संसद के शीतकालीन सत्र में केंद्र सरकार एक महत्वपूर्ण बिल ला सकती है। जिसका नाम है ‘स्पेस एक्टिविटी बिल’, इस बिल का मसौदा 2017 में ही तैयार हो गया था। इस बिल के आने से इसरो के साथ-साथ अंतरिक्ष में देश को सुपर पावर बनाने के लिए कई प्राइवेट कंपनियां भी काम करने लगेंगी। जैसा की अन्य देशों में होता है।
क्या है स्पेस एक्टिविटी बिल
देश के पहले अंतरिक्ष कानून के मसौदे का अनावरण 21 नवंबर 2017 को किया गया था। यह विधेयक प्राइवेट सेक्टर (निजी क्षेत्र) को उपग्रहों, रॉकेट और उपग्रह उप-प्रणालियों के निर्माण के लिए अनुमति देने की दिशा में उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम है। यह अंतरिक्ष से संबंधित सभी कंपनियों और गतिविधियों के लिए लाइसेंस प्रदान करेगी। मसौदे में नियमों के उल्लंघन पर 1 करोड़ रूपए और इससे अधिक के दंड व जेल का प्रावधान है।
आज से कुछ दशकों पहले तक स्पेस यानि अन्तरिक्ष को लेकर दुनिया इतनी सजग नहीं थी और न ही कभी दुनिया ने इस क्षेत्र में नई संभावनाओं को तलाशने में कोई दिलचस्पी दिखाई। हालांकि, आज स्पेस का महत्व काफी हद तक बढ़ गया है। सिर्फ कम्यूनिकेशन ही नहीं, बल्कि रिसर्च और शिक्षा क्षेत्र के विकास के लिए भी आज स्पेस का उपयोग किया जा रहा है। इसके अलावा सुरक्षा दृष्टि से भी स्पेस कभी इतना महत्वपूर्ण नहीं रहा जितना आज हो गया है। माना जाता है कि अगर भविष्य में कभी युद्ध लड़ा गया, तो वह अन्तरिक्ष में ही लड़ा जाएगा।
भारत भी इस क्षेत्र में अनुसंधान करने में काफी आगे रहा है और भारत की स्पेस एजेंसी इसरो ने इस क्षेत्र में काफी उपलब्धियां बटोरी हैं। हालांकि, अन्य स्पेस एक्स्प्लोरेशन की दौड़ में विकसित देशों के उलट, भारत में अभी प्राइवेट स्पेस उद्योग वजूद में ही नहीं आया है और एकमात्र इसरो ही एक ऐसे संस्था है जिसपर स्पेस एक्स्प्लोरेशन का सारी जिम्मेदारियाँ हैं, लेकिन भारत को जल्द से जल्द इस स्थिति को बदलने पर ध्यान देना होगा।
इसके लिए अगर भारत चाहे तो अमेरिका से सीख ले सकता है जहां स्पेसएक्स, बोइंग और एक्सिओम जैसी प्राइवेट कंपनियाँ स्पेस तकनीक के क्षेत्र में बहुत तेज़ी से सफलतापूर्वक काम कर रही हैं। इस वर्ष ट्रम्प प्रशासन ने अमेरिका की स्पेस एजेंसी नासा के हिस्से में 21 बिलियन डॉलर का बजट आवंटित किया है जो पिछले वर्ष के मुक़ाबले 1.4 प्रतिशत ज़्यादा है। यह बजट इसीलिए बढ़ाया गया है ताकि नासा अपने साथ अन्य निजी क्षेत्र की कंपनियों के सहयोग को बढ़ावा दे सके और सरकार प्राइवेट कंपनियों को प्रोत्साहित करने के लिए ज़्यादा सब्सिडीज़ दे सके। वहीं भारत में भी इसरो अब अन्य कंपनियों के साथ मिलकर काम करने की योजना बना रही है। उदाहरण के तौर पर इसरो अभी जिस योजना पर काम कर रही है, उसके तहत वर्ष 2021 के बाद इसरो के PSLV रोकेट्स को HAL और L&T जैसी कंपनियाँ मिलकर बनाएँगी। L&T एक प्राइवेट सेक्टर कंपनी है और ऐसे में स्पेस क्षेत्र में उसका योगदान बेशक भारत में स्पेस क्षेत्र में निजी उद्योग के विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
एक तरफ जहां भारत में प्राइवेट स्पेस सेक्टर के विकास के लिए भारत सरकार को निजी कंपनियों को सबसिडी देने पर विचार करना चाहिए, तो वहीं भविष्य में इस क्षेत्र में काफी हद तक व्यवसाय में बढ़त भी देखने को मिल सकती है, यानि प्राइवेट सेक्टर को इससे आर्थिक फायदा भी पहुँच सकता है। स्पेस में खनिज पदार्थों की भरमार है, और धरती पर उनके अत्यधिक इस्तेमाल से लगातार उनकी कमी हो रही है, ऐसे में भविष्य में अगर ऐसी तकनीक पर काम किया जाए जो इन खनिज पदार्थों को धरती पर लेकर आ सके, तो बेशक यह प्राइवेट सेक्टर के लिए बड़े आर्थिक प्रोत्साहन से कम नहीं होगा। बता दें कि खनिज पदार्थो से भरपूर आधे किलोमीटर लंबे एक ‘एस्ट्रोइड’ की कीमत लगभग 20 ट्रिलियन यूएस डॉलर मानी जाती है। इसके अलावा कई स्पेस कंपनियाँ स्पेस टूरिज़म को भी बढ़ावा देने पर विचार कर रही हैं, जिसके तहत वे इच्छुक स्पेस यात्रियों को स्पेस की सैर कराने की योजना पर काम कर रही हैं। सरकारी सबसिडी के अलावा, ये कुछ क्षेत्र हैं जो स्पेस सेक्टर में निजी निवेश को प्रोत्साहित कर सकते हैं।
प्राइवेट स्पेस सेक्टर के विकास से भारत को यह फायदा होगा कि नई-नई कंपनियाँ स्पेस एक्स्प्लोरेशन में अपना योगदान दे सकेंगी और नई एवं सस्ती स्पेस तकनीक का आविष्कार कर सकेंगी। चीन में भी प्राइवेट स्पेस सेक्टर काफी विकास कर रहा है और वहां की सरकारी स्पेस एजेंसी के साथ मिलकर नई तकनकों को विकसित करने की दिशा में काम कर रहा है। यही कारण है कि भारत में अब निजी स्पेस सेक्टर का विकास अति-महत्वपूर्ण हो गया है, ताकि स्पेस सेक्टर में हम दुनिया के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल सकें।