वुहान वायरस ने वैश्विक समीकरणों को पूरी तरह बदल दिया है। कल तक जो देश अपनी ताकत का दंभ भरते नहीं थकते थे, वे अब भीगी बिल्ली की तरह एक कोने में दुबके हुए हैं, जबकि जिन देशों को पहले कोई पूछता भी नहीं था, आज वही देश इस संकट की घड़ी में आशा की किरण बनकर सामने आए हैं। इन्हीं में अग्रणी है ताइवान, जिसने अब चीन से हर प्रकार का नाता तोड़ने की ठान ली है।
अभी फरवरी से मार्च के बीच में ताइवान की संसद में एक प्रस्ताव पेश किया गया था, जिसमें ताइवान के पासपोर्ट से रिपब्लिक ऑफ चाइना नाम हटाने की बात हुई थी। इसे ताइवान में जिस प्रकार का भारी जनसमर्थन मिला है, उससे ये साफ हो चुका है कि अब जल्द ही रिपब्लिक ऑफ चाइना ताइवान के पासपोर्ट पर अब और नहीं रहेगा, और हुआ भी वही। अभी न्यूज़ एक्स चैनल की रिपोर्ट के अनुसार जल्द ही ताइवान के पासपोर्ट से रिपब्लिक ऑफ चाइना नाम हटाने का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा, क्योंकि उक्त प्रस्ताव ताइवान के संसद में पारित हो चुका है।
पर ये रिपब्लिक ऑफ चाइना नाम से क्या समस्या है? इसके लिए हमें जाना होगा वर्ष 1911 में, जब किंग वंश को अपदस्थ कर सुन याट सेन के नेतृत्व में चीन में एक राष्ट्रवादी, लोकतान्त्रिक सरकार की स्थापना हुई। इसे चीनी गणराज्य का नाम दिया गया, और कई वर्षों तक इस प्रशासन ने चीन पर राज किया। लेकिन 1949 के गृहयुद्ध में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी विजयी हुई, और चीनी गणराज्य के प्रशासन को फोर्मोसा द्वीप पर शरण लेनी पड़ी, और यही द्वीप बाद में ताइवान के नाम से जाना गया।
कई वर्षों तक Taiwan स्वयं वन चाइना नीति का अनुसरण करता था, क्योंकि तत्कालीन प्रशासन के अनुसार ताइवान द्वीप असल में चीन था, जबकि मुख्य चीन कम्युनिस्ट सत्ता के कब्जे में था। इसीलिए वर्षों तक Taiwan को कई मुसीबतों का सामना करना पड़ा था, यहाँ तक कि ओलंपिक खेलों में ताइवान के खिलाड़ियों को अपने ही झंडे के अंतर्गत भाग लेने और अपने राष्ट्रगान को गाने की अनुमति नहीं थी। लेकिन वुहान वायरस ने एक ही झटके में सब बदल दिया।
ताइवान महीनों से वुहान वायरस के बारे में सम्पूर्ण विश्व को आगाह कर रहा था, लेकिन कोई भी Taiwan की बात सुनने को तैयार ही नहीं था। लेकिन जब चीन में उत्पन्न वुहान वायरस का प्रकोप दुनिया भर में फैलने लगा, तो ताइवान ने अवसर का लाभ उठाते हुए चीन का कच्चा चिट्ठा दुनिया के सामने खोलना शुरू किया। चाहे मास्क डिप्लोमेसी हो, या फिर अपने स्वायत्ता के लिए चीन से मोर्चा संभालना, वर्तमान राष्ट्राध्यक्ष साई इंग वेन के नेतृत्व में Taiwan का मानो कायाकल्प हो चुका है।
परंतु Taiwan चीन के वन चाइना नीति को सिर्फ नकार नहीं रहा है, वह उसका संसार में उपहास उड़ाने की व्यवस्था भी कर रहा है। अभी हाल ही में हाँग-काँग में विवाद उत्पन्न हुआ, जब हाँग काँग के चीनी प्रशासन ने यह फरमान जारी किया कि ताइवान के नागरिकों को तभी वीज़ा मिलेगा, जब वह वन चाइना नीति पर हस्ताक्षर करेगा। ताइवान ने मानो चीन को ठेंगा दिखाते हुए स्पष्ट बता दिया कि वह ऐसी किसी गीदड़ भभकी से नहीं डरने वाला है। इसके बाद उसने न केवल हाँग-काँग के नागरिकों को Taiwan में आसरा देने की बात की, अपितु हाँग-काँग के दो राजनयिकों को ही वीज़ा देने से सख्त मना कर दिया।
इसके अलावा ताइवान ने अपने आधिकारिक एयरलाइन का नाम बदलने का निर्णय भी लिया है। Taiwan के आधिकारिक एयरलाइन का नाम है ‘चाइना एयरलाइन्स’, परंतु यहाँ ताइवान का दूर दूर तक कोई नामोनिशान नहीं है। इसीलिए Taiwan की सरकार ने इस एयरलाइन का नाम बदल ताइवान को अधिक महत्व देने का निर्णय किया है।
सच कहें तो यह Taiwan के लिए उतना ही महत्वपूर्ण क्षण है, जितना भारत के लिए वो क्षण था, जब आधिकारिक तौर पर ब्रिटिश शासन से पूर्ण स्वराज प्राप्त करने की घोषणा रावी नदी के तट पर की गई थी। हालांकि Taiwan को लाहौर के काँग्रेस सेशन की भांति कोई विशेष सत्र नहीं बुलाना पड़ा, पर ताइवान के इरादे स्पष्ट हैं – चाहे कुछ भी हो जाये, अब Taiwan के किसी भी हिस्से पर चीन का नामो-निशान नहीं दिखना चाहिए।