भारत में भिन्न भिन्न प्रकार के नेता हैं। धार्मिक नेता, कॉमिकल नेता और बात बात पर ‘का का ची छी’ करने वाले नेता। परंतु नेताओं की एक बिरादरी ऐसी भी हैं, जिन्हें देख तो फन्ने खान और तीस मार खान जैसे फेंकू भी शर्म के मारे पतली गली से खिसक लें। इनका चाहे जनता जूते चप्पलों से स्वागत करे, चाहे इन्हें मार कर लोग भरता बना दें, पर कॉन्फ़िडेंस ऐसा की खुद राहुल गांधी कहे
हम बात कर रहें हैं स्वयंभू नेताओं की, जिनकी लोकसभा तो छोड़िए, नगरपालिका के चुनाव में कोई पूछ नहीं है। इनकी जमानत ज़ब्त हो न हो, परंतु इनकी इज्जत तो हर चुनाव के साथ ज़ब्त हो जाती है। परंतु बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना की भांति ये हर उस चुनाव में अपना कीमती ज्ञान बाँचते हुए दिखाई देते हैं, जहां भारतीय जनता पार्टी चुनाव हारी हो।
इन स्वयंभू नेताओं के केस में सबसे शानदार उदाहरण है कन्हैया कुमार का। वामपंथियों के पोस्टर बॉय और टुकड़े टुकड़े गैंग के नेता के तौर पर प्रसिद्ध ये व्यक्ति अपने आप को जॉर्ज फर्नांडिस से कम नहीं मानते, जिन्हें लगता है कि उनके एक इशारे पर पूरा भारत उनके सामने नतमस्तक हो जाएगा। महोदय की गलतफहमी दूर करने का प्रयास पिछले वर्ष लोकसभा चुनाव में बेगूसराय की जनता ने दूर करने का किया था, परंतु कन्हैया ने लगता है कोई सीख नहीं ली। तभी तो आजकल बिहार में जहां भी जाते हैं, उनका स्वागत बड़े प्रेम से किया जाता है। बिहार का बेजोड़ आतिथ्य तो देखिये, जूता, चप्पल, मोबिल तेल, अंडे, सब मिला है कन्हैया को।
परंतु कन्हैया अपने टाइप के इकलौते व्यक्ति नहीं है। इनके परम मित्र और साइड बिजनेस में अधिवक्ता प्रशांत भूषण भी कोई कम नहीं है। अरविंद केजरीवाल चाहे जितना भी ऊटपटाँग हरकत हो, लेकिन शायद वो भी पहचान गए थे कि प्रशांत भूषण किस चिड़िया का नाम है। कभी ईवीएम का रोना रोते हैं, तो कभी फालतू के केस लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा आते हैं। दिल्ली पुलिस के एक कॉन्स्टेबल से लेकर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश तक से ये बेज्जत हो चुके हैं, पर मजाल है कि ये अपने इरादों से टस से मस हुए हों।
प्रशांत भूषण का भी कन्हैया कुमार की तरह जनता ने बड़े प्रेम से स्वागत किया है। कभी स्याही फेंकी गयी, तो कभी जूते, एक बार तो जनाब के चेम्बर में घुसकर उन्हें कूट दिया गया।
हाल ही में शाहीन बाग से संबन्धित विरोध प्रदर्शनों के दौरान जब प्रशांत भूषण ने खाँटी दिल्लीवाला बनने का असफल प्रयास करते हुए पूछा, ‘जानता है मैं कौन हूँ?’, तो दिल्ली पुलिस के कांस्टेबल ने बड़ी तत्परता से बोला, ‘नहीं सर, मैं नहीं जानता कि आप कौन हो’
अब इन दोनों का नाम लिया है, और योगेन्द्र यादव को भूल जाएँ, ऐसा हो सकता है क्या? योगेन्द्र यादव उर्फ सलीम [सौजन्य – ट्विटर मेमे संघ], एक शिक्षाविद/ psephologist / activist / politician/ Swaraj India के अध्यक्ष हैं। इनके लाइफ में बस दो ही मकसद हैं, हर चुनाव में नोटा से कम वोट्स लाना, और भाजपा को जलील करना। परंतु योगेन्द्र यादव का एक और शौक भी है, वो है पुलिस से पिटाई खाना। जितनी बार ये पीटे गए हैं, खुद पुलिस भी शर्मा जाती होगी कि आखिर है कौन ये व्यक्ति, जिसे पीटने में इतना मज़ा आता है।
सच कहें तो इन स्वयंभू नेताओं को अभी भी लगता है कि जनता उन्हें वैसे ही गले लगाएगी, जैसे किसी जमाने में तीसरे मोर्चे के नेताओं के साथ होता है। परंतु ये भूल जाते हैं कि नेतृत्व एक कला है, जिसमें हर कोई पारंगत नहीं होता, और कन्हैया कुमार, प्रशांत भूषण तो बिलकुल नहीं है।