आज पंजाब की स्थिति लगभग वैसी ही हो गई है जैसे तमिलनाडु, केरल समेत दक्षिण के अन्य राज्यों में 1980 और 1990 के दशक में हुआ करती थी
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धर्मांतरण के जाल में फंसा पंजाब, तेजी से बढ़ रहे ‘पगड़ी वाले ईसाई’: 70% गांव में मिशनरी की पकड़, वोट बैंक के लिए चुप बैठी सरकार?

राज्य सरकार मौन, कारण वोट बैंक?

Akash Sharma Nayan द्वारा Akash Sharma Nayan
3 November 2024
in चर्चित, मत, राजनीति
पंजाब धर्मांतरण

पंजाब में तेजी से हो रहा सिखों का धर्मांतरण

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भारत में धर्मांतरण के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। धर्मातरण के इस जाल में पूरा देश उलझता जा रहा है। भोले-भाले वनवासी जनजातीय लोगों को आटा, दाल, चावल और इलाज का झूठा प्रलोभन देकर ईसाई बनाकर मिशनरी ने इस घातक जाल के धागे जोड़ने शुरू किए थे। अब यह एक ऐसा भीषण जाल बन चुका है जिसमें दलित, पिछड़े, सर्वण…सब उलझे हुए नजर आ रहे हैं। धर्मांतरण का यह घातक जाल उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पूर्व से लेकर पश्चिम तक फैला हुआ है। इस जाल की जद में पंजाब भी है।

पंजाब में धर्मांतरण की स्थिति ऐसी है कि हाल ही में भाजपा प्रवक्ता आर.पी. सिंह ने सिखों के धर्म स्थल गुरुद्वारा का प्रबंधन देखने वाली समिति ‘शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी’ को लेकर दावा किया था कि यह जल्द ही ‘शिरोमणि ईसाई कमेटी’ बन जाएगी। उनके इस बयान पर जमकर बवाल जरूर मचा था। लेकिन सच्चाई यह है कि पंजाब में ईसाई मिशनरियों द्वारा बड़े पैमाने पर धर्मांतरण कराया जा रहा है। इसके लिए ईसाई मत से जुड़े लोग गांव-गांव जाकर प्रलोभन देते हैं और गैर-कानूनी ढंग से धर्मांतरित कर रहे हैं।

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यह वही पंजाब है जहां धर्म के लिए सिख गुरुओं ने अपना बलिदान दे दिया था। केवल गुरु तेगबहादुर और गुरु गोविंद सिंह ने ही नहीं बल्कि नन्हे किन्तु वीर चारों साहिबजा़दों ने भी सर्वोच्च बलिदान दिया था। लेकिन आज उनकी परंपरा के कुछ लोग ईसाइयों के चंगुल में फंसकर पहले तो धर्मांतरित हुए और अब ईसाइयों की धर्म की दुकान को आगे बढ़ा रहे हैं।

साल 2011 में हुई जनगणना के अनुसार पंजाब में ईसाइयों की आबादी 1.26% ही है। लेकिन जानकार ऐसा दावा करते हैं कि राज्य में ईसाइयों की संख्या 15% तक पहुंच गई है। इसका सीधा मतलब यह है कि सरकारी आंकड़ों और जमीनी हकीकत में जमीन-आसमान का अंतर है। इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2022 की शुरुआत में जब पंजाब में विधानसभा चुनाव की तैयारी चल रही थी, तब सूबे में एक बड़ा वर्ग ऐसा सामने आया था जो खद को दलित भी बताता है और ईसाई भी। यह खबर सामने आने के बाद इस पर काफी चर्चा भी हुई थी। लेकिन चर्चा का कोई अर्थ नहीं निकला। वास्तव में खुद को दलित और ईसाई बताने वाले वो लोग हैं जिन्हें मिशनरियों ने कन्वर्ट कर ईसाई बना दिया है।

पंजाब में ईसाई मिशनरियों द्वारा सिखों के धर्मांतरण की स्थिति का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि साल 2022 में अकाल तख्त के तत्कालीन जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह को सामने आकर धर्मांतरण विरोधी कानून की मांग करनी पड़ गई थी। यही नहीं, ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने यह भी कहा था कि ईसाई मिशनरियां झूठे चमत्कार, इलाज और कपट से सिखों का जबरन धर्म परिवर्तन कराने में जुटी हुई हैं। पंजाब के सिखों और हिंदुओं को ईसाई बनाने के लिए गुमराह किया जा रहा है। उन्होंने यह भी कहा था कि सिर्फ और सिर्फ वोट बैंक की राजनीति के चलते सरकार ईसाई मिशनरियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर रही है। ज्ञानी हरप्रीत सिंह का यह भी कहना था कि पंजाब की सीमा पाकिस्तान से लगती है। ऐसे में यहां के गरीब हिंदुओं और सिखों को धर्मांतरित करने के लिए ‘विदेशी ताकतें’ फंडिंग कर रही हैं।

The new phenomenon in Punjab: charismatic Pentecostal Christian preachers. And they are attracting followers and obviously make Sikh groups uncomfortable. Pick latest issue of @IndiaToday for details. Grab some glimpses here: https://t.co/zjB27myUKo pic.twitter.com/VVjlVusJKJ

— Anilesh Mahajan 🇮🇳 (@anileshmahajan) November 4, 2022

रिपोर्ट्स से पता चलता है कि पूरे पंजाब में ईसाई मिशनरी सक्रिय होकर हिंदुओं और सिखों को ईसाई बना रही है। हालांकि पंजाब से दूर बैठे लोगों को ऐसा लगता होगा कि यह सब दबे पांव हो रहा है। लेकिन, जालंधर जिले के खांबड़ा गांव में बने चर्च में हर रविवार प्रार्थना करने के लिए बाइक से लेकर कार और किराए की स्कूली बसों में पहुंचने वाले 10-15 हजार लोगों को देखने के बाद यह स्पष्ट हो जाता है कि धर्मांतरण का ‘बाजार’ पंजाब में बहुत तेजी से फल-फूल रहा है।

इंडिया टुडे की रिपोर्ट की मानें तो जालंधर जिले के खांबड़ा गांव में एक साथ हजारों लोगों के जमा होने के पीछे जिस व्यक्ति का हाथ है उसका नाम है-पादरी अंकुर नरूला। अंकुर नरूला का जन्म यूं तो हिंदू खत्री परिवार में हुआ था। लेकिन, 2008 में ईसाई मिशनरी के संपर्क में आने के बाद उसने धर्मांतरण कर लिया। इसके बाद उसने ‘अंकुर नरूला मिनिस्ट्री’ की स्थापना की। पादरी बनने और अपने नाम की ‘मिनिस्ट्री’ शुरू करने के बाद अंकुर ने ‘चर्च ऑफ साइंस एंड वंडर्स’ की भी स्थापना की। अब अंकुर यहां चर्च बना रहा है। ऐसा दावा है कि ‘चर्च ऑफ साइंस एंड वंडर्स’ का निर्माण पूरा होने के बाद यह एशिया के सबसे बड़ा चर्च होगा। बेहद दिलचस्प बात यह है कि अंकुर ने इस चर्च की शुरुआत महज 3 लोगों को ‘ईसाई बनाकर’ की थी। लेकिन, बीते 16 सालों में यह संख्या 300000 (3 लाख) के आंकड़े को पार कर चुकी है।

गौरतलब है कि अंकुर नरूला ने खांबड़ा गांव के 65 एकड़ से अधिक क्षेत्र में ‘धर्मांतरण का साम्राज्य’ स्थापित किया हुआ है। इसके अलावा पंजाब के नौ जिलों तथा बिहार और बंगाल के साथ ही अमेरिका, कनाडा, जर्मनी और ग्रेटर लंदन के हैरो में भी नरूला के ठिकाने हैं। अंकुर नरूला को उसकी ईसाई मिशनरी से जुड़े हुए लोग या यह कहें कि धर्मांतरण का शिकार हुए लोग ‘पापा’ कहकर पुकारते हैं।

ऐसा दावा किया जाता है कि पंजाब में तेजी से बढ़ रहे धर्मांतरण के पीछे सबसे बड़ा हाथ अंकुर नरूला का ही है। साल 2011 की जनगणना के अनुसार, पूरे पंजाब में ईसाइयों की कुल जनसंख्या 348000 (3 लाख 48 हजार) थी। लेकिन, नरूला मिनिस्ट्री से जुड़े हुए लोगों की संख्या ही 3 लाख से अधिक हो चुकी है। इसका सीधा मतलब यह है कि पंजाब में, ईसाई मिशनरियों के धर्माणरण जाल में फंसकर ‘पगड़ी वाले ईसाईयों’ की संख्या में दिन दूना-रात चौगुना इजाफा हो रहा है।

यह बात तो सिर्फ जालंधर की थी। लेकिन सिर्फ जालंधर नहीं बल्कि अमृतसर में भी ईसाई मिशनरी ने सिखों को ‘पगड़ी वाला ईसाई’ बना दिया है। अमृतसर सिखों का सबसे पवित्र शहरों में से एक है। यहीं पवित्र स्वर्ण मंदिर भी है। लेकिन इस मंदिर से महज 20 किलोमीटर दूर स्थित सेहंसरा कलां गांव की सकरी गलियों में बना चर्च कथित तौर पर धर्मांतरण का केंद्र है। इस चर्च का पादरी गुरुनाम सिंह है। बड़ी बात यह है कि गुरुनाम एक पुलिसकर्मी भी है। इस चर्च में रविवार को प्रार्थना होती है। पादरी गुरुनाम सिंह का कहना है कि वह तो सिर्फ प्रार्थना कराता है। लेकिन, फिर सवाल यह उठता है कि अगर वह सिर्फ प्रार्थना कराता है तो लोग ईसाई कैसे बनते जा रहे हैं?

ईसाई मिशनरियों के लिए पंजाब और खासतौर से सिख धर्मांतरण की नई प्रयोगशाला नहीं है। ईसाइयों ने जब सिखों के अंतिम राजा महाराज दलीप सिंह को धर्मांतरित कर दिया था, तब पंजाब की आम जनता और भोले-भाले सिखों की क्या ही बिसात होगी। पंजाब में आज सैकड़ों पादरी नए हैं। इन पादरियों में अमृत संधू, रमन हंस, गुरनाम सिंह खेड़ा, कंचन मित्तल, हरजीत सिंह, सुखपाल राणा और फारिस मसीह कुछ बड़े नाम हैं। इनका नाम बड़ा इसलिए है क्योंकि ‘पगड़ी वाले ईसाइयों’ की संख्या बढ़ाने में इन पादरियों की ही ‘करतूत’ शामिल है। पंजाब में इनकी कई शाखाएं हैं और यूट्यूब पर लाखों फॉलोअर्स भी। यहां यह जानना महत्वपूर्ण है कि ये सभी पादरी बड़े पदों पर हैं। कुछ पेशे से डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, पुलिस तो कुछ कारोबारी और जमींदार भी हैं। वहीं कुछ ऐसे भी हैं जो नौकरी या काम छोड़कर प्रार्थना के नाम पर ‘धर्मांतरण का धंधा’ चला रहे हैं।

कपूरथला जिले के खोजेवाल गांव में बना ओपन डोर चर्च पूर्वी यूरोपीय प्रोटेस्टेंट डिजाइन का है। इस चर्च का पादरी हरप्रीत देओल जट्ट सिख है। इसकेऑफिस में बड़े-बड़े बाउंसर्स तैनात रहते हैं। इसी प्रकार बटाला के हरपुरा गांव का पादरी गुरनाम सिंह खेड़ा भी जट्ट सिख है और पेशे से डॉक्टर है। पटियाला के बनूर में स्थित चर्च ऑफ पीस का पादरी मित्तल बनिया है। चमकौर साहिब का रमन हंस मजहबी सिख है। मतलब सारे के सारे ‘पगड़ी वाले ईसाई’ हैं।

पंजाब में सिखों को ईसाई बनाने के धंधे और उसके लिए किए जा रहे तमाशे ने लाखों लोगों को चर्च तक पहुंचा दिया है। यह संख्या लगातार बढ़ रही है और कब रुकेगी यह कह पाना बेहद मुश्किल है। पंजाब के हालत ऐसे हैं कि यहां ईसाई मिशनरियां और नरूला जैसे लोगों की मिनिस्ट्री राज्य के सभी 23 जिलों में फैली हुई है। ईसाई मिशनरी पंजाब के माझा और दोआबा बेल्ट के अलावा मालवा में फिरोजपुर और फाजिल्का के सीमावर्ती इलाकों में सबसे अधिक सक्रिय हैं। पंजाब में ईसाइयत के प्रचार का बेड़ा उठाए लोगों की संख्या का कोई ठोस आंकड़ा नहीं हैं। लेकिन, इंडिया टुडे के रिपोर्ट के अनुसार पंजाब में पादरियों की संख्या 65000 के करीब है।

न्यूज नेशन ने अपनी एक रिपोर्ट में यूनाइटेड क्रिश्चियन फ्रंट के आधिकारिक आंकड़ों के हिसाब से बताया था कि पंजाब के 12,000 गांवों में से 8,000 गांवों में ईसाइयों की मजहबी समितियां बनी हुई हैं। वहीं अमृतसर और गुरदासपुर जिलों में ईसाइयों के 600-700 चर्च हैं। इनमें से करीब 70% चर्च पिछले 5 सालों में बनाए हैं।

कुल मिलाकर आज पंजाब की स्थिति लगभग वैसी ही हो गई है जैसे तमिलनाडु, केरल समेत दक्षिण के अन्य राज्यों में 1980 और 1990 के दशक में हुआ करती थी। हालांकि शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी धर्मांतरण पर अधिक चिंतित नहीं हैं। उनका कहना है, “लोग जिंदगी की समस्याओं के हल के लिए पादरियों के पास जाते हैं। देर-सबेर उन्हें सच्चाई पता चलेगी और वे मूल धर्म में लौट आएंगे।” लेकिन पंजाब में चल रहे ‘घर घर अंदर धर्मसाल’ जैसे अभियान बताते है कि स्थिति कितनी विस्फोटक हो चुकी है। ‘घर घर अंदर धर्मसाल’ अभियान के तहत सिख स्वयंसेवक अपने धर्म का प्रचार करने घर-घर जा रहे हैं।

इन सबके बीच सबसे बड़ा सवाल यह है कि पंज प्यारों की जमीन पर देखते ही देखते ‘पगड़ी वाले ईसाई’ आखिर छा कैसे गए? सरकार क्या कर रही है? क्या सिर्फ वोट बैंक के लिए धर्मांतरण की दुकानों और इसे चलाने वालों को खुली आजादी मिलती रहेगी? ये ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब देने में जितनी देरी होगी, धर्मांतरण माफिया की जड़ें उतनी ही मजबूत होती जाएंगी।

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