सैन्य बल के मामले में भारत और नॉर्थ कोरिया के बाद चीनी सेना ही दुनिया की सबसे बड़ी सेना मानी जाती है। कम्युनिस्ट पार्टी ने इस वर्ष की शुरुआत में अपनी सेना में 50 प्रतिशत की कमी कर दी थी, और तब चीन ने कहा था कि वह अपनी Army को छोड़कर Navy और Airforce पर अधिक ध्यान देगा। चीन हर वर्ष अपनी सेना पर अरबों डोलर्स खर्च करता है। चीन ने इस वर्ष भी अपनी तीनों सेनाओं पर 178.6 बिलियन डॉलर खर्च करने का अनुमान रखा है। हालांकि, चीनी सेना बाहर से जितना मजबूत दिखाई देती है, उतनी मजबूत असल में वह है नहीं, क्योंकि कई सारी मीडिया रिपोर्ट्स और शोध इस बात का दावा करते हैं कि चीनी सेना “one child policy” के तहत जन्में इकलौते बच्चों से भरी पड़ी है, जिन्हें बड़े ही लाड़-प्यार से पाला गया होता है, और उनमें लड़ने का ज़रा भी हौसला नहीं होता।
Quartz की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 1979 के बाद से चीनी सेना के पास किसी बड़ी मुठभेड़ का कोई अनुभव ही नहीं है, और चीन के सैनिक अपनी training का 40 प्रतिशत हिस्सा “राजनीतिक ट्रेनिंग” में बिताते हैं। वर्ष 1979-80 में ही चीन में “one child policy” लागू की गयी थी, जिसे शुरू-शुरू में चीनी सेना के लिए वरदान समझा गया, क्योंकि चीन को लगा था कि इससे सिर्फ पढे-लिखे, समझदार नौजवान ही चीनी सेना में भर्ती होंगे, लेकिन बाद में चीनी प्रशासन ने पाया कि ये बच्चे तो बड़े ही बुझदिल, लाड़-प्यार से पाले हुए, और “बिगड़ैल” थे। चीनी सेना PLA अपने “बिगड़ैल” सैनिकों को सही रास्ते पर लाने के लिए विशेष ट्रेनिंग प्रोग्राम भी चलाती है।
जब से वुहान वायरस दुनिया भर में तांडव मचा रहा है, तभी से पूरा विश्व चीन के विरुद्ध मोर्चा संभाल चुका है, और बौखलाहट में चीन साउथ चाइना सी और ईस्ट चाइना सी में अपनी गुंडई दिखाकर अपने आप को महा शक्तिशाली सिद्ध करना चाहता है, मानो वह किसी भी प्रकार के युद्ध हेतु पूरी तरह तैयार है। परन्तु सच कहें तो चीन के पास वास्तव में युद्ध करने का अनुभव लगभग ना के बराबर है। चाइना ने वास्तव में पिछले डेढ़ सौ सालों में एक भी ढंग का युद्ध नहीं लड़ा है। जब भी उसने किसी से युद्ध लड़ा है, उसने सदा मुंह की खाई है। उदाहरण के लिए वर्ष 1279 में जब मंगोल शासक कुबलई खान ने धावा बोला, तो सॉन्ग वंश ताश के पत्तों की तरह बिखर गया।
वर्तमान पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की बात करें, तो उसने भी कोई बड़ा तीर नहीं मारा है। 1962 के भारत-चीन युद्ध को चीन चाहकर भी अपने उपलब्धियों में नहीं गिन सकता। यह युद्ध सिर्फ इसलिए लड़ा गया था, ताकि चीन का तानाशाह माओ त्से तुंग चीन में भुखमरी के संकट से ध्यान हटा सके। उनके लिए सोने पे सुहागा की बात यह थी कि उस समय भारत पर जवाहरलाल नेहरू का शासन था, जिनके अपरिपक्व नेतृत्व के कारण भारतीय सेना को काफी नुकसान उठाना पड़ा था। लेकिन उसके बावजूद चाइना के लिए यह विजय कोई बहुत बड़ी उपलब्धि नहीं थी, क्योंकि इस युद्ध में कम संसाधन और बेकार शस्त्रों से सुसज्जित होने के बावजूद भारतीय सेना ने चीनी खेमे में तांडव मचा दिया था।
जब 1967 में चीन ने एक बार फिर यह कथा दोहराने का प्रयास किया, तो भारतीय सेना ने नाथू ला और चो ला के क्षेत्रों में China को पटक पटक के धोया। इस भिड़ंत में China को कितना नुकसान हुआ, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि चीन को खुद स्वीकारना पड़ा था कि 400 से अधिक चीनी सैनिक इस युद्ध में मारे गए थे। इस युद्ध में भारत के प्रचंड विजय के कारण ही सिक्किम का भारत में विलय संभव हो सका था।
अब अगर युद्ध में pampered बच्चे आकर लड़ाई लड़ेंगे, तो हश्र तो यही होगा ना! अब आपको चीनी सेना की एक और उपलब्धि बताते हैं। वर्ष 2016 में छपी The Guardian की एक रिपोर्ट के मुताबिक जब चीनी सैनिक UN peacekeeping मिशन के तहत सूडान में तैनात थे, तो उनपर एक बार सूडान के विद्रोहियों ने हमला बोल दिया था। उन चीनी सैनिकों पर एक civilian protection site की सुरक्षा करने का जिम्मा था, लेकिन विद्रोहियों को देखकर चीनी सैनिकों के पसीने छूट गए और वे अपनी जगह को छोड़कर भाग गए। उन चीनी सैनिकों की बुझदिली की वजह से ना सिर्फ कई मासूमों की जान चली गयी, बल्कि कई महिलाओं का यौन शोषण भी किया गया। यही चीनी सेना की सच्चाई है, जो अब दुनिया के सामने एक्सपोज हो चुकी है। इसलिए चीनी सेना को ज़मीन पर रहकर अपनी औकात के अनुसार ही बात करनी चाहिए। यही कारण था कि डोकलाम में चीनी सेना को मुंह की खानी पड़ी थी, और अब लद्दाख में भी चीनी सेना का यही हाल होना तय है।