73वें स्वतन्त्रता दिवस के अवसर पर स्वघोषित इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने भारतीय लोकतन्त्र को आँकने का दायित्व उठाया। वॉशिंग्टन पोस्ट के लिए लिखे एक लेख में उन्होंने भारतीय लोकतन्त्र का उपहास उड़ाते हुए लिखा है कि भारत अब 50-50 लोकतन्त्र से नीचे गिरकर 30-70 लोकतन्त्र बनने की राह पर है, अर्थात अब भारत में लोकतन्त्र का प्रतिशत 50 प्रतिशत से गिरकर 30 प्रतिशत पर आ गया है, और भारत में मानवाधिकारों की कोई जगह नहीं है।
अपनी बात को साबित करने के लिए रामचंद्र गुहा ने एक बार फिर पीएम मोदी के कथित फासीवाद का राग अलापा, जिसे लिबरल गैंग दिन-भर अलापता रहता है। यदि अनुच्छेद 370 के हटाए जाने पर इनकी अप्रसन्नता को अलग रखे, तो यह लेख इनके पुराने लेखों से ही कॉपी पेस्ट किया गया लगता है।
रामचन्द्र गुहा ने अपने लेख में इस बात पर विशेष ज़ोर दिया है कि कैसे मोदी सरकार की नीतियों के कारण देश की ‘धर्मनिरपेक्षता’ खतरे में है। इनके अनुसार, जब तक नेहरू जीवित थे, हिन्दू और मुसलमान आपस में खुशी-खुशी रहते थे, पर उनकी मृत्यु के बाद देश भर में सांप्रदायिक घटनाएँ बढ्ने लगी, जो 80 के दशक में भारतीय जनता पार्टी के आगमन के बाद सातवें आसमान पर पहुँच गयी”।
यदि वास्तविक तथ्यों पर बात करें, तो पिछले 60 वर्षों से काँग्रेस अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की नीति को अनुचित तरीके से बढ़ावा देती आई है। बात तो यहाँ तक आ गयी कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने वर्ष 2006 में ‘नेशनल डेव्लपमेंट काउंसिल’ की एक मीटिंग में यह कहा कि ‘अल्पसंख्यकों का इस देश के संसाधन पर पहला हक है। जिस देश में पंथनिरपेक्षता एवं समानता की दुहाई दी जाती हैं, वहाँ ऐसे बयान देना बिलकुल भी श्रेयस्कर नहीं है, और जनता के आक्रोश के लिए भाजपा को दोषी ठहराना न केवल अनैतिक है, अपितु अशोभनीय भी है।
रामचंद्र गुहा अपने लेख में आगे बताते हैं, “भारत अब ‘हिन्दू पाकिस्तान’ बनने की कगार पर है। इसके पीछे उन्होंने जो कारण दिया है, वो इस लेख की तरह ही बचकाना और बेतुका है। रामचन्द्र गुहा के अनुसार,‘सरकार ने इसलिए कश्मीर पर कड़ी कार्रवाई की है, क्योंकि कश्मीर में मुस्लिम बहुसंख्यक है।“
वह यहीं नहीं रुके तथा व्यंग्यात्मक लहजे में पीएम पर निशाना साधते हुए उन्होंने लिखा, “पाकिस्तान ने जिस तरह घाटी में इस्लामिक आतंकवाद को बढ़ावा दिया है, और जिस तरह भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी छवि स्थापित की है, इन दमनकारी तरीकों [घाटी में सेना की कार्रवाई] को कश्मीर के बाहर के भारतीयों ने इनकी खूब सराहना की है”।
इन बातों को देखकर तो यही लगता है कि रामचन्द्र गुहा को घाटी में व्याप्त उग्रवाद के बारे में कोई ज्ञान नहीं है, जिसके कारण पिछले 3 दशकों से आम नागरिकों को अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा है।
इसके पश्चात रामचन्द्र गुहा आगे बताते हैं कि कैसे मोदी सरकार के अंतर्गत ‘निष्पक्ष एवं नियमों का पालन करने वाले सार्वजनिक संस्थानों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है’। उन्होंने मोदी सरकार के अंतर्गत भारतीय लोकतन्त्र को ‘इलैक्शन ओनली डेमोक्रेसी’की संज्ञा दी है, जिसका अर्थ है कि चुनाव होने के पश्चात सत्ताधारी पार्टी अपने कार्यों के लिए उत्तरदायी नहीं रहती है। इस बात से रामचन्द्र गुहा ये सिद्ध करना चाहते हैं कि भारत अब जल्द ही मोदी सरकार के अंतर्गत ऐसा ही एक लोकतन्त्र बनने को तैयार खड़ा है।
इसके अलावा उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि ‘संसद में अब कोई काम नहीं होता।” लगता है रामचन्द्र गुहा अभी भी यूपीए कार्यकाल में जी रहे हैं, क्योंकि यदि इस बार के लोकसभा सत्र की बात करें, तो आंकड़ों के अनुसार इस बार 17वीं लोकसभा का प्रथम बजट सत्र की कार्यक्षमता 1952 के बाद से सबसे ज़्यादा रही है। इसके अलावा उन्होंने मीडिया के प्रति हमदर्दी दिखाते हुए कहा,”द वायर, द क्विंट एवं एनडीटीवी जैसे स्वतंत्र न्यूज़ वैबसाइट एवं टीवी चैनलों को टैक्स रेड, अभियोग पत्रों से डराने और धमकाने का प्रयास किया जा रहा है।”
परंतु रामचन्द्र गुहा के दावों के ठीक उलट मीडिया प्लैटफॉर्म उतना ही स्वतंत्र है जितना पहले था। हाँ, अगर उन्हें अपने निजी उत्सवों के लिए राष्ट्रपति भवन का उपयोग करना हो, तो मोदी सरकार में उन्हें ऐसी कोई सहूलियत नहीं मिलने वाली। यदि उनपर मानहानि अथवा टैक्स फ़्रौड के मुकदमे चल रहे हैं, तो इसमें सरकार का नहीं, बल्कि स्वयं ऐसे अवसरवादी मीडिया संगठनों का ही दोष है। यदि गुहा इस बात से चिंतित है कि काँग्रेस सरकार के दौरान मीडिया की जिन देश विरोधी गतिविधियों को अनदेखा किया जाता था अब उसपर अब भाजपा सरकार कड़ी कार्रवाई कर रही है, तो उन्हे अपना वाक्य थोड़ा ढंग से पेश करना चाहिए।
इतना ही नहीं, रामचन्द्र गुहा ने यह भी आरोप लगाया कि ‘देश की प्रशासनिक सेवा एवं पुलिस’ भाजपा की जेब में है। प्रेसिडेंट ट्रम्प अपने विरोधियों के पीछे भले ही टैक्स अधिकारियों एवं इंटेलिजेंस एजेंसियों को न लगाए, परंतु मोदी ऐसा कर सकते हैं, और वो अवश्य करेंगे।” शायद रामचन्द्र गुहा यह भूल गए हैं कि जनता ने काँग्रेस को निरंतर घोटालों के कारण ही सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाया था। कई भ्रष्ट अफसर काँग्रेस सरकार की कृपा से ही अकूत संपत्ति के मालिक बन गए थे, जिन्हें अब भाजपा कठघरे में लाने में सफल रही है। इसके अलावा मोदी सरकार ने ऐसे भ्रष्ट अफसरों को समय से पहले सेवानिर्वृत्ति थमाने का निर्देश दिया है, जो काँग्रेस सरकार में सोचा भी नहीं जा सकता था।
ऐसे में रामचन्द्र गुहा का मोदी सरकार के विरोध में लिखा लेख और कुछ भी नहीं, महज कुछ बचकाने मतों का संकलन मात्र है। यह उनकी कुंठा ही है जो अब बाहर आ रही है क्योंकि इन्हें मोदी सरकार में कांग्रेस सरकार की तरह वो महत्व नहीं मिल पा रहा जिसकी उन्हें आदत है। परंतु एक प्रश्न अवश्य उठता है कि आखिर रामचन्द्र गुहा को भारतीय लोकतन्त्र का प्रहरी किसने बनाया? जिनकी खुद की विचारधारा बेहद संकीर्ण हो, उसे आखिर किसने भारतीय लोकतन्त्र पर उपदेश देने का अधिकार दिया है?