केरल के यौन उत्पीड़न केस में प्रमुख आरोपी बिशप फ्रैंको मुलक्कल के विरुद्ध मोर्चा खोलने वाली ननों में से एक ने सोमवार को अपनी आत्मकथा के बारे में बताया। उनकी आत्मकथा का शीर्षक ‘कार्तविनेते नामाथिल’ (भगवान के नाम पर) है जो ईसाई धर्मगुरूओं और बिशप द्वारा यौन दुर्व्यवहार के बारे में लिखा गया है।
इस आत्मकथा के बारे में मीडिया से बातचीत करते हुए नन ने कहा कि यह जीवन के खौफनाक अनुभवों, यौन शोषण और बिशप द्वारा ननों के उत्पीड़न के बारे में है। उक्त नन को 2000-03 के दौरान मानसिक उत्पीड़न का शिकार होना पड़ा था। इसके कारण उन्होंने इस अनुभव को 2004 और 2005 के बीच एक किताब के रूप में लिखना शुरू किया। कई ननों के साथ यौन दुर्व्यवहार और यातनाओं की घटनाओं का वर्णन करते हुए, उन्होंने कहा कि चर्च के नेता भी, जिन्होंने ननों का समर्थन किया था, वे भी अब आरोपियों का समर्थन करना शुरू कर दिया है। उन्होंने आगे कहा कि कैथोलिक चर्च के नेता, जिन्होंने चर्च के ननों का समर्थन किया पीड़ितों ने, अब उनके खिलाफ बात करनी शुरू कर दी है और अभियुक्तों का समर्थन कर रहे हैं। यह यीशु मसीह की शिक्षाओं के खिलाफ है। इससे मुझे दुख हुआ और मुझे लगा कि जो भी हो रहा है उसे दुनिया को बताना चाहिए।
उन्होंने आगे कहा कि मैंने इसे 2004-05 में लिखना शुरू किया था क्योंकि, 2000-03 की अवधि में मुझे एक कड़वा अनुभव हुआ था। उन्होंने क्रिश्चियन समुदाय में हर स्तर पर दरवाज़ा खटखटाया, और वे न्याय की आस में वेटिकन तक भी पहुंची, पर हर जगह उन्हें निराशा ही हाथ लगी।
बता दें कि बिशप फ्रैंको मुलक्कल पर एक नन के साथ दुष्कर्म करने का आरोप लगा था। इसके पीछे केरल की कई नन ने चर्च के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया। परन्तु उनकी एक नहीं सुनी गई, और वैटिकन ने भी उनकी दलीलों पर सुनवाई करने से मना कर दिया। उनके ज़ख्मों पर नमक छिड़कते हुए ना केवल फ्रैंको मुलक्कल की पदोन्नति हुई, अपितु कई ननों को निष्कासित भी किया गया।
इसके साथ ही जिस कांग्रेगेशन पर मुलक्कल के आरोप लगे थे, उसी ने एक नन सिस्टर लुसी पर अपनी कविताएं प्रकाशित कराने, कार खरीदने और दुष्कर्म के आरोपित जालंधर डायोसिस के पूर्व बिशप के खिलाफ प्रदर्शन में भाग लेने समेत कई आरोप लगाए थे। वहीं सिस्टर लुसी की मानें तो इनमें से कई आरोप फर्जी हैं। उनमें उनकी कोई भागेदारी नहीं थी। कांग्रेगेशन ने कहा कि सिस्टर लुसी को उनके किए पर पश्चाताप करने के लिए कहा गया था लेकिन उन्होंने नहीं किया। इसलिए 11 मई को धर्मसभा की आम परिषद की बैठक में कलाप्पुरा को ‘सर्वसम्मति’ से बर्खास्त करने का फैसला किया गया। कलाप्पुरा को जनवरी में जारी नोटिस में एफसीसी ने ड्राइविंग लाइसेंस लेने, कार खरीदने, ऋण लेने, किताब प्रकाशित करने और वरिष्ठों की जानकारी के बिना धन खर्च करने के नियमों का उल्लंघन करने का दोषी पाया गया था।
चर्च के पदाधिकारियों का कहना है कि वेटिकन ने नन की याचिका खारिज कर दी है लेकिन उन्हें एक बार और अपील करने का मौका दिया जाएगा। अगर यह भी खारिज हुआ तो उन्हें कांग्रेगेशन से हमेशा के लिए अलग कर दिया जाएगा।
हालांकि यह पहली ऐसी घटना नहीं है। कैथोलिक समुदाय में ऐसे जघन्य अपराध लगभग आम बात है। इस कुत्सित मानसिकता की एक झलक 2005 में शाइनी आहूजा अभिनीत “सिंस” में दिखाने का प्रयास किया गया था, जिसे तत्कालीन यूपीए सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया था। ऐसे में केरल की ननों द्वारा लिखित पुस्तक इस कुत्सित मानसिकता पर प्रकाश डालने का प्रयास कर सकती है, जो स्वागत योग्य है।