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दीपावली से एक सप्ताह पहले थी जितनी AQI, दीपावली के बाद उससे भी कम: हिंदू त्यौहार को प्रदूषण से जोड़ने वालों को आंकड़ों ने ही गलत साबित किया

Shiv Chaudhary द्वारा Shiv Chaudhary
2 November 2024
in चर्चित
दीपावली से एक सप्ताह पहले थी जितनी AQI, दीपावली के बाद उससे भी कम: हिंदू त्यौहार को प्रदूषण से जोड़ने वालों को आंकड़ों ने ही गलत साबित किया

फोटो साभार: Grok AI

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दीपावली बीत गई है और पिछले वर्षों की तरह ही इस बार भी दिल्ली में प्रदूषण का ठीकरा पटाखों के सिर फोड़ने का सिलसिला चल पड़ा है। सरकारी आंकड़ों के हिसाब से देखें तो दिल्ली के प्रदूषण में सोमवार (28 अक्टूबर) को पराली जलाए जाने से उठे धुएं की हिस्सेदारी करीब 2% थी जो अगले कुछ दिनों में कई गुना बढ़ गई और गुरुवार को यह आंकड़ा 28% तक पहुंच गया। ये दीपावली से ठीक पहले की ही बात है लेकिन फिर भी सोशल मीडिया के एक वर्ग द्वारा दिल्ली के सारे प्रदूषण का ठीकरा दीपावली के पटाखों पर फोडा जा रहा है।

दिल्ली की वायु गुणवत्ता बहुत खराब कैटेगरी में है और दिल्ली पिछले कुछ दिनों से दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल है लेकिन क्या इसके लिए सिर्फ दीपावली को जिम्मेदार ठहराया जाना सही है। क्या ऐसा कर दिल्ली की सरकार को उसकी विफलता के लिए क्लीन चिट देने की कोशिश की जा रही है।

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दिल्ली में पटाखों की बिक्री पर पूरी तरह से बैन लगा हुआ है, हालांकि कई हिस्सों में पटाखें जरूर चलाए गए हैं लेकिन क्या केवल पटाखों के चलते ही दिल्ली की AQI का स्तर खराब हुआ है? 30 अक्टूबर को दिल्ली का औसत AQI 307 था जो अगले यानि दीपावली पर बढ़कर 328 हुआ और 1 नवंबर को यह 339 पर पहुंच गया। हालांकि, प्रदूषण की यह स्थिति सिर्फ 2 दिन के लिए ही नहीं है बीते 23 अक्टूबर से 30 अक्टूबर से बीच एक भी दिन ऐसा नहीं था जब दिल्ली में AQI का स्तर खराब या बहुत खराब की श्रेणी में ना रहा हो।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड यानि CPCB के आंकड़ों को देखें तो 23 अक्टूबर को दिल्ली में AQI का स्तर 364 था जो दीपावाली के दिन से भी ज्यादा खराब स्थिति है। और ऐसा सिर्फ एक ही दिन नहीं हुआ 27 अक्टूबर को यानि दीपावली से 4 दिन पहले भी दिल्ली में AQI का स्तर 356 था। ये आंकड़े बताते हैं कि प्रदूषण के लिए बेशक दीपावली को जिम्मेदार ठहरा दिया जाए लेकिन जमीनी हकीकत ऐसी नहीं है।

दिल्ली के प्रदूषण के लिए पटाखे कितने जिम्मेदार है यह जानने के लिए IIT दिल्ली ने 2022 में एक स्टडी की थी। यह स्टडी Atmospheric Pollution Research जर्नल में प्रकाशित हुई थी। इसमें बताया गया था कि बेशक दीपावाली के पटाखों के चलते वायु प्रदूषण का स्तर खराब हुआ लेकिन प्रदूषण में पटाखों का असर 12 घंटों में ही कम हो गया था। इस स्टडी में शोधकर्ताओं ने पाया कि बायोमास यानि पराली इत्यादि जलाने से जो धुआं निकलता है, उसमें दीपावली के बाद तीव्र वृद्धि होती है। इस स्टडी में शामिल रहे आईआईटी दिल्ली के केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर विक्रम सिंह ने बताया था कि सर्दियों में पराली जलाने और तापने की ज्यादा बढ़ती जरूरत के चलते भी प्रदूषण के स्तर में बढ़ोतरी होती है।

दिल्ली में सिर्फ वायु प्रदूषण ही समस्या नहीं है बल्कि यमुना नदी का पानी भी बहुत प्रदूषित हो चुका है। कुछ ही दिनों में छठ का त्यौहार आने वाला है लेकिन यमुना पर तैरते जहरीले झागों से निपटने के लिए शायद ही दिल्ली सरकार के पास कोई ठोस नीति है। पिछले कई वर्षों से यमुना साफ करने की कसमें खा रहे केजरीवाल सत्ता छोड़ चुके हैं और उनके जगह लेने वाली सरकार की नई मुखिया आतिशी ने पुराना राग अलापते हुए दिल्ली के प्रदूषण के लिए हरियाणा और उत्तर प्रदेश को जिम्मेदार ठहरा दिया है।

यमुना के प्रदूषण से निपटने क्या वाकई मुश्किल है या सरकार इस पर काम करने के लिए उतनी तत्परता नहीं दिखा रही है जितनी दिखाई जानी चाहिए। प्रदूषण से निपटने के मामला में बीजेपी ने केजरीवाल पर भ्रष्टाचार के बड़े आरोप लगाए हैं। बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने दावा किया है कि पिछले 10 वर्षों में यमुना नदी की सफाई के लिए 7000 करोड़ रुपये दिए गए थे जिन्हें अरविंद केजरीवाल ने भ्रष्टाचार में खा लिया है। इन आरोपों में कितना दम है ये तो वक्त और बीजेपी ही बताएगी लेकिन प्रदूषण की समस्या जस की तस बनी हुई है इसमें कोई दो राय नहीं है।

प्रदूषण की वजह सिर्फ पराली या दीवाली ही नहीं हैं बल्कि वाहनों का धुआं और कंसट्रक्शन का काम जैसी चीजे भी प्रदूषण को बढ़ा रही हैं। दिल्ली सरकार ने प्रदूषण से निपटने के नाम पर ऑड-ईवन, स्मॉग टावर और आर्टिफिशियल रैन जैसे विकल्प दिए हैं लेकिन जमीनी स्तर पर वे कारगर साबित होते कम ही नजर आ रहे हैं। चीन, मैक्सिको और फ्रांस जैसी जगहों पर भी ऑड-ईवन को वायु प्रदूषण को कम करने के उपाय के रूप में लागू किया गया है लेकिन इसका असर को लेकर लोगों के बीच में बहस है। एक और लोग इसे प्रभावकारी मानते हैं जबकि कुछ लोग मानते हैं कि इसका असर नहीं होता है और सबके अपने तर्क है।

दिल्ली में साफ हवा की वकालत करने वाले समूह एनवायरोकैटलिस्ट्स के संस्थापक सुनील दहिया ने एक न्यूज पोर्टल से बातचीत में दावा किया है कि आर्टिफिशियल रैन और स्मॉग टॉवर जैसे चीजें प्रदूषण का समाधान नहीं हैं बल्कि वे केवल बैंडेज समाधान हैं यानि कुछ समय तक ही इनका असर रहता है। दिल्ली सरकार दूसरे राज्यों के ऊपर ठीकरा फोड़ रही है लेकिन उसकी अपनी तैयारी कितनी है यह भी हमें सोचना होगा।

स्रोत: Deepawali, Delhi, Air Pollution, Arvind Kejriwal, stubble burning, Pollution, दीपावली, दिल्ली, वायु प्रदूषण, अरविंद केजरीवाल, पराली, प्रदूषण,
Tags: air pollutionArvind KejriwalDeepawaliDelhiPollutionStubble Burningअरविंद केजरीवालदिल्लीदीपावलीपरालीप्रदूषणवायु प्रदूषण
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1 November 2025

भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में बिहार की राजनीति ने कई बार देश के सामने गंभीर सबक पेश किया है। 1990 के दशक में राज्य में...

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