जब से जॉर्ज फ्लोयड नामक अश्वेत व्यक्ति की पुलिस कार्रवाई में मृत्यु हुई है, अमेरिका में राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरू हो गये। अश्वेत समुदाय के अधिकारों के लिए शुरू हुआ विरोध प्रदर्शन जल्द ही वामपंथी दलों के कब्जे में आ गया, जिन्होंने हिंसा, लूटपाट और आगजनी की कई घटनाओं को अंजाम दिया, ताकि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की छवि को धक्का पहुंचे और अनेक विरोधी एवं डेमोक्रेट पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडेन राष्ट्रपति बने। लगता है कि यह विचारधारा केवल अमेरिका तक ही सीमित नहीं है। भारत में वामपंथियों ने #BlackLivesMatter की तुलना देश के अल्पसंख्यक और पिछड़ी जाति पर कथित रूप से हो रहे अत्याचारों से ही करनी शुरू कर दी। पर हद तो तब हो गई जब द क्विंट ने अपने सब्सक्राइबर्स को बल्क ई मेल में अमेरिका के तर्ज पर हिंसक प्रदर्शन करने का आह्वान किया।
अपने सब्सक्राइबर्स को किए बल्क ई मेल में द क्विंट ने कहा था कि जो अमेरिका में हो रहा है, उसी तर्ज पर भारत में भी होना चाहिए। इसके बाद वो CAA जैसे ‘ दमनकारी ‘ कानून का रोना रोते हैं, और Sharbori Purkayastha द्वारा लिखे गए इस मेल में कहा गया है, “जब एक मृत्यु से अमेरिका में इतना उबाल आ सकता है, तो फिर ऐसे आंदोलन भारत में क्यों नहीं हो सकते?”
Quint wants US type Violence in India and they are sending bulk email to public to organise this. Quint office is in UP, @Uppolice should imidiate take action and arrest Sharbori Purkayastha#DeshdrohiQuint pic.twitter.com/9XqXTCIefL
— Tajinder Bagga (Modi Ka Parivar) (@TajinderBagga) June 4, 2020
यूं तो इस मेल में प्रत्यक्ष रूप से हिंसा का कहीं उल्लेख नहीं किया गया है, पर नीयत बिल्कुल साफ है। इस साल के प्रारंभ में इन्हीं वामपंथियों के कारण पूर्वोत्तर दिल्ली में भीषण दंगे भड़के थे। इसमें कोई संदेह नहीं था कि इस पूरे प्रकरण से वे राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारत यात्रा को धूमिल करना चाहते थे, और वे कुछ हद तक सफल भी रहे। चाहे आम आदमी पार्टी पार्षद ताहिर हुसैन द्वारा आईबी अफसर अंकित शर्मा की जघन्य हत्या हो, ताहिर की मार्क्सवादी छात्र नेता उमर खालिद के साथ सांठ-गांठ हो या फिर शार्जील इमाम की भारत तोड़ी स्पीच हो, इन घटनाओं से स्पष्ट होता है कि ये वामपंथी भारत को बर्बाद करने के लिए किस हद तक जा सकते हैं।
हालांकि, भारत सरकार ने इनके मंसूबों को पूरी तरह कामयाब नहीं होने दिया और अपनी कार्रवाई में सरकार ने इन जाहिलों के आपराधिक नेटवर्क की कमर ही तोड़ दी। द क्विंट इससे काफी बौखलाया हुआ है, और उसकी बातों से यही लग रहा है कि वो किसी भी तरह एक बार फिर से भारत को हिंसा की आग में झोंकना चाहता है।
यहां दिल दहलाने वाली बात तो यह है कि द क्विंट यह सब ऐसे समय में कर रहा है, जब भारत खुद वुहान वायरस की महामारी से जूझ रहा है। द क्विंट चाहता है कि शाहीन बाग जैसा बवाल फिर से शुरू हो, और अगर इनकी चाल ज़रा भी कामयाब हुई, तो भारत वुहान वायरस के कारण हुए संक्रमण के मामले में अमेरिका को मीलों पीछे छोड़ सकता है।
हालांकि, यह पहली बार नहीं है, जब द क्विंट ने भारत की छवि बिगाड़ने के लिए इतना प्रपंच किया हो। चाहे एक काल्पनिक टास्क फोर्स के जरिए सरकार को निशाने पर लेना हो, कुलभूषण जाधव के मामले में पाकिस्तान की खुलेआम आईसीजे में भारत की भद्द पिटवाना हो, या फिर लांस नायक रॉय मैथ्यू को आत्महत्या के लिए विवश करना हो, ये वामपंथी पोर्टल पत्रकारिता के स्तर को नीचे गिराना अपना परम धर्म समझता है, चाहे इसके लिए कितना भी नीचे क्यों न गिरना पड़े।