आम आदमी पार्टी का एक बार फिर से भारत-विरोधी और प्रो-खालिस्तान एजेंडा सामने आया है। वरिष्ठ आम आदमी पार्टी नेता और पंजाब विधानसभा में विपक्ष के नेता सुखपाल सिंह खैरा ने खालिस्तान कट्टरपंथियों का खुलेआम समर्थन किया है जो 2020 में जनमतसंग्रह कराकर खालिस्तान की मांग कर रहे हैं।
आम आदमी पार्टी के कट्टरपंथी ने कहा, “जो लोग जनमत की मांग कर रहे हैं ये उनका अधिकार है। 34 सालों से जिस अत्याचार का सिखों ने सामना किया है उस अत्याचार ने उन्हें इसकी मांग करने के लिए मजबूर किया है। आप सीख-विरोधी दंगे पीड़ितों के लिए न्याय देंगे तब आपको लगेगा कि भारत में न्याय मौजूद है। लेकिन क्या आप स्वतंत्र देशों में रहने वाले लोगों को रोक सकते हैं? उनकी भावनाओं को चोट पहुंची थी और जो भी वो कर रहे हैं, वे अपने अधिकारों के अंतर्गत कर रहे हैं।”
आम आदमी पार्टी को लगता है कि भारत की संप्रभुता और अखंडता पर हमला करना किसी विशेष समुदाय के चरमपंथी वर्गों का अधिकार है। जबसे आम आदमी पार्टी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है तबसे वो पंजाब को अस्थिर करने और सत्ता को फिर से हासिल करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है। हालांकि, खालिस्तान आतंकवाद को उकसाने के ये तरीके राज्य के हितों को बहुत बुरे तरीके से प्रभावित कर रहा है।
खैरा और आम आदमी पार्टी को कैप्टन अमरिंदर सिंह और बीजेपी-अकाली गठबंधन के हाथों इस तरह की आपत्तिजनक और राजद्रोहपूर्ण टिप्पणियों के लिए आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है। पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने खैरा द्वारा “अलगाववाद का समर्थन करने” के लिए स्पष्ट रूप से उनकी निंदा की और कहा कि खैरा को पंजाब के इतिहास की जानकारी नहीं है और न ही उन्हें इस बात का कोई अंदाजा है कि उनके इस तरह से बयानबाजी करने के क्या परिणाम होंगे, और यही कारण है कि वो इस तरह की हरकत कर रहे हैं। अकाली नेता बिक्रम सिंह मजीठिया ने खैरा के बयान को ‘आप की विभाजनकारी राजनीति’ का सबूत बताया है। हर तरफ से आलोचनाओं का सामना कर रहे प्रो-खालिस्तान आम आदमी पार्टी के नेता ने खुद का बचाव करते हुए अपने बयान पर सफाई दी है। खैरा ने ट्वीट करके कहा कि वो जनमतसंग्रह 2020 के समर्थक नहीं हैं लेकिन वो केंद्र सरकार द्वारा सिखों के खिलाफ भेदभाव की एक सतत नीति को इंगित करने में संकोच नहीं करेंगे। किसी को ये समझ नहीं आ रहा कि वो किस भेदभाव की बात कर रहे हैं। वास्तव में सिख भारत के सबसे समृद्ध समुदायों में से एक है। जैन समुदाय के बाद सिख दूसरा सबसे अमीर भारतीय समुदाय हैं। अगर सरकार ने समुदाय के खिलाफ भेदभाव किया है तो सिख आर्थिक रूप से मजबूत कैसे हो सकते हैं? वास्तव में, पंजाब में बड़ी संख्या में हिंदुओं के बावजूद इस राज्य का मुख्यमंत्री एक सिख ही रहा है। ये स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि सीख न सिर्फ आर्थिक रूप से मजबूत हैं बल्कि राजनीतिक और सामाजिक रूप से भी शक्तिशाली हैं। खैरा का बयान कट्टरपंथी और धार्मिक कट्टरतावाद की मांग करता है और इस तरह के अपने बयान का बचाव करना उनकी बेवकूफी और आधारहीन प्रयास को दिखाता है।
ये पहली बार नहीं है जब आम आदमी पार्टी और केजरीवाल का खालिस्तान समर्थक का चेहरा सामने आया है। पिछले वर्ष पंजाब के चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी-खालिस्तान के बीच का जुड़ाव तब खुलकर सामने आ गया था जब केजरीवाल खालिस्तानी आतंकी के निवास पर रुके थे। उस समय केजरीवाल पंजाब की यात्रा के दौरान खालिस्तान लिबरेशन फ्रंट (केएलएफ) के कार्यकर्ता गुरविंदर सिंह के घर पर रुके थे जिसके बाद वो विवादों से घिर गये थे। गुरविंदर सिंह हत्या और अन्य जघन्य अपराधों के लिए जेल में रह चुके हैं। हालांकि वो सबूतों और गवाहों के अभाव की वजह से बाद में मामलों में बरी होकर इंग्लैंड चला गया। इसके बाद केजरीवाल का खालिस्तान से जुड़ाव सामने आया था इसके अलावा उनपर कट्टरपंथी सिख समूहों से चुनाव वित्त पोषण का आरोप भी लगा था। आईएसवाईएफ (प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन) प्रमुख गुरदील सिंह की एक तस्वीर भी सामने आयी थी जिसमें वो पंजाब के चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी के लिए प्रचार कर रहे थे।
इस पूरे विवाद में आप आदमी पार्टी का नेतृत्व चुप रहा। इसे आम आदमी पार्टी और उसके नेतृत्व की सहमती के रूप में देखा जा सकता है जो खालिस्तान चरमपंथ और आतंकवाद का उपयोग अपने राजनीतिक उद्देश्यों के लिए कर रहे हैं। वो सच में आग से खेल रही है और ऐसे में उम्मीद है कि आम आदमी पार्टी द्वारा इस तरह के आपत्तिजनक राजनीतिक कदमों से चरमपंथी तत्व मुख्यधारा पर कभी कब्जा न कर सके।