दसॉल्ट कंपनी के सीईओ एरिक ट्रेपियर ने राफेल लड़ाकू विमान की ऑफसेट डील को लेकर राहुल गांधी के झूठ का फिर से पर्दाफाश कर दिया है। उन्होंने अपने बयान में कहा, “रिलायंस के साथ समझौता भारतीय कानून के हिसाब से ही दसॉल्ट ने रिलायंस के साथ मिलकर नागपुर में प्लांट लगाने का फैसला किया। रिलायंस के साथ दसॉल्ट एविएशन का जॉइंट वेंचर राफेल लड़ाकू विमान करार के तहत करीब 10 फीसदी ऑफसेट निवेश का ही प्रतिनिधित्व करता है। हम करीब 100 भारतीय कंपनियों के साथ बातचीत कर रहे हैं जिनमें से करीब 30 कंपनियां ऐसी हैं जिनके साथ हमने पहले ही साझेदारी की पुष्टि कर दी है।“ दसॉल्ट कंपनी के सीईओ की तरफ से ये बयान तब आया है जब राहुल गांधी ने पीएम मोदी को ‘भ्रष्ट व्यक्ति’ कहते हुए ये आरोप लगाया कि उन्होंने 36 लड़ाकू विमानों की खरीद में अनिल अंबानी को 30,000 करोड़ रुपये का फायदा पहुंचाया है।
राहुल गांधी का ये बयान बहुत बड़ा झूठ साबित हुआ। वास्तव में सरकार ने 36 लड़ाकू विमानों का सौदा 60 हजार करोड़ रुपये में किया है। भारत की रक्षा खरीद नीति के मुताबिक दसॉल्ट भारत में सिर्फ 50 प्रतिशत ऑफसेट का दायित्व रखता है। इसलिए राफेल एयरक्राफ्ट का उत्पादन करने वाली दसॉल्ट एविशन कंपनी को भारत में 30,000 करोड़ रुपये का निवेश करना पड़ा। इसके साथ ही इस डील में रिलायंस डिफेंस को सिर्फ 10 प्रतिशत ही दिया गया था, जो कि 3,000 करोड़ रुपये ही है। जबकि राहुल गांधी ने 36 लड़ाकू विमानों की खरीद में ऑफसेट डील के तहत अनिल अंबानी को 30,000 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ है। हालांकि, राहुल गांधी जो रकम बता रहे हैं वो अंबानी के साथ हुए वास्तविक डील से दस गुना अधिक है।
राहुल गांधी अपने झूठे तर्कों के साथ यही नहीं रुके बल्कि और भी झूठ बोले। यदि राहुल गांधी और विपक्ष ने थोड़ा रिसर्च किया होता तो वो जल्द ही तथ्यों से अवगत हो जाते कि रिलायंस डिफेंस डील थेल्स ग्रुप के साथ है जो राफेल प्रोजेक्ट में हिस्सेदारी की चार कंपनियों (दसॉल्ट, सफरन, थेल्स और एमबीडीए) में से एक है। थेल्स ग्रुप में फ्रांसीसी सरकार (27.0%) और दसॉल्ट एविएशन (25.9%) मुख्य शेयरधारक हैं। राफेल प्रोजेक्ट में शामिल चार कंपनियों ने दासॉल्ट के साथ ऑफसेट दायित्व का विभाजन किया गया था जिसमें दसॉल्ट 15,000 करोड़ के लिए, थेल्स 6,500 करोड़ के लिए, सफरन 5,500 करोड़ के लिए और एमबीडीए 3,000 करोड़ के लिए जिम्मेदार है। ऐसे में अनिल अंबानी के नेतृत्व वाली रिलायंस की कंपनी को 30,000 करोड़ रुपये की डील कैसे मिल सकती है।
दसॉल्ट के साथ हुई ऑफसेट डील में रिलायंस सिर्फ अकेली एक कंपनी नहीं है। दसॉल्ट कंपनी के सीईओ एरिक ट्रेपियर ने कहा, “हम करीब 100 भारतीय कंपनियों के साथ बातचीत कर रहे हैं जिनमें करीब 30 ऐसी हैं, जिनके साथ हमने पहले ही साझेदारी की पुष्टि कर दी है।”
जब ट्रेपियर से ये सवाल किया गया कि उन्होंने ऑफसेट पार्टनर के लिए हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) की बजाय रिलायंस को क्यों चुना? तो इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, “दसॉल्ट एविएशन, डीआरएएल के माध्यम से भारत में लंबे समय के लिए रहने का फैसला किया। ये एक ऐसा जॉइंट वेंचर है, जिसमें प्रशासनिक कार्य के लिए एक भारतीय और एक फ्रांसिसी चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर मौजूद रहेंगे। साल 2018 के अंत तक में Falcon 2000 विमानों के पुर्जे इसमें बनाना शुरू कर दिया जाएगा जबकि इस प्रोजेक्ट का दूसरा चरण जुलाई 2018 में शुरू कर लिया गया था। वहीं, नागपुर को इसलिए चुना गया है क्योंकि ये भारत के बीच में है और यहां पर जमीन आसानी से मिल गयी साथ ही इससे एक एयरपोर्ट रनवे भी सीधे संपर्क में है।”
ये विवरण तब सामने आया है जब फ्रांसीसी खोजी पत्रिका और वेबसाइट ने राफेल को लेकर नया खुलासा किया था जिसके बाद कांग्रेस ने केंद्र सरकार पर निशाना साधा और फिर दसॉल्ट कंपनी ने मीडिया से बातचीत में ओफ़्सेट डील को लेकर खुलासे किये। ऑफसेट डील के लिए जो कंपनी चुनी गयी है उनमें बीटीएसएल, डीएफएसवाईएस, काइनेटिक, महिंद्रा, मेनी, सैमटेल से अधिक 70 कंपनियां हैं। राहुल गांधी एक पब्लिक फिगर हैं साथ ही राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष होते हुए बिना किसी तथ्य और जांच के रक्षा सौदे को लेकर इस तरह से झूठ बोलकर आम जनता को गुमराह कर रहे हैं जो एक नेता को शोभा नहीं देता है।