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2019 में महाराष्ट्र में बीजेपी की क्या संभावनाएं हैं?

Yash Joshi द्वारा Yash Joshi
12 June 2018
in समीक्षा
शिवसेना महाराष्ट्र
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आम चुनावों में एक साल से भी कम समय रह गया है। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश अगले वर्ष चुनाव में अपने प्रधानमंत्री का चुनाव करेगा। जबकि मोदी-शाह की जोड़ी के नेतृत्व में बीजेपी ने हर राज्य और हर सीट को प्राथमिकता दी है और शायद हाल के दिनों में बीजेपी की जीत के पीछे भी यही राज है। हालांकि, वो दोनों जानते हैं कि उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र ये दोनों राज्य 2019 के चुनावों की चाभी हैं। 48 सीटों के साथ लोकसभा सीटों के मामले में महाराष्ट्र दूसरा सबसे बड़ा राज्य है और बीजेपी इस दिलचस्प लड़ाई के लिए तैयार है और सभवतः ये चौतरफा लड़ाई होगी। तो क्या बीजेपी इस लड़ाई में जीतकर उभरेगी या कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन और असंतुष्ट सहयोगी शिवसेना से हार जाएगी? महाराष्ट्र में कभी भी बाजी पलट सकती है ऐसे में संभावित परिदृश्यों और संयोजनों पर एक नजर डाल लेते हैं:-

पहला परिदृश्य: बीजेपी कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन और शिवसेना (संभवतः) के खिलाफ

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बिहार चुनाव में BJP के स्टार प्रचारक तय —मैदान में उतरेगी मनोज तिवारी, पवन सिंह और निरहुआ की भोजपुरी तिकड़ी, लेकिन मुख्यमंत्री नायब सैनी, भजन लाल शर्मा और पुष्कर सिंह धामी को क्यों नहीं मिली जगह?

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कागजों पर बीजेपी और देवेंद्र फडणवीस के लिए ये एक दुःस्वप्न परिदृश्य की तरह दिखाई दे रहा है। कांग्रेस-एनसीपी के बीच गठबंधन उनके मतदाता आधार और किसी भी सत्ता विरोधी वोटों को जोड़ेगा। महत्वपूर्ण बात ये बात है कि अल्पसंख्यक वोट उस तरह से विभाजित नहीं होगा जैसे कि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में हुआ था और शिवसेना के बीजेपी से अलग होने के बाद हुआ था। हिंदुओं को एक साथ करना सिर्फ एक सपना ही रहेगा जो राज्य में बीजेपी की संभावनाओं को प्रभावित करेगा। हालांकि, जब से बीजेपी महाराष्ट्र में सत्ता में आई है तब से नगर चुनाव हो या पंचायत चुनाव हो बीजेपी ने अच्छा प्रदर्शन किया है। बीजेपी इससे पहले कभी ऐसी स्थिति में नहीं रही है और वो होने वाले संभावित नुकसान से भी अवगत है। फरवरी 2017 में बीजेपी ने बृहन मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) चुनाव में शिवसेना और एनसीपी-कांग्रेस के गठबंधन का सामना किया था और सभी को चौंका दिया था। मुंबई शिवसेना के लिए पारंपरिक गढ़ है और इस पार्टी में नकदी के संचालन के लिए बीएमसी जरुरी है। सेना की संगठनात्मक ताकत मेगा शहर में बेजोड़ है और हर किसी को ये उम्मीद थी कि पार्टी सत्ता को बनाये रखेगी। हालांकि, शिवसेना 227 में से केवल 84 सीटों पर ही कब्जा कर पायी थी और बीजेपी ने 82 सीटों पर कब्जा किया था। इस प्रकार बीएमसी में सेना का एकाधिकार समाप्त हुआ और पार्टी को हर बड़े फैसले के लिए मजबूर होकर बीजेपी को शामिल करना पड़ा। दूसरी तरफ कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन किसी तरह से बीजेपी और शिवसेना के बीच बड़ी मात्रा में हुए सीटों के विभाजन के बावजूद कुछ सीटों पर जीत दर्ज कर पाने में सफल रही और 40 सीटों को अपने खाते में जोड़ने में कामयाब रही। बीएमसी चुनाव देवेंद्र फडणवीस और उनकी सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ।

जबकि कुछ तर्क देंगे कि बीजेपी की मुख्य ताकत शहरी इलाकों में है और इस तथ्य को नकार देना भी मुश्किल है। लेकिन ये सोचना कि बीजेपी केवल शहरी क्षेत्रों तक सीमित है ये भी बेवकूफी होगी। जब तक देवेंद्र फडणवीस ने राज्य के शासनकाल को अपने हाथों में नहीं लिया था तब तक एनसीपी और कांग्रेस ग्रामीण इलाकों में शक्तिशाली बल साबित हुआ करती थी।

चलिए 2014 से ग्रामीण क्षेत्रों में पार्टी के प्रदर्शन पर नज़र डालते हैं:

एनसीपी की मूल ताकत ग्रामीण इलाकों में है और पुणे, पिंपरी-चिंचवड, अकोला आदि को इसका अपना गढ़ माना जाता है। उसी वर्ष, बीजेपी ने पुणे में एनसीपी को बुरी तरह से हरा दिया और 162 में से 100 सीटें जीतीं और एनसीपी केवल 38 सीटें ही हासिल कर सकी थी। जिला परिषद चुनाव में भी बीजेपी 1470 में से 403 सीटों को जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, इसके बाद एनसीपी को 350, कांग्रेस को 303 और शिवसेना को 266 सीटें मिली थीं। बीजेपी ने एनसीपी के ग्रामीण क्षेत्र में बढ़त बनाई जहां कांग्रेस का काफी महत्व है और इस बढ़त ने मोदी और फडणवीस में लोगों की आस्था को रेखांकित करता है। अक्टूबर 2017 में, महाराष्ट्र राज्य के 34 जिलों में फैले 7,576 ग्राम पंचायतों में चुनाव हुए, फिर भी बीजेपी 2,768 सीटों पर जीत दर्ज कर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, जबकि कांग्रेस केवल 613 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रही, जबकि शिवसेना को 517 सीटें मिली थीं। एनसीपी आखिरी नंबर पर थी जिसे सिर्फ 491 सीटें ही मिली थीं।

बीजेपी और बाकी के बीच के अंतर को अनदेखा नहीं किया जा सकता है और रिकॉर्ड के लिए ये चुनाव अनिवार्य रूप से बीजेपी बनाम बाकी था  क्योंकि एनसीपी-आईएनसी एक साथ लड़े और शिवसेना के साथ उनकी कई जगहों पर आपसी समझ थी और इसलिए किसी उम्मीदवार को मैदान नहीं मिल सका। विपक्ष द्वारा प्राप्त कुल 1,621 संयुक्त सीटें भी बीजेपी के आंकड़े से कम है जो ये दर्शाता है कि एकजुट विपक्ष  मिलकर भी बीजेपी को हरा पाने में सक्षम नहीं हैं ऐसे में ये थ्योरी कि एकजुट विपक्ष महाराष्ट्र में बीजेपी की जीत को रोक देगा, उतनी कारगार नहीं लगती है। फिर भी, दिसंबर 2017 में बीजेपी 10 नगर परिषदों में से 6 जीत चुकी है जिनके चुनाव हो चुके हैं।

2017 का रिकॉर्ड आपको थोड़ा पुराना सा लग रहा होगा  तो चलिए कुछ महीने पहले की भारतीय राजनीति को देख लेतें है जिससे देश का मूड पूरी तरह से बदल जायेगा। हालांकि, महाराष्ट्र के मामले में ऐसा नहीं लगता है, जहां अप्रैल 2018 में बीजेपी ने छह नगरपालिका चुनावों में से चार चुनाव जीते थे।

 परिदृश्य 2: – बीजेपी को हराने के लिए तीन पार्टियों एनसीपी-आईएनसी-शिवसेना का गठबंधन (लगभग संभव नहीं है)

बीजेपी के लिए एक आदर्श परिदृश्य लेकिन इसके लिए उद्धव ठाकरे  को राहुल गांधी की तरह प्रदर्शन करना होगा। शरद पवार ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि कांग्रेस और एनसीपी दोनों के साथ होने के बावजूद जरूरत पड़ने पर भी वो शिवसेना के साथ गठबंधन में नहीं आयेंगे। आईएनसी-एनसीपी गठबंधन के पीछे मुख्य विचार अल्पसंख्यक वोटों को मजबूत करना है जो शिवसेना के साथ गठबंधन में शामिल होने पर संभव नहीं हो सकता है। ट्रिपल तलाक के मामले के बाद से शिक्षित मुस्लिम का रुख बीजेपी के प्रति नर्म हुआ है और यूपी चुनावों में भी  ये नजर आया था, यहां तक ​​कि उग्र कांग्रेस प्रशंसक भी इस तथ्य से इंकार नहीं कर सकते हैं कि मुसलमानों ने बीजेपी को वोट दिया है। ये एक महत्वपूर्ण या निर्णायक हिस्सा नहीं हो सकता है लेकिन एक महत्वपूर्ण संकेत जरुर है। मुसलमान कुछ मुद्दों पर अपनी कट्टरपंथी राय के कारण कभी भी शिवसेना के लिए मतदान नहीं करेंगे और इससे महाराष्ट्र में चुनाव लड़ने का फैसला उन्हें अल्पसंख्यकों के वोट से दूर कर देगा, ऐसे में ये वोट बीजेपी या एआईएमएम को जा सकता है। जबकि बीजेपी एक विशाल हिंदू समेकन के लिए हो सकती है क्योंकि औसत तौर पर सेना के मतदाता का बीजेपी की ओर रुख करने की संभावना है। शिवसेना का जन्म कांग्रेस-विरोधी भावना के साथ हुआ था और बाल ठाकरे ने कांग्रेस के शासन की कड़ी निंदा की थी। उद्धव को कांग्रेस और खासकर एनसीपी के प्रति अचानक उमड़े प्यार को अपने मतदाता आधार को समझाना काफी मुश्किल साबित होगा। यही वजह है कि शिवसेना का मतदाता आधार बीजेपी का नेतृत्व करेगा क्योंकि अधिकांश शिवसेना मतदाता बाल ठाकरे के सशक्त समर्थक हैं और वो कभी कांग्रेस के लिए वोट नहीं देंगे।

इसके अलावा, राष्ट्रवाद 2019 में मुख्य मुद्दों में से एक होगा और कांग्रेस के साथ होकर शिवसेना की राष्ट्रवादी छवि पर गहरा असर पड़ेगा। सीट साझा करने से होने वाली गड़बड़ी निश्चित रूप से लागू होगी। उद्धव का अहंकार, राहुल की मूर्खता और पवार का लालच निश्चित रूप से बीजेपी के लिए बढ़िया संयोजन होगा।

परिदृश्य 3: – एक राष्ट्र, एक चुनाव (सबसे अधिक संभावना)

ये किसी से छुपा नहीं है कि प्रधानमंत्री मोदी सभी चुनावों को चाहे वो राज्य हो या केंद्र एक बार ही करवाना चाहती है जिससे देश में लगातार चुनावी माहौल का बनना कम हो जायेगा और इससे देश का पैसा भी बचेगा। दुर्भाग्य से, 2019 में इस उद्देश्य को शुरू करना काफी जल्दी है। हालांकि, पीएम मोदी उनमें से नहीं हैं जो अपने सपनों को आसानी से छोड़ दे। सभी संभावनाओं में वो ये सुनिश्चित करेंगे कि अधिकांश बीजेपी शासित राज्य विधानसभाएं जिनके चुनाव लोकसभा चुनावों के आसपास होने हैं उन चुनावों को भंग कर मई 2019 में नए चुनाव आयोजित करवाएं। महाराष्ट्र चुनाव उन राज्यों में से एक हो सकता है जहां 6 महीने में चुनाव होने हैं वो चुनाव आम चुनावों के साथ हो सकते हैं। ऐसे में संभव है कि महाराष्ट्र में चुनाव मई 2019 में करवाए जायें। इससे एनसीपी और शिवसेना की परेशानियां बढ़ सकती हैं क्योंकि लगभग सभी क्षेत्रीय दल इसका विरोध कर रहे हैं उसके पीछे कारण ये है कि यदि लोक और विधान सभा चुनाव एक साथ आयोजित किए जाते हैं तो क्षेत्रीय दलों को अस्तित्व के लिए संघर्ष करना होगा। मोदी-युग में, कांग्रेस, बीजेडी और टीएमसी को छोड़ दें तो क्षेत्रीय दलों को गैर-खिलाड़ियों के रूप में बदल सकतें हैं  क्योंकि मोदी 2019 चुनावों को अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव शैली की तरह बनाने की कोशिश कर रहे हैं जिससे पार्टी को फायदा होगा। नोटबंदी के बाद से बीएसपी और टीएमसी के खजाने लगभग खाली हो गये हैं। बीजेपी इस लक्ष्य के लिए हो सकता है क्षेत्रीय पार्टियों को चुनाव लड़ने के लिए नकदी दे। ऐसे में कि जब एक चुनाव होगा तो क्षेत्रीय पार्टियों के पास धन होगा। पार्टियों को एक चुनाव को प्राथमिकता देने के लिए मजबूर किया जाएगा साथ ही ये भी संभावना है कि क्षेत्रीय दलों को विधानसभा चुनावों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए मजबूर होना पड़े क्योंकि उनकी लोकसभा की संभावनाएं निराशाजनक नजर आ रही हैं और राज्य विधायिका से भी हटाए जाने का मतलब है कि अमित शाह राजनीतिक इतिहास लिखेंगे तो वहीं एसएस और एनसीपी अपने खत्म होते अस्तित्व का लेख लिखेंगी। इस सुधार का सबसे बड़ा लाभ ये होगा कि प्रधानमंत्री मोदी सीधे अपने नाम पर वोट हासिल करने में सक्षम होंगे। कोई भी स्थानीय भावना जो राज्य नेतृत्व के खिलाफ होगी वो मोदी की उपस्थिति से खत्म हो जाएगी। ये चुनाव को और केंद्रीकृत करेगा जो क्षेत्रीय दल बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे।

जबकि 2019 के चुनावों के लिए बीजेपी-एसएस गठबंधन की संभावनाएं कमजोर नजर आ रही हैं लेकिन ये असंभव भी नहीं है। बीजेपी और एसएस दोनों का साथ में लगभग राज्य के हर सार्थक निकाय पर पकड़ है और इससे विपक्ष काफी कमजोर हुआ है। ऐसे में दोनों को साथ में लड़ने से ज्यादा फायदा होगा लेकिन अगर वो अलग होकर लड़ते हैं तो शायद ही ऐसा लाभ मिले। हालांकि, फडणवीस एक सक्षम शासक साबित हुए हैं और वो चुनाव जीतने वाली मशीन है जिसने एनसीपी और कांग्रेस को सिर्फ 4 वर्षों में अपरिवर्तनीय नुकसान पहुंचाया है। कुल मिलाकर कहें तो बीजेपी इतनी संभावनाओं के बावजूद महाराष्ट्र में अच्छी स्थिति में नजर आ रही है बाकि अगले साल के चुनाव में ये नजर भी आएगा।

Tags: 2019 लोक सभा चुनावबीजेपीमहाराष्ट्रशिवसेना
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