चीन ने कोरोना से पूरे विश्व को तगड़ा नुकसान पहुंचाया है, लेकिन चीन भी अब धीरे-धीरे इसकी चपेट में आता दिखाई दे रहा है। कोरोना चीन की अर्थव्यवस्था को जल्द ही गर्त में धकेल सकता है। कोरोना के बाद से चीन के महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट BRI पर तो जैसे काले बादल मंडरा रहे हैं। कई देशों में BRI का प्रोजेक्ट ठप पड़ा हुआ है तो वहीं कई देश अब चीन के दिये गए कर्ज़ को चुकाने में आनाकानी कर रहे हैं तथा और समय की मांग कर रहे हैं। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि चीन अब अपने बिछाये कर्ज़ के जाल में खुद ही फंस गया है और उसके द्वारा दिया गया हजारों करोड़ रुपये का कर्ज़ डूबने की कगार पर खड़ा है।
दरअसल, कोरोना के बाद से चीन समेत कई देशों में चीन के महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट BRI का काम रुक गया है। अब पाकिस्तान समेत कई देशों ने इस प्रोजेक्ट के लिए चीन द्वारा दिये गए कर्ज़ को चुकाने के लिए लगभग 10 वर्ष अधिक समय की मांग की है। एक रिपोर्ट के अनुसार, इस्लामाबाद कर्ज़ को वापस चुकाने के लिए 10 साल तक की देरी करना चाहता है और बीजिंग के पास सहमत होने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है। पाकिस्तान को देख कर कई अन्य देश भी चीन से इसी तरह की मांग करने लगे हैं। फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार “बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव” में शामिल संकटग्रस्त देशों ने चीन से कर्ज़ में राहत के लिए आवेदन किया है और इसका कारण सिर्फ कोरोना वायरस ही बताया गया है।
यानि अब चीन को वुहान वायरस की वजह से ही अपने कर्ज़ को पुनः प्राप्त करने में और अधिक समय लगने वाला है, परंतु इसकी भी निश्चितता नहीं है क्योंकि अब कई देश चीन के कर्ज़जाल की कूटनीति को समझ चुके हैं।
बता दें कि वर्ष 2013 में चीन ने देशों में चीनी व्यापार को बढ़ाने के लिए एक मल्टी-ट्रिलियन डॉलर इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट BRI को परिकल्पित किया था। अपने इस प्रोजेक्ट के तहत विकास के नाम पर चीन ने अफ्रीका, लैटिन अमेरिका, दक्षिण-पूर्व एशिया, मध्य एशिया और यूरोप में अरबों डॉलर की कई परियोजनाओं को वित्तपोषित किया है। अन्य देश विकास के नाम पर ऋण लेते गए और चीन देता गया।
चीन BRI के माध्यम से किसी प्रोजेक्ट के लिए एक देश को इतना कर्ज़ दे देता है कि आगे चलकर उस देश के लिए वह कर्ज़ चुकाना मुश्किल हो जाता है। इसके बाद बदले में चीन उस प्रोजेक्ट पर पूरी तरह अपना नियंत्रण कर लेता है।इसके साथ ही प्रोजेक्ट के लिए चीन के पास जो ज़मीन गिरवी रखी गई होती है, वह उसे भी अपने नियंत्रण में ले लेता है। उदाहरण के लिए जिबूती बंदरगाह और हम्बनटोटा बंदरगाह। परंतु अब कई देशों को चीन के इस कुटिल नीति का पता चल चुका है और वे धीरे धीरे अपने आप को बचाने में लगे हैं।
पिछले ही वर्ष दो अफ्रीकी देशों सियरा लियोन और तंजानिया ने पिछले साल BRI से स्वयं को दूर कर लिया था। वर्ष 2018 में म्यांमार ने भी क्यायूकफ्यू बंदरगाह प्रोजेक्ट छोटा कर दिया था। इस बंदरगाह को चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव प्रोजेक्ट के तहत बनाया जाना था। मलेशिया में भी ईस्ट कोस्ट रेल लिंक (ECRL) प्रोजेक्ट की लागत भी शुरू से दो तिहाई घटा दी गई थी।
यानि देखा जाए तो BRI वास्तव में चीन के ऋण जाल की वजह से ही ढह रहा है। इसके बाद आए कोरोना ने इस प्रोजेक्ट को दोहरा नुकसान दिया है। कई देशों की अर्थव्यवस्था डूबने के कगार पर है और इसी कारण से ये BRI के सदस्य देश चीन को कर्ज़ चुकाने में देरी के लिए मजबूर कर रहे हैं। पाकिस्तान ऋणों के पुनर्भुगतान में दस साल की देरी चाहता है तो वहीं अफ्रीकी देश भी कर्ज़-माफी की मांग कर रहे हैं। चीन ऐसे समय में ,जब उसका good will अपने न्यूनतम स्तर पर है, इन देशों की मांगों को खारिज नहीं कर सकता है।
इसलिए, बीजिंग ने लगभग 77 देशों के लिए लोन repaymentको रोक दिया है। उनमें से 40 अफ्रीकी देश हैं। वर्ष 2019 में, बीजिंग ने लगभग 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का ऋण दे रखा था जो अब डूबने के कगार पर है।