अलीगढ़: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) में सिर्फ अल्पसंख्यकों को आरक्षण पर सवाल उठाए हैं। अलीगढ़ की खैर सीट उन 9 विधानसभा सीटों में है, जहां उपचुनाव हो रहे हैं। सीएम योगी ने खैर में एक रैली को संबोधित करते हुए एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे पर बड़ा बयान दिया है। सीएम ने सवाल उठाया कि जब एक सेंट्रल यूनिवर्सिटी के रूप में एएमयू केंद्र सरकार के पैसे से चलती है, तो यहां वंचितों और पिछड़ों को आरक्षण क्यों नहीं दिया जाता है।
‘भारत का संविधान आरक्षण देता है, पर AMU में क्यों नहीं?’
योगी आदित्यनाथ ने खैर की जनसभा में कहा, ‘अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय एक अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय के रूप में रहना चाहिए, या सामान्य संस्था के रूप में रहना चाहिए, कल माननीय उच्चतम न्यायालय में इस पर बहस हो रही थी। ये कैसे हो सकता है कि भारत के संसाधनों से पलने वाला, भारत की जनता के टैक्स से चलने वाला एक ऐसा संस्थान जो अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़ी जाति के लोगों को कोई आरक्षण नहीं देता है। लेकिन वहां पर मुसलमानों के 50 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था वे लोग अपने स्वयं के माध्यम से करने का प्रयास करते हैं। और यही मामला चल रहा है माननीय उच्चतम न्यायालय में। बहनों और भाइयों, भारत का संविधान अनुसूचित जाति-जनजाति को और मंडल कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर पिछड़ी जाति के लोगों को आरक्षण की सुविधा देता है। लेकिन यह सुविधा अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में क्यों नहीं मिल पाती है?’
#WATCH | Aligarh: Uttar Pradesh CM Yogi Adityanath says "You must have seen yesterday the Supreme Court was hearing a matter on whether Aligarh Muslim University should be made a minority university or should it remain as a general institution. How is it possible that an… pic.twitter.com/7dDT4LfDYa
— ANI (@ANI) November 9, 2024
दलितो-पिछड़ों को भी AMU में मिले आरक्षण: योगी
सीएम योगी ने दलितों-पिछड़ों को भी एएमयू में आरक्षण दिए जाने की मांग करते हुए कहा, ‘जब भारत का पैसा लगा है, तो अनुसूचित जाति-जनजाति और पिछड़ी जाति के लोगों को भी वहां आरक्षण की सुविधा का लाभ मिलना चाहिए। नौकरी में भी मिलना चाहिए और अनुसूचित जाति व पिछड़ी जाति के बच्चों को प्रवेश में भी वहां यह सुविधा प्राप्त होनी चाहिए। लेकिन क्यों बंद किया गया? क्योंकि कांग्रेस नहीं चाहती है, समाजवादी पार्टी नहीं चाहती है, बहुजन समाज पार्टी नहीं चाहती है, क्योंकि इन सबको वोट चाहिए वोट। वोट बैंक को बचाने के लिए ये लोग आपकी भावना के साथ और राष्ट्रीय एकता और अखंडता के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। राष्ट्रीय अस्मिता के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।‘
AMU के अल्पसंख्यक दर्जे पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की बेंच ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का अल्पसंख्यक दर्जा फिलहाल बरकरार रखा है। सात जजों की बेंच का फैसला 4:3 के अनुपात में आया। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा ने एकमत होकर फैसला दिया। वहीं जस्टिस दीपांकर दत्ता, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एससी शर्मा का फैसला अलग रहा। सुप्रीम कोर्ट ने हालांकि अपने फैसले में साफ किया है कि एक नई बेंच इस संबंध में गाइडलाइंस बनाएगी। सीजेआई ने अपने फैसले में कहा कि तीन सदस्यों वाली एक नियमित बेंच एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे पर अंतिम निर्णय लेगी। यह बेंच सात जजों की बेंच के फैसले के निष्कर्षों और मानदंड को आधार बनाएगी। तीन जजों की नियमित बेंच आगे तय करेगी कि एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा रहेगा या नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने अल्पसंख्यक दर्जे का मानदंड तय किया है।
अल्पसंख्यक संस्थानों को किया जा सकता है नियंत्रित
AMU पर सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले की बड़ी बात यह है कि संविधान के अनुच्छेद-30 में मिले अधिकारों को संपूर्ण नहीं माना जा सकता है। धार्मिक समुदायों को संस्थान बनाने का तो अधिकार है, लेकिन संस्थान चलाने का असीमित अधिकार नहीं है। सरकार अल्पसंख्यक संस्थानों को नियंत्रित कर सकती है। 20 अक्टूबर 1967 को एस अजीज बाशा और अन्य बनाम भारत संघ के फैसले में कोर्ट ने मिसाल दी थी कि किसी अल्पसंख्यक संस्थान को अल्पसंख्यक दर्जा तब मिलेगा, जब उसकी स्थापना उसी समुदाय के लोगों ने की हो। एएमयू के मामले में दलील थी कि इसकी स्थापना मुस्लिमों ने नहीं की है और यह कानून के माध्यम से अस्तित्व में आई है, लिहाजा यह अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है। शुक्रवार को सात जजों की बेंच ने इस फैसले को खारिज कर दिया। अजीज बाशा के केस में दलील दी गई थी कि 1920 में एक्ट बनाकर कॉलोनियन लेजिसलेचर ने एएमयू को स्टैबलिश किया था, इसलिए उसे मुस्लिम माइनॉरिटी नहीं कहा जा सकता।