वर्ष 2019 में महाराष्ट्र में लोकसभा के साथ विधानसभा के चुनाव होने हैं लेकिन चुनाव के कुछ माह पहले ही महाराष्ट्र में एक बार फिर से मराठा समाज के आरक्षण के लिए मराठा आंदोलन जोर पकड़ने लगा है। पिछले वर्ष गुजरात में पटेल, हरियाणा में जाट के साथ-साथ महाराष्ट्र में मराठा आंदोलन ने देश में आरक्षण की ज्वाला भड़की हुई थी। इस बार मराठा समुदाय के लिए आरक्षण की मांग को लेकर चल रहा राज्य व्यापी प्रदर्शन हिंसक हो गया है। प्रदर्शन में शामिल अबतक 6 लोग अपनी जान दे चुके है। मराठा क्रांति मोर्चा ने एक दिन के लिए मुंबई बंद रखा था। इस दौरान मुंबई, पुणे और बाकि शहरों में कई जगहों पर बसों को जलाया गया। महाराष्ट्र बंद का सबसे ज्यादा असर औरंगाबाद और आसपास के जिलों में देखने को मिला है।
दरअसल, सोमवार को औरंगाबाद में काकासाहब शिंदे नामक एक युवक ने गोदावरी नदी में कूदकर आत्महत्या कर ली जिससे आंदोलन अचानक भड़क उठा था और 9 अगस्त को होने वाले महाराष्ट्र बंद की बजाय 28 को ही महाराष्ट्र बंद किया गया। अब ये आंदोलन की आग और भयावह रुप लेने जा रही है आनेवाले 9 अगस्त को मुंबई में बड़ा आन्दोलन करने का ऐलान किया गया है लेकिन फडणवीस सरकार मामले की गंभीरता को देखते हुए इसपर शांती बरतने की अपील की साथ ही शांतिपूर्ण तरीके से इसका हल निकालने में जुटी है।
जेल भरो आंदोलन हुआ बेअसर, सरकार ने कर रखे थे पुख्ता इंतेजाम
28 जुलाई के महाराष्ट्र बंद का खासा असर देखने को नहीं मिला था जिसके बाद आन्दोलनकारियों ने 1 अगस्त को जेल भरो आन्दोलन द्वारा महाराष्ट्र में इस आन्दोलन को तेज करने की धमकी दी थी। जेल भरो आन्दोलन के मद्देनजर फडणवीस सरकार ने सुरक्षा के सारे इंतेजाम पुख्ता किये थे जिस वजह से महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में भी जेल भरो आन्दोलन का ज्यादा असर देखने को नहीं मिला। वहीं, जेल भरो आन्दोलन फ्लॉप होता देख प्रदर्शनकारियों ने पुणे-सोलापुर हाईवे को जाम कर प्रदर्शन किया। प्रदेश की फडणवीस सरकार ने न सिर्फ आन्दोलन की गंभीरता को समझा बल्कि सुरक्षा के पुख्ता इंतेजाम करने के आदेश दिए रखे हैं और उग्र प्रदर्शन के दौरान हिंसा की घटनाएं न हो पाए इसके सभी एहतियात बरत रही है। यही वजह रही है की आन्दोलन के हिंसक होने के बाद भी मुंबई और पुणे जैसे बड़े शहरों में यातायात को नियंत्रित रहा और जान माल की हानि नहीं हो सकी लेकिन उग्र भीड़ ने पुणे शहर में कई बसों को आग के हवाले कर दिया जिससे सरकारी संस्थाओं को करोड़ो का नुक्सान उठाना पड़ा है।
आखिर क्या है मराठा आंदोलन का पूरा मामला
राजनीतिक तौर पर प्रभावशाली मराठा समुदाय के लिए आरक्षण का मामला बेहद विवादास्पद मुद्दा है। राज्य की आबादी में करीब 33फीसदी मराठा हैं। सूबे की राजनीति में मराठा समाज का ख़ासा असर रहा है। बता दें कि मराठा समाज पिछले कुछ समय से शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण की मांग करता आ रहा है। मराठा समाज की कुछ मुख्या मांगें इस प्रकार है :
- प्रदेश की आबादी का 33 फीसदी मराठा समाज को बाकि समाज की तरह आरक्षण दिया जाए।
- मराठा समुदाय महाराष्ट्र में ओबीसी के दर्जे की मांग कर रहा है।
- शिक्षा और नौकरियों में 16 फीसदी आरक्षण दिया जाए।
- 72 हजार नियुक्तियों में मराठा समुदायों के युवाओं को 16 फीसदी आरक्षण के हिसाब से नौकरियां दी जाए।
मराठा आरक्षण पर क्या कहता है कोर्ट?
2014 में सरकार ने मराठा समुदाय को नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में 16 प्रतिशत आरक्षण दिया था, लेकिन हाई कोर्ट ने राज्य सरकार के फ़ैसले पर रोक लगा दी थी और कहा था कि कुल आरक्षण की सीमा को 50 प्रतिशत से ज़्यादा नहीं बढ़ाया जा सकता और इस बात के कोई सबूत नहीं मिले हैं कि मराठा समुदाय आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़ेपन का शिकार है। हाल ही में राज्य सरकार द्वारा 72,000 नियुक्तियां किए जाने के संकेत मिलने के बाद मराठा आंदोलन और तेज हो गया। हालांकि, मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने आश्वासन दिया है कि मराठा आरक्षण पर कोर्ट का फैसला आने तक इन भर्तियों में इस समुदाय को 16 फीसद आरक्षण दिया जाएगा।
क्या मराठा आन्दोलन राजनीति से प्रेरित है?
स्वर्गीय गोपीनाथ मुंडे और छगन भुजबल जैसे पिछड़े नेता मराठा समाज को आरक्षण देने का विरोध कर चुके हैं। मराठा आंदोलन को राज्य में राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई से भी जोड़कर देखा जा सकता है। राज्य के अब तक के राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि राज्य की सत्ता पर ज्यादा समय तक मराठा मुख्यमंत्री ही काबिज रहे हैं। भाजपा ने अपने घोषणापत्र में मराठाओं को आरक्षण देने का वादा किया था। वर्तमान मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ब्राह्मण समुदाय से आते हैं। ऐसे में इस लड़ाई को मराठा बनाम ब्राह्मण बनाने का षड्यंत्र होने से इंकार नहीं किया जा सकता।
दरअसल, देवेन्द्र फडणवीस के मुख्यमंत्री बनने के बाद राज्य में दूसरे दलों में अस्थिरता है, राष्ट्रवादी कांग्रेस हो या कांग्रेस दोनों को उनके गढ़ में पराजित करने में देवेन्द्र सरकार कामयाब हुई है। पिछले वर्ष के नगरपालिका के चुनाव् में राष्ट्रवादियों का गढ़ कहे जाने वाले पिंपरी-चिंचवड समेत अनेक नगर पालिका पर बीजेपी ने परचम लहराया था। ऐसे में लंबे समय से सत्ता पर काबिज रहे शरद पवार को देवेन्द्र फडणवीस सरकार की ये जीत बिल्कुल भी रास नहीं आ रही है। उधर, शिवसेना भी हार से अछूती नहीं है। उसे भी मुंबई में बीजेपी ने कड़ी टक्कर दे रही है। यही कारण हो सकता है की शिवसेना ने मराठा आंदोलन की आग में घी डालने का काम कर रही है। अत: 2019 के चुनाव के मद्देनजर मराठा आंदोलन को प्रदेश की राजनीति से जोड़कर देखा जाना बिलकुल भी गलत नहीं होगा। आरक्षण आंदोलन की आड़ में राज्य की सत्ता को चुनौती देने की कोशिश की जा रही है। हालांकि, ये आंदोलन आगे क्या मोड़ लेगा ये तो आने वाला समय ही बता सकता है लेकिन इससे महाराष्ट्र की राजनीति में वर्ष 2018 उथल-पुथल से जरुर भरा होगा।