BJP के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाम की घोषणा अगले कुछ ही दिनों में किए जाने की उम्मीद है और इससे पहले देशभर में बीजेपी के संगठन चुनाव चल रहे हैं। इन चुनावों को पार्टी ने ‘संगठन पर्व’ नाम दिया है। कई राज्यों में यह प्रक्रिया पूरी हो गई है और कई में जारी है या आगे होनी है। हरियाणा में बीजेपी ने बीते शनिवार (15 मार्च) को ज़िला अध्यक्षों के चुनावों के लिए सूचना जारी की थी। आज (17 मार्च) बीजेपी ने 27 ज़िलाध्यक्षों के नाम का एलान भी कर दिया है। सूत्रों की मानें तो BJP द्वारा संगठन के चुनावों में पार्टी के संविधान की शर्तों और आंतरिक तौर पर तय किए गए कई नियमों को दरकिनार किया गया है।
चुनाव किसी भी तरह की लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए बेहद अहम माने जाते हैं चाहे वह देश का लोकतंत्र हो या किसी पार्टी के भीतर का आंतरिक लोकतंत्र। बीजेपी जैसी पार्टी जो आंतरिक लोकतंत्र की सबसे ज़्यादा बात करती है और कई अन्य दलों पर मनमाने तरीके से संगठन के नेता चुनने का आरोप लगती है उसके लिए पार्टी के संविधान को मानना और इसकी शर्तों के हिसाब से ही संगठन के चुनाव कराना सबसे बुनियादी ज़रूरत बन जाती है। अगर ऐसे में BJP पर अपने संविधान ना मानने के आरोप लगें तो ये आरोप बेहद गंभीर हो जाते हैं।
क्या है संगठन चुनाव को लेकर BJP पर आरोप?
BJP ने हरियाणा में ज़िला अध्यक्ष के चुनावों की घोषणा तो कर, नए ज़िलाध्यक्ष भी बना दिए गए लेकिन ज़िलाध्यक्ष के चुनाव के लिए ज़रूरी मंडल समितियों का गठन अभी तक नहीं किया गया है। BJP के संविधान के मुताबिक, ज़िला अध्यक्ष के चुनाव के लिए मंडल अध्यक्ष का निर्वाचन और मंडल समिति के सदस्यों का चयन किया जाना ज़रूरी है। अब मंडल समितियों का गठन ना किए जाने को लेकर पार्टी के संगठन चुनाव सवालों के घेरे में आ गए हैं। सूत्रों की मानें तो BJP ने संगठन में ज़िलाध्यक्षों के लिए उम्र की जो सीमा तय की थी, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में कई जगहों पर उस नियम को दरकिनार किए जाने के मामले भी सामने आए हैं। वहीं, कई जगहों पर आरोप लगे हैं कि कार्यकर्ताओं की मर्ज़ी से ज़्यादा ‘ताकतवर’ लोगों की पसंद को संगठन के इन चुनावों में तरजीह दी गई है। साथ ही, महिलाओं के प्रतिनिधित्व को लेकर भी आरोप लगाए गए हैं।
ज़िला अध्यक्ष के निर्वाचन पर क्या कहता है BJP का संविधान
BJP के संविधान की धारा 15 में ज़िला समिति का ज़िक्र किया गया है। इसकी उप-धारा 2 (क) में जिला अध्यक्ष के निर्वाचन को लेकर बताया गया है कि जिला अध्यक्ष के निर्वाचन के हेतु मंडल समिति के सदस्य मंडल वार अपने बीच से एक प्रतिनिधि का निर्वाचन करेंगे। पार्टी के संविधान में जिला समिति के अध्यक्ष (जिला अध्यक्ष) को लेकर आगे कहा गया है, “समिति के अध्यक्ष का चुनाव ज़िले के सभी निर्वाचित मंडल अध्यक्ष गण और मंडल से निर्वाचित प्रतिनिधिगण द्वारा किया जाएगा। ज़िला निर्वाचक मंडल के कोई 10% सदस्य संयुक्त रूप से कम-से-कम 6 वर्ष प्राथमिक सदस्य रहे व्यक्ति का नाम प्रस्तावित करेंगे किंतु यह संयुक्त प्रस्ताव कम-से-कम 1/3 निर्वाचित मण्डल इकाइयों की ओर से किया जाएगा। अध्यक्ष कार्य समिति का मनोनयन करेगा। मनोनयन करते समय यह ध्यान रखा जायेगा कि भौगोलिक, सामाजिक, व्यावसायिक, तथा संगठनात्मक विस्तार की दृष्टि से उचित प्रतिनिधित्व दिया जाए।”
BJP के संविधान में कहा गया है कि ज़िला अध्यक्ष वही व्यक्ति हो सकेगा जो कम से कम 6 वर्ष पार्टी का प्राथमिक सदस्य रहा हो। साथ ही, ज़िला समिति के अन्य सदस्य वे व्यक्ति हो सकेंगे जो साधारणतया कम से कम तीन वर्ष प्राथमिक सदस्य रहे हों। उनका सक्रिय सदस्य होना भी ज़रूरी है। विशेष परिस्थितियों में और संगठन हित में ज़िला अध्यक्ष प्रदेश अध्यक्ष की पूर्व अनुमति से अधिकतम 5 सदस्यों को इस शर्त से छूट दे सकता है ।
उम्र की सीमा को लेकर भी है विवाद
सूत्रों के मुताबिक, BJP में मंडल व ज़िला अध्यक्षों की उम्र को लेकर भी पार्टी में अंदरूनी तौर पर एक सीमा तय की गई थी, यह सीमा मंडल अध्यक्षों के लिए 35 वर्ष से 45 वर्ष के बीच थी और ज़िला अध्यक्षों के लिए 45 वर्ष से 55 वर्ष थी। लेकिन कई जगहों पर इस सीमा का उल्लंघन किया गया था। बीजेपी ने हरियाणा में पटौदी ज़िले से अजीत यादव को ज़िलाध्यक्ष बनाया है और उनकी उम्र 64 वर्ष से अधिक है। वहीं, गुरुग्राम से सर्वप्रिय त्यागी को BJP ने ज़िलाध्यक्ष बनाया है और उनकी उम्र करीब 40 वर्ष ही है। उत्तर प्रदेश के मछली शहर से ज़िलाध्यक्ष बनाए गए डॉ. अजय सिंह की उम्र भी करीब 60 वर्ष है। ऐसे में पार्टी पर खुद के बनाए नियमों को दरकिनार करने के भी आरोप लग रहे हैं। सूत्रों की मानें तो उम्र की सीमा को लेकर हरियाणा में कई मंडल अध्यक्ष बदल दिए गए थे लेकिन ज़िला अध्यक्ष के चयन में यह नियम ताक पर रख दिया गया है।
तेरा-मेरा से तय हुए अध्यक्ष
BJP के अध्यक्षों के ‘चुनाव’ में एक बड़ा आरोप यह भी लग रहा है कि पार्टी के अध्यक्ष असल में केवल लोगों की निजी पसंद से तय हुए हैं। संगठन के चुनावों में कितनी लोगों के नाम मंडलों की निर्वाचन समिति से आए हैं, यह एक बड़ा सवाल है। सूत्रों के मुताबिक, कई जगहों पर तो ऐसा हुआ कि जिस ज़िले में जिस नेता की पकड़ अच्छी रही, वहां उन्हीं की पसंद से ज़िला अध्यक्ष का नाम तय कर दिया गया। ज़िला अध्यक्ष के निर्वाचन में कई जगहों पर संघ के अधिकारियों की भी चली है और उनकी पसंद के नेता भी ज़िला अध्यक्ष बनाए गए हैं।
इन सबके चलते कई जगहों पर कार्यकर्ता खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। एक और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार सरकार को मज़बूती से आगे बढ़ा रहे हैं तो दूसरी और संगठन के लिए इस तरह के कदम कार्यकर्ताओं के मन में शंका का बीज डालने वाले हो सकते हैं। पीएम मोदी के कंधे पर सरकार की ज़िम्मेदारी है तो ऐसे में संगठन को ज़मीनी स्तर पर मज़बूत करने के लिए प्रदेश के अन्य नेताओं को भी ज़िम्मेदारी उठानी होगा, सिर्फ प्रधानमंत्री के दम पर ही दूसरे नेताओं को सारी ज़िम्मेदारी छोड़ने से बचना होगा।
विशेषज्ञों का कहना है कि BJP के संगठनात्मक चुनावों में पारदर्शिता और निष्पक्षता की कमी, प्रभावशाली नेताओं और संघ के अधिकारियों का हस्तक्षेप और कार्यकर्ताओं की अनदेखी जैसे मुद्दे पार्टी के लिए गंभीर चुनौती बन सकते हैं।। यह ना केवल पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र के लिए मुसीबत बन सकता है बल्कि दूसरी पार्टियों को भी इससे BJP पर हमला करने के मौके मिलेंगे। हालांकि, बीजेपी को अनुशासित पार्टी के तौर पर देखा जाता है और इन चुनावों में विरोध के स्वर सामने आएं ऐसा भी मुश्किल ही हैं लेकिन ये पार्टी के दूरगामी हितों के लिए नुकसानदायक हो सकता है।