चुनाव में जीतने के बाद किसी भी राज्य में राजनीतिक पार्टियां अपने वोट बैंक को साधने में लग जाती हैं चाहे इसके लिए राज्य और देश को नुकसान ही क्यों न उठाना पड़े। इसी का एक नमूना झारखंड में देखने को मिल रहा है। राज्य के चाईबासा जिले में पत्थलगड़ी आंदोलन का विरोध करने पर 7 लोगों की हत्या कर दी गई।
दरअसल, पिछले वर्ष राज्य के विधानसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस की गठबंधन ने जीत दर्ज की। जीत दर्ज करने के बाद, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का सबसे पहला फैसला पत्थलगड़ी आंदोलन के लिए देशद्रोह के आरोपियों के केस को वापस लेने का था। हेमंत सोरेन की सरकार ने पहले तो एंटी कन्वर्जन लॉ का रिव्यू करने का बयान दिया था। उसके बाद यह फैसला किया कि राज्य में दो साल पहले पत्थलगड़ी आंदोलन के दौरान दर्ज मामले वापस लिए जाएंगे। अब इसी का फल देखने को मिल रहा है जब पत्थलगड़ी का विरोध करने पर 7 लोगों की निर्मम हत्या कर दी गयी।
पत्थलगड़ी समर्थकों ने इन सभी 7 लोगों को पश्चिमी सिंहभूम के गुलीकेरा गांव से रविवार को अगवा कर लिया था। एडीजी मुराली लाल मीना ने बुधवार को बताया कि 19 घंटे के सर्च ऑपरेशन के दौरान अति नक्सल प्रभावित गुलीकेरा गांव से 3 किलोमीटर दूर जंगल में शव मिले। पुलिस के मुताबिक, पत्थलगड़ी समर्थकों ने रविवार को गांव में बैठक की थी। पत्थलगड़ी का विरोध करने पर उपमुखिया जेम्स बूढ़ समेत 7 लोगों की धुनाई की। इसके बाद पत्थलगड़ी समर्थक सातों को उठाकर जंगल की ओर ले गए। जब ये लोग नहीं लौटे तो सोमवार को उनके परिजन ने गुदड़ी थाने में शिकायत दर्ज कराई। गांव वालों के अनुसार रविवार को पत्थलगड़ी समर्थकों ने सातों लोगों को उनके परिजनों के सामने ही सजा-ए-मौत दी थी।
इसके बाद मंगलवार दोपहर पुलिस को सूचना मिली कि अगवा लोगों की हत्या कर उनके शव जंगल में फेंक दिए गए हैं। इसके बाद पुलिस ने तलाशी अभियान शुरू किया। झारखंड में पत्थलगड़ी के समर्थन में अब तक कई घटनाएं हो चुकी हैं। लेकिन यह सबसे बड़ी वारदात है।
पत्थलगड़ी चर्चा में तब आया जब पिछले साल अगस्त में रांची से 40 किमी दूर खूंटी जिले के कुछ गांवों में स्थानीय शासन पर जोर देने की सूचनावाले पत्थर गाड़े गए थे। ग्रामीणों के अनुसार उन इलाकों में ‘दीकू’ यानी किसी गैर आदिवासी को बिना अनुमति घुसने नहीं दिया जाएगा, सरकारी मुलाजिमों को तो कतई नहीं। इस आंदोलन के समर्थक इन इलाकों में सरकारी सुविधाओं जैसे राशन कार्ड, आधार कार्ड, इलेक्शन कार्ड, सरकारी स्कूल, अस्पताल आदि का बहिष्कार करने पर जोर देते हैं।
पत्थलगड़ी आदिवासी समाज की एक परंपरा है, जिसके जरिए से गांव का सीमांकन किया जाता है, लेकिन अब इसी की आड़ में गांव के बाहर अवैध ढंग से पत्थलगड़ी की जा रही थी। पत्थर पर ग्राम सभा का अधिकार दिलाने वाले भारतीय संविधान के अनुच्छेदों (आर्टिकल) की गलत व्याख्या करते हुए ग्रामीणों को आंदोलन के लिए उकसाया जा रहा था। इसी कड़ी में सोशल मीडिया पर भी भारत सरकार के खिलाफ पोस्ट में भड़काया जा रहा था जिसके बाद कई केस दर्ज किए गए थे। फ़ेसबुक मामले में झारखंड हाईकोर्ट ने सभी दलीलों पर विचार करने के बाद एक सदस्यीय पीठ ने कहा था कि ‘जब कोई आलोचना सरकार के खिलाफ घृणा की हिंसा को जन्म देती है तो यह आईपीसी की धारा 124ए के तहत अपराध के समान है, जो संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत नहीं आता है’। कोर्ट ने कहा कि ‘फेसबुक पोस्ट से साफ जाहिर है कि प्रथम दृष्टया मंशा देशद्रोह करने की ही थी’।
ऐसे किसी आंदोलन को देश विरोधी ताकतों का समर्थन न मिले, यह संभव नहीं। इस आंदोलन को कुछ मिशनरियों व कट्टरवादियों का भरपूर समर्थन मिला। इसे रघुवर दास की सरकार और केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ लड़ाई का प्रतीक बना दिया गया था। खूँटी, गुमला से लेकर एक समय तक यह आंदोलन लोहरदगा, राँची और सिमडेगा तक फैल गया था।
पत्थलगड़ी आंदोलन करने वाले 172 लोगों के खिलाफ दर्ज केस और 19 लोगों के खिलाफ देशद्रोह के मामले को हेमंत सोरेन ने वापस लेने का फैसला लिया था, जिसमें गैंग रेप और पुलिस को अपहरण का आरोप भी है। हेमंत सोरेन का वह फैसला झारखंड में अपने पैर पसारता नजर आ रहा है। अगर कार्रवाई नहीं की गयी तो यह दंश पूरे देश को झेलना पड़ सकता है।























