सही संवैधानिक व्यवस्था जारी रहना जरूरी।‘
‘10 साल की सत्ता में कांग्रेस ने दलितों के लिए कुछ नहीं किया’
मायावती यहीं नहीं रुकीं। चौबीस घंटे के अंदर ही एक बार फिर उन्होंने एक्स पर तीन पोस्ट किए। इसमें कांग्रेस और राहुल गांधी के साथ समाजवादी पार्टी को भी घेरा गया है। मायावती ने एक्स पर लिखा, ‘कांग्रेस नेता श्री राहुल गांधी की अब यह सफाई कि वे आरक्षण के विरुद्ध नहीं हैं, स्पष्टतः गुमराह करने वाली गलतबयानी। केन्द्र में बीजेपी से पहले इनकी 10 साल रही सरकार में उनकी सक्रियता में इन्होंने सपा के साथ मिलकर SC/ST का पदोन्नति में आरक्षण बिल पास नहीं होने दिया इसका यह प्रमाण। इनके द्वारा देश में आरक्षण की सीमा को 50 प्रतिशत से बढ़ाने की बात भी छलावा, क्योंकि इस मामले में अगर इनकी नीयत साफ होती, तो कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकारों में यह कार्य जरूर कर लिया गया होता। कांग्रेस ने न तो ओबीसी आरक्षण लागू किया और न ही SC/ST आरक्षण को सही से लागू किया। इससे स्पष्ट है कि जब कांग्रेस सत्ता में नहीं होती है, तो इन उपेक्षित SC/ST/OBC वर्गों के वोट के स्वार्थ की खातिर इनके हित व कल्याण की बड़ी-बड़ी बातें करती है, लेकिन जब सत्ता में रहती है तो इनके हित के विरुद्ध लगातार कार्य करती है। ये लोग इनके इस षडयंत्र से सजग रहें।‘
राहुल ने आरक्षण पर कहा क्या है
ये तो बात हुई मायावती की। अब राहुल गांधी ने आरक्षण पर क्या नया राग छेड़ा है, ये जानते हैं। राहुल गांधी अमेरिका के दौरे पर हैं। यहां पहले वह यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास गए और इसके बाद वाशिंगटन की प्रतिष्ठित जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी। विश्वविद्यालय के छात्रों को राहुल गांधी जब संबोधित कर रहे थे, तभी एक स्टूडेंट ने पूछा कि भारत में आरक्षण कब तक जारी रहेगा। इस पर राहुल गांधी ने जवाब दिया, ‘भारत में जब आरक्षण के लिहाज से निष्पक्षता होगी, तब हम आरक्षण को खत्म करने के बारे में सोचेंगे। अभी भारत इसके लिए एक निष्पक्ष जगह नहीं है। वित्तीय आंकड़ों को देखिए तो आदिवासियों को 100 रुपये में से 10 पैसे मिलते हैं, दलितों को 100 रुपये में से 5 रुपये मिलते हैं और अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी के लोगों को भी लगभग इतने ही पैसे मिलते हैं। सच्चाई यह है कि उनको उचित भागीदारी नहीं मिल पा रही है। समस्या यह है कि भारत की 90 प्रतिशत आबादी भागीदारी करने में सक्षम नहीं है। भारत के बिजनेस लीडर की सूची देखें। टॉप-200 में एक ओबीसी है, जबकि वे भारत की आबादी का 50 प्रतिशत हैं।‘
बयान आते ही राहुल पर हमलावर मायावती
राहुल गांधी का यह बयान आने के बाद बसपा सुप्रीमो ने तीखा हमला बोल दिया। मायावती ने जातिगत आरक्षण की राहुल गांधी की तथाकथित मुहिम को सिर्फ सत्ता प्राप्ति का नाटक बताया। वहीं यह भी कहा कि कांग्रेस पार्टी शुरुआत से आरक्षण की विरोधी रही है। इसके लिए मायावती ने बाबासाहेब अंबेडकर के कानून मंत्री पद से इस्तीफे का हवाला दिया। मायावती ने कहा है कि कांग्रेस ने दस साल की सत्ता रहते हुए न तो ओबीसी आरक्षण लागू किया और न ही एससी-एसटी आरक्षण सही तरह से लागू किया। मायावती ने राहुल गांधी और कांग्रेस को आरक्षण विरोधी बताने के साथ अखिलेश यादव को भी निशाने पर लिया है। मायावती ने यूपीए सरकार के दौरान एससी-एसटी प्रमोशन में आरक्षण बिल अटकाने को कांग्रेस और सपा की मिलीभगत करार दिया।
राहुल गांधी पर क्यों आक्रामक हुईं मायावती?
अब आते हैं कि मायावती ने आरक्षण पर आक्रामक रुख क्यों अपनाया है? दरअसल मायावती और उनकी पार्टी बसपा के लिए पिछले दो चुनाव के नतीजे काफी निराशाजनक रहे हैं। 2024 लोकसभा चुनाव के दौरान यूपी में सपा और कांग्रेस का गठबंधन होने के बाद दलित वोटों का एक हिस्सा भी बहनजी से छिटक गया है। लोकसभा चुनाव के बाद लोकनीति-सीएसडीएस ने एक पोस्ट पोल सर्वे किया था। इसके मुताबिक यूपी में जाटव वोटों का 25 प्रतिशत इंडिया गठबंधन के हिस्से में गया। मायावती को 44 प्रतिशत और बीजेपी को इस समुदाय के 24 प्रतिशत वोट मिले। आम तौर पर जाटव वोट सपा की तरफ नहीं जाता था। यहां तक कि जब 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा का गठबंधन हुआ तो सपा को जाटव वोट ट्रांसफर नहीं हुए थे और पार्टी पांच सीटों पर सिमट गई थी। इस लोकसभा चुनाव में जाटव के अलावा गैर-जाटव में भी सपा ने बड़ी सेंधमारी की। लोकनीति-सीएसडीएस के एक सर्वे के मुताबिक इंडिया को 56, एनडीए यानी बीजेपी को 29 और बीएसपी को 15 प्रतिशत गैर-जाटव वोट मिले। लोकसभा चुनाव के दौरान सपा-कांग्रेस ने संविधान और आरक्षण का मुद्दा लगातार जिंदा रखा। इसका नतीजा यह हुआ कि बसपा को अपने कोर वोटर के एक हिस्से से भी हाथ धोना पड़ा। जहां 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा का किसी तरह खाता खुल पाया था, वहीं इस लोकसभा चुनाव में पार्टी एक बार फिर शून्य पर पहुंच गई। मायावती के लिए ज्यादा बड़ी चिंता जाटव वोटों में बिखराव भी है। मायावती को यह भी डर है कि अगर दलित वोट कांग्रेस की तरफ आने वाले चुनावों में ट्रांसफर होने लगे, तो फिर कांग्रेस दलित-मुस्लिम का अपना खोया आधार फिर से वापस पा सकती है।
दलित राजनीति में चंद्रशेखर का उभार भी बहनजी की चिंता
सपा-कांग्रेस का गठबंधन ही मायावती के लिए इकलौती चिंता नहीं है। दलित राजनीति में मायावती का कमजोर होना और उसी बीच चंद्रशेखर आजाद ‘रावण’ का उभरना बहनजी के लिए नई मुसीबत है। 2017 के सहारनपुर कांड से चर्चा में आए चंद्रशेखर एक युवा और जुझारू नेता की अपनी छवि बना रहे हैं। पश्चिमी यूपी की इस बेल्ट में जाटव वोट चुनावी जीत-हार में अहम भूमिका निभाते रहे हैं। चंद्रशेखर आजाद ने पहले भीम आर्मी बनाई और फिर आजाद समाज पार्टी के नाम से राजनीतिक संगठन। चंद्रशेखर पश्चिमी यूपी में दलित राजनीति का एक चेहरा बन चुके हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में नगीना सीट से उनकी जीत इसका प्रमाण है। ऐसे में मायावती को यह अंदेशा भी है कि कहीं उनका जाटव वोट बैंक चंद्रशेखर आजाद की ओर शिफ्ट न हो जाए। इसी वजह से मायावती ने इस बार ऐलान किया है कि उनकी पार्टी 10 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में उतरेगी। इससे पहले आम तौर पर बसपा उपचुनाव नहीं लड़ती थी। यूपी का उपचुनाव मायावती के लिए लिटमस टेस्ट की तरह होगा, क्योंकि अगर इसमें भी उनके आधार वोटों में सेंध लगनी जारी रहती है, फिर 2027 के यूपी विधानसभा चुनाव में मायावती की सियासी हैसियत चुनाव लड़ने लायक भी नहीं रह जाएगी।