वर्ष 2019 के शुरुआत से ही जम्मू-कश्मीर सुर्खियों में बना हुआ है। एक के बाद एक कई अहम फैसले लेकर केंद्र की मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर की काया पलटने की ज़िम्मेदारी ली है। जम्मू-कश्मीर को अस्थायी तौर पर मिले विशेष दर्जे को खत्म किए जाने और सूबे की 2 केंद्रशासित प्रदेशों के तौर पर पुनर्गठन के बाद अब ऐसा लग रहा है कि केंद्र सरकार फिर से जम्मू-कश्मीर का रौनक लौटाने और घाटी को आतंकवाद-अलगाववाद से छुटकारा दिलाकर स्वर्ग बनाने की दिशा में जुट गई है।
दरअसल, गृह राज्यमंत्री जी. किशन रेड्डी ने सोमवार को कहा कि सरकार घाटी में सालों से बंद पड़े मंदिरों का सर्वे करा रही है। गृह राज्यमंत्री रेड्डी ने कहा, ‘हमने कश्मीर घाटी में बंद पड़े स्कूलों की सर्वे के लिए एक कमेटी का गठन किया है और उन्हें दोबारा खोला जाएगा। पिछले कुछ सालों में करीब 50 हजार मंदिर बंद हुए हैं, जिनमें से कुछ नष्ट हो गए हैं और कुछ की मूर्तियां टूटी हुई हैं। हमने ऐसे मंदिरों की सर्वे का आदेश दिया है।’
बात दें कि धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर राज्य में सिर्फ वैष्णो माता का मंदिर ही नहीं बल्कि कई और प्रसिद्ध हिंदू मंदिर भी है। इनमें से कई तो 9वीं शताब्दी में निर्मित मंदिर हैं, जो अब खंडहर के रूप में ही शेष रह गए हैं लेकिन हिंदू श्रद्धालुओं की आस्था आज भी इन मंदिरों में उतनी ही है जितनी पहले हुआ करती थी।
जम्मू और कश्मीर के लिए राजतरंगिणी तथा नीलम पुराण नामक दो प्रामाणिक ग्रंथों में यह आख्यान मिलता है कि कश्मीर की घाटी में कभी बहुत बड़ी झील हुआ करती थी। इस कथा के अनुसार कश्यप ऋषि ने यहां से पानी निकाला और इसे मनोरम प्राकृतिक स्थल में बदल दिया। किंतु भूगर्भशास्त्रियों का कहना है कि भूगर्भीय परिवर्तनों के कारण खदियानयार, बारामुला में पहाड़ों के धंसने से झील का पानी बहकर निकल गया और इस तरह ‘पृथ्वी पर स्वर्ग’ कहलाने वाली कश्मीर की घाटी अस्तित्व में आई।
ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में सम्राट अशोक ने कश्मीर में बौद्ध धर्म का प्रसार किया। बाद में कनिष्क ने इसकी जड़ें और गहरी कीं। छठी शताब्दी के आरंभ में कश्मीर पर हूणों का अधिकार हो गया। यद्यपि सन् 530 में घाटी फिर स्वतंत्र हो गई लेकिन इसके तुरंत बाद इस पर उज्जैन साम्राज्य का नियंत्रण हो गया। विक्रमादित्य राजवंश के पतन के पश्चात कश्मीर पर स्थानीय शासक राज करने लगे। वहां हिन्दू और बौद्ध संस्कृतियों का मिश्रित रूप विकसित हुआ। कश्मीर के हिन्दू राजाओं में ललितादित्य (सन 697 से सन् 738) सबसे प्रसिद्ध राजा हुए, जिनका राज्य पूर्व में बंगाल तक, दक्षिण में कोंकण, उत्तर-पश्चिम में तुर्किस्तान, और उत्तर-पूर्व में तिब्बत तक फैला था। ललितादित्य ने अनेक भव्य भवनों मंदिरों का निर्माण किया तब जम्मू-कश्मीर अपने समृद्धि के चरम सीमा पर था। लेकिन फिर एक के बाद एक लगातार इस्लामिक आक्रमण ने जम्मू-कश्मीर में कट्टरवाद का जहर मिला दिया जिससे यह खूबसूरत राज्य आज भी उबर नहीं पाया है। इतिहास के मध्यकाल में भारत पर इस्लामिक अक्राताओं ने कई हमले किये और इसका सबसे पहला शिकार भारत के उत्तर पश्चिमी राज्य ही हुए जिनमें से जम्मू-कश्मीर सबसे ऊपर था।
समय के साथ ये हमले बढ़ते गये और सनातन धर्म को खत्म करने के कई प्रयास किये गये। स्वतन्त्रता के बाद भी जम्मू-कश्मीर में लगातार हिंदू इस तरह के हमलों से जूझते रहे, यहां तक कि इस राज्य के अन्य धर्म के लोगों ने भी इसमें कोई कसर नहीं छोड़ी। तत्कालीन मुस्लिम सरकार ने जम्मू-कश्मीर को हिन्दू बहुल से इस्लाम में परिवर्तित करने का भरपूर प्रयास किया। इस्लाम के एकछत्र राज में हिंदू मंदिरों का बड़े स्तर पर विध्वंस हुआ। शासन पर पकड़ बनाए रखने के लिए शेख अब्दुल्ला ने कश्मीर में इस्लाम को बढ़ावा दिया और मंदिरों को विध्वंस करवाया।
इस बात की जानकारी राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड के पूर्व डीजी वेद मरवाह ने अपनी पुस्तक “इंडिया इन टरर्मोइल” में भी वर्णन किया है कि शेख अब्दुल्ला मुख्यमंत्री रहते हुए इस्लाम को शह देने के लिए लगभग हजारों मंदिरों को तोड़वाया था। इस कट्टरवादिता का ही परिणाम था कि वर्ष 1989 में कश्मीरी पंडितों पर असहनीय हमले हुए और घाटी से हिंदुओं का नामों निशान मिटाने की कोशिश की गयी थी। हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार पिछले दो दशकों के दौरान जम्मू-कश्मीर में लगभग 208 मंदिरों को तोड़ा गया। कश्मीरी पंडितों को घाटी से निकालने के बाद खाली घरों के बारे में सरकार ने बताया था कि श्रीनगर जिले में 1,234 घरों में से लगभग 75% खाक हो चुके हैं। दक्षिण कश्मीर के कुलगाम जिले में 754 घरों में से लगभग 85% क्षतिग्रस्त हो चुके हैं। उस समय न केवल कश्मीरी पंडितों को घर से बाहर निकाला गया था बल्कि आतंकवादियों ने हिन्दू धर्म के सभी प्रतीकों जैसे मंदिर और पूजनीय स्थानों को भी मिट्टी में मिला दिया था। इन हमलों का उद्देश्य हिंदू धर्म की विरासत को जड़ से मिटाने के लिए ही था जो हमारे देश की धर्मनिरपेक्ष प्रकृति के खिलाफ था।
अब केंद्र सरकार लगातार जम्मू-कश्मीर के हित के लिए फैसले ले रही है, तथा अनुच्छेद 370 के निरस्त करने के बाद यह प्रयास तेज़ हो चुका है। एक तरफ जहां अमित शाह गृह मंत्रालय में वरिष्ठ अधिकारियों के साथ राज्य में कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास के लिए एक “प्रभावी नीति” तैयार कर रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ अब मंदिरों और स्कूलों का पुनर्निर्माण करने का फैसला लिया गया है। इससे पहले वर्ष 2015 में पीएम नरेंद्र मोदी ने श्रीनगर के शेर-ए-कश्मीर स्टेडियम में रैली को संबोधित करते हुए 80 हजार करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की थी। इनमें अहम प्रोजेक्टों में दो एम्स, IIM, पावर प्रोजेक्ट, जम्मू-अखनूर मार्ग को फोर लेन करना, खेल ढांचा, कौशल विकास कार्यक्रम, पर्यटन क्षेत्र को बढ़ावा, जल स्त्रोतों का सौंदार्यकरण, बागवानी शामिल है। योजना, विकास और निगरानी विभाग के प्रमुख सचिव रोहित कंसल ने बताया कि प्रधानमंत्री विशेष पैकेज के 66,298 करोड़ रूपए के 63 प्रोजेक्ट्स पर काम करने के लिए 16 मंत्रालय शामिल हैं। उन्होंने कहा कि 27,857 करोड़ जारी हो चुके हैं और अब तक 23948 करोड़ खर्च हो गए हैं। राज्य सरकार ने 2474 करोड़ अपने हिस्से के उपलब्ध करवाए हैं। 44 प्रोजेक्टों पर काम चल रहा है। आठ प्रोजेक्ट पूरे हो गए हैं।
इससे न सिर्फ कश्मीर की प्राचीन रौनक लौटेगी बल्कि जब विश्व कश्मीर की तरफ देखेगा तो भारत की सभ्यता का एक उत्तम नमूना देखने को मिलेगा। पहले जैसा कर्फ्यू वाला कश्मीर फिर देखने को नहीं मिलेगा, आतंकियों का कोई भय नहीं होगा। भारत का नया कश्मीर ऐसा होगा जहां पहले से ज्यादा सहिष्णुता, आधुनिकता होगी। यहां कश्यप ऋषि के समय की संस्कृति भी देखने को मिलेगी।