जम्मू कश्मीर और 35A आज कल काफी सुर्ख़ियों में हैं। हाल ही में महबूबा मुफ़्ती ने कहा था कि यदि इसमें बदलाव होता है तो कश्मीर में कोई तिरंगे को कंधा देने वाला नहीं होगा। वहीं फारुख अब्दुल्ला ने तो एक कदम आगे बढ़ते हुए बड़े विद्रोह और हंगामे की धमकी तक दे डाला। 370 के बारे में तो सबने सुना है पढ़ा है लेकिन 35A क्या बला है जिसका नाम लेते ही देशविरोधी तत्वों में छटपटाहट शुरू हो जाती है ? आखिर 35A है क्या ? कुछ लोगो को शायद कुछ पता हो और कुछ लोगो को शायद कुछ नहीं! लेकिन 35A एक ऐसा जहर है जिसने जम्मू कश्मीर को नर्क बना रखा है।
क्या है अनुच्छेद 35A
अनुच्छेद 35A जम्मू कश्मीर की विधानसभा को ‘स्थायी निवासी’ स्पष्ट करने का अधिकार देता है। ध्यान रखिएगा चाहे 370 हो या 35A, इसमें जम्मू कश्मीर की नागरिकता का अधिकार जैसे नियम नहीं है क्योंकि हमारे देश में दोहरी नागरिकता जैसी कोई व्यवस्था नहीं है। जम्मू कश्मीर में केवल ‘स्थायी निवासी पात्रता’ (PRC) दी जाती है और उसका कारण है अनुच्छेद 35A. भारतीय संविधान के अनुसार देश का कोई भी नागरिक किसी भी जगह जमीन खरीद सकता है, व्यापार कर सकता है, निवेश कर सकता है लेकिन जम्मू कश्मीर में 35A की वजह से दूसरे राज्यों के नागरिकों के अलावा जम्मू कश्मीर का एक बड़ा तबका भी इस अधिकार से वंचित है। यह सीधे तौर पर संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19, 19(e), और 21 का हनन है।
इसके आलावा स्थायी निवासी पात्रता नहीं होने पर सरकारी योजना द्वारा चलित प्रोफेशनल कोर्सेस में भी हिस्सा नहीं ले सकते। जम्मू कश्मीर से बाहर के व्यक्तियों के साथ साथ 1947 के वक़्त भारत विभाजन के बाद पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू कश्मीर से आकर बसे व्यक्तियों को भी मूल अधिकारों से वंचित रखा जा रहा है। जिस तरह इस असंवैधानिक कृत्य का दुरुपयोग किया गया है परिणाम स्वरूप यह एक ही देश के नागरिकों को आपस में बाँट रहा है। अनुच्छेद 35A के कार्यान्वन के फलस्वरूप राज्य के लाखों लोग राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक रूप से पक्षपात के शिकार हो रहें हैं साथ ही उन्हें किसी भी तरह के बराबरी का मौका नहीं मिल पा रहा है।
कैसे असंवैधानिक है अनुच्छेद 35A ?
14 मई 1954 में तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के आदेश से 35A को संविधान में जोड़ा गया था। संविधान के अनुच्छेद 368 के अनुसार किसी भी संवैधानिक संशोधन के लिए उसे संसदीय प्रक्रिया से होकर गुजरना पड़ता है, किन्तु 35A को बिना संसद में पेश किये संविधान में जोड़ा गया था। तत्कालीन राष्ट्रपति ने 35A को सारे संवैधानिक नियमों को दरकिनार करते हुए गैरसंवैधानिक तरीके से संविधान में जोड़ा था। संविधान के नियम के अनुसार राष्ट्रपति आदेश को भी 6 माह के भीतर संसद में पेश करना अनिवार्य है अन्यथा वह आदेश रद्द हो जाता है लेकिन 35A आज 63 साल के बाद भी जम्मू कश्मीर में गैरसंवैधानिक तरीके से लागू है। बिना संसद में पेश किये और संसद के अधिकार को छिनते हुए किसी अनुच्छेद को संविधान में जोड़ना स्पष्ट रूप से संवैधानिक अधिकारों का हनन है साथ ही संविधान की अवमानना भी है।
अनुच्छेद 35A के दुष्प्रभाव
मैं आज किसी राज्य का निवासी हूँ, यदि आज मुझे मध्यप्रदेश, गुजरात, बिहार, बंगाल, उत्तरप्रदेश या दक्षिण के किसी राज्य में जाकर बसना है या व्यापार करना है या निवेश करना है तो मैं आसानी से कर सकता हूँ किन्तु जम्मू कश्मीर में नहीं। जम्मू कश्मीर के बाहर के व्यक्ति ही नहीं बल्कि जम्मू कश्मीर का एक बड़ा तबका भी 35A की वजह से पीड़ित है। जम्मू कश्मीर की महिलाएं किसी ‘स्थायी निवासी पात्रता’ नहीं रखने वाले (Non PRC) से शादी कर ले तो उसके पति और बच्चों को पीआरसी नहीं मिलती जिससे वो अपने संवैधानिक अधिकारों से पूरी तरह वंचित रहते हैं। विभाजन के समय पश्चिमी पाकिस्तान से आये लाखो लोग आज भी शरणार्थी की ज़िन्दगी जीने को मजबूर है। वाल्मीकि समुदाय जिसने जम्मू कश्मीर को आज भी साफ़ सुथरा रखा है 35A की वजह से आज भी स्थायी निवासी पात्रता से वंचित है। राज्य के जान देने वाला वीर देशभक्त गोरखा समुदाय भी 35A की वजह से दोयम दर्जे की जिंदगी जीने को मजबूर है।
अब तक चर्चा का विषय क्यों नहीं बन पाया था अनुच्छेद 35A
अनुच्छेद 35A का मुद्दा हाल ही में सुर्ख़ियों में आया है किन्तु सोचने वाली बात यह है कि जब यह इतना ही गंभीर मुद्दा है तो देश के आम लोगो की बातों से नदारद कैसे था ? बुद्धिजीवियों और संविधान विशेषज्ञों की चर्चाओं में शामिल क्यों नहीं था ? दरअसल ऐसा है कि अनुच्छेद 35A जैसा विवादस्पद नियम सुभाष कश्यप और डी. डी. बसु जैसे देश के बड़े संविधान विशेषज्ञों की किताबों में भी नहीं मिलता। 35A एक संवैधानिक धोखे की तरह है जिसे देश की आम जनता को दिया गया है। संविधान की किताब मे 35A अनुच्छेद 35 और 36 के मध्य आपको खोजने से भी नहीं मिलेगा। इस संवैधानिक धोखे को इस तरह समझ सकते हैं कि कुछ वर्षों पहले अनुच्छेद 21 से जोड़कर अनुच्छेद 21A (शिक्षा का अधिकार) लाया गया था जिसे संविधान में अनुच्छेद 21 एवं 22 के मध्य रखा गया है किन्तु 35A को अनुच्छेद 35 एवं 36 के मध्य ना रखकर परिशिष्ट क्रमांक 2 में रखा गया है ताकि आम जन की पहुँच से यह दूर रहे तथा बुद्धिजीवियों की चर्चा का विषय ना बन सके।
कुछ समय पहले पूर्व राज्यसभा सांसद और देश के जाने माने वरिष्ठ वकील सत्यपाल जैन ने अपना अनुभव लोगो को बताया था कि जब उन्होंने हाइकोर्ट के अपने वकील दोस्तों से 35A के विषय पर चर्चा करनी चाही तो वो हैरान रह गए कि कानून और संविधान की जानकारी रखने वाले बड़े बड़े वकील धारा 370 के बारे में तो जानते हैं लेकिन 35A के बारे में पूरी तरह से अनभिज्ञ हैं। यह माना जा सकता है कि सभी को सभी संवैधानिक धाराएं और क़ानून की जानकारी नहीं हो सकती लेकिन ऐसे मुद्दे जिससे राष्ट्र प्रभावित होता है और जो गंभीर हो उसकी जानकारी नहीं होना विचारणीय है।