गुरुवार रात चंद्रयान 2 (Chandrayaan 2) का लैंडर स्पेस चाँद पर उतरने वाला ही था कि 2.1 किलोमीटर पहले ही इसरो के वैज्ञानिकों का उससे संपर्क टूट गया। इसे देखने के लिए देश के बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक उत्सुक थे। भले ही विक्रम से संपर्क टूट गया हो लेकिन यह भारत के लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। भारत आज अगर चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर अपना लैंडर भेजने में कामयाब हुआ तो केवल वैज्ञानिकों के अथक प्रयासों और सरकार के लगातार प्रोत्साहन से। भारत ने बीते 6 वर्षों में अपने स्पेस मिशन में भारी इजाफा किया है और सफल भी रहा है। आइए देखते हैं कि भारत ने बीते वर्षों में कौन कौन सी उपलब्धि हासिल की है।
शुरुआत करते है वर्ष 2014 से जब इसरो के ‘अंतरग्रहीय मिशन मंगलयान’ ने मंगल की कक्षा में प्रवेश कर इतिहास रचा था। भारत अपने पहले प्रयास में ही मंगल की कक्षा में पहुंचने वाला पहला एशियाई देश बन गया। ये मंगल पर भेजा गया सबसे सस्ता मिशन भी था। इसी के साथ भारत एशिया का ऐसा करने वाला प्रथम पहला देश बन गया, क्योंकि इससे पहले चीन और जापान अपने मंगल अभियान में असफल रहे थे। उस समय प्रतिष्ठित ‘टाइम पत्रिका’ ने भारत के ‘मंगलयान’ को 2014 के सर्वश्रेष्ठ आविष्कारों में शामिल किया था।
इसके बाद 18 दिसंबर 2014 को जीएसएलवी एमके-3 का पहला सफल प्रेक्षपण किया गया था। यह इसरो के अब तक के सबसे भारी रॉकेट में से एक था। जीएसएलवी एमके-3 के सफल परिक्षण के साथ ही भारत उन देशों की लिस्ट में शामिल हो गया जो अन्तरिक्ष में बड़े सैटलाइट भेजने की काबिलियत रखते हैं।
इससे पहले तक भारत के पास दो टन के सैटेलाइट को अंतरिक्ष में भेजने की क्षमता थी, लेकिन इस रॉकेट के परिक्षण के बाद भारत को अंतरिक्ष में चार टन के सैटेलाइट को भेजने की क्षमता प्राप्त हो गयी। और सबसे बड़ी बात ये कि भारी सैटेलाइट लॉन्च करने के लिए भारत की दूसरे देशों पर निर्भरता भी समाप्त हो गयी। इससे न न केवल खर्चा तो कम हुआ बल्कि इससे भारतीय वैज्ञानिकों का आत्मविश्वास भी बढ़ा।
Polar Satellite launch vehicle PSLV C-30 carrying India’s satellite Astrosat launched from Sriharikota. pic.twitter.com/gN7KU1kaoS
— ANI (@ANI) September 28, 2015
वर्ष 2015 में 29 सितंबर को ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल करते हुए देश की पहली अंतरिक्ष वेधशाला ‘एस्ट्रोसैट’ का सफल प्रक्षेपण किया था। अमेरिका, रूस और जापान के बाद ऐसा करने वाला भारत चौथा देश बन गया। ‘एस्ट्रोसैट’ की सबसे खास बात यह है कि जिस रॉकेट से इसे भेजा गया था उसके साथ अमेरिकी नैनो उपग्रह भी भेजे गए थे। यानि कि भारत के ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी-C30), एस्ट्रोसेट के अलावा विभिन्न देशों के छह उपग्रह भी अपने साथ ले गया। इनमें अमरीका के चार नैनो उपग्रह भी शामिल हैं और भारत ने पहली बार अमरीका के व्यावसायिक उपग्रह को प्रक्षेपित किया था। एस्ट्रोसैट में चार एक्सरे पेलोड, एक अल्ट्रा वायलेट दूरबीन और एक चार्ज पार्टिकल मॉनीटर है।
वर्ष 2016 में 23 मई को इसरो ने अपना पहला स्वदेशी स्पेस शटल लॉन्च किया। इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) की ये लॉन्चिंग ऐतिहासिक थी क्योंकि रियूजेबल शटल का यह मॉडल भारत में बना था। एसयूवी जैसा दिखने वाला यह स्पेस शटल अपने ऑरिजिनल फॉर्मेट से छह गुना छोटा है। इस स्पेस शटल को बनाने के बाद इसका सफल परीक्षण किया गया था। फ़िलहाल, इसे पूरी तरह से बनने में 10 से 15 साल लग जाएंगे। पूरी तरह तैयार किये जाने के बाद इस स्पेस शटल का नाम ‘कलामयान’ रखा जाएगा।
इसके बाद वर्ष 2016 में 22 जून को पीएसएलवी सी-34 के माध्यम से रिकॉर्ड 20 उपग्रह एक साथ लॉन्च किये थे। इसरो ने सत्रह विदेशी सैटेलाइट सहित कुल 20 सैटेलाइट एक साथ लॉन्च कर इतिहास रचा था। इसमें तीन स्वदेशी और 17 विदेशी सैटेलाइट शामिल थे।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने वर्ष 2016 में ही 28 अगस्त को स्क्रैमजेट इंजन का सफल परीक्षण किया था। वायुमंडल से ऑक्सीजन लेकर चलने वाले आधुनिक इंजनों के डिजाइन और विकास की दिशा में एक बड़ी कामयाबी हासिल करते हुए भारत ने अपने अत्याधुनिक स्क्रैमजेट राकेट इंजन का सफल परीक्षण किया था। इससे उपग्रह प्रक्षेपण की लागत कई गुना कम हो सकी।
08 सितंबर 2016 को स्वदेशी क्रायोजेनिक अपर स्टेज (सीयूएस) का पहली बार प्रयोग करते हुए जीएसएलवी-एफ05 की सफल उड़ान के साथ इनसैट-3डीआर अंतरिक्ष में स्थापित किया था। इसके बाद इसरो ने श्रीहरिकोटा में साउथ एशिया सैटेलाइट GSAT-9 को लॉन्च किया था। इस सैटेलाइट से पाकिस्तान को छोड़कर बाकी साउथ एशियाई देशों को कम्युनिकेशन की सुविधा मिल रही है। इस मिशन में अफगानिस्तान, भूटान, नेपाल, बांग्लादेश, मालदीव और श्रीलंका शामिल थे। इस प्रोजेक्ट पर 450 करोड़ रुपए का खर्च आया था। ये उपग्रह प्राकृतिक संसाधनों का खाका बनाने, टेली मेडिसिन, शिक्षा क्षेत्र, आईटी और लोगों से लोगों का संपर्क बढ़ाने के क्षेत्र में पूरे दक्षिण एशिया के लिए बहुत ख़ास है। इसके माध्यम से भूकंप, चक्रवात, बाढ़, सुनामी जैसी आपदाओं के समय संवाद कायम करने में मदद मिलती है और आगे भी मिलती रहेगी।
14 फरवरी 2017 को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) ने एक साथ 104 सैटेलाइट्स को लॉन्च करके नया इतिहास रचा था। इन 104 उपग्रहों में भारत के तीन और विदेशों के 101 सैटेलाइट शामिल थे। उस समय पूरी दुनिया इसरो की इस सफलता को देखकर दंग रह गई थी। इससे पहले एक अभियान में इतने उपग्रह एक साथ कभी नहीं छोड़े गए थे। एक अभियान में सबसे ज्यादा 37 उपग्रह भेजने का विश्व रिकार्ड रूस के नाम था। यह प्रक्षेपण श्रीहरिकोटा स्थित अंतरिक्ष केंद्र से किया गया था। इस अभियान में भेजे गए 104 उपग्रहों में से तीन भारत के थे। विदेशी उपग्रहों में 96 अमेरिका के तथा इजरायल, कजाखिस्तान, नीदरलैंड, स्विटजरलैंड और संयुक्त अरब अमीरात के एक-एक थे।
29 नवंबर, 2018 को इसरो के पीएसएलवी-सी43 ने सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र (एसडीएससी) से 31 सैटेलाइटों को सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया था। इसमें एचवाईएसआईएस भारत का एक भू-सर्वेक्षण सैटेलाइट है, जो इसरो की मिनी सैटेलाइट-2 (आईएमएस-2) के साथ बनाई गयी थी जिसका वजन 380 किलोग्राम के लगभग है।
इसके बाद ‘मिशन शक्ति’ के तहत इसरो ने एंटी सैटेलाइट (ए सैट) का परीक्षण किया था जिसमें हमारे देश के वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष में 300 किमी दूर LEO (Low Earth Orbit) में एक लाइव सैटेलाइट को मार गिराया था। इसी के साथ भारत अंतरिक्ष में लाइव सैटेलाइट को मार गिराने की क्षमता रखने वाला चौथा देश बना। इससे पहले यह क्षमता अमेरिका, रूस और चीन के पास ही थी। इसरो और डीआरडीओ के संयुक्त प्रयास के द्वारा इस मिसाइल को विकसित किया गया था।
फिर आया 22 जुलाई, 2019 का दिन जब इसरो ने चन्द्रयान-2 का सफल प्रक्षेपण किया गया जिसका उद्देश्य क्रमिक विकास और सौर मंडल के पर्यावरण की अविश्वसनीय जानकारियों को पृथ्वी पर भेजना है। चाँद पर पानी होने के सबूत तो चंद्रयान 1 ने खोज लिए थे, अब चंद्रयान 2 से यह पता लगाया जा सकेगा कि चांद की सतह और उपसतह पर कितने भाग में पानी है। चंद्रयान 2 चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर केन्द्रित रहेगा।
यह सभी उपलब्धियां इसरो को विश्व की सफल स्पेस एजेंसियों में से एक बनाती है। इसरो का चंद्रयान 2 के लैंडर से भले ही संपर्क टूट गया हो लेकिन ओर्बिटर अभी भी काम कर रहा है और चंद्रयान मिशन का 95 फीसदी खोज यही करेगा। इस असफलता से किसी को भी परेशान होने की जरूरत नहीं है। हमें पूर्ण विश्वास है कि इसरो फिर से अपनी लगन और मेहनत से विश्व में भारत का सर गर्व से ऊंचा करता रहेगा।