कोरोना महामारी दुनिया की महाशक्तिओं के बीच खींचतान का दौर लेकर आया है। दुनिया चीन और अमेरिका के बीच शीतयुद्ध के शुरआत को देख रही है। एक दूसरे से आगे निकलने के लिए चीन और अमेरिका अपने साथियों के साथ अपने सम्बन्धों को और मजबूत करने में लगे हुए हैं। इस दिशा में चीन ने पहला बड़ा कदम इरान के साथ उठाया है। चीन और ईरान के बीच 400 अरब डॉलर की डील से यह साफ हो चुका है कि चीन अब पश्चिम एशिया की राजनीति में खुलकर Iran का साथ देगा। इस कारण ईरान का हौसला सातवें आसमान पर है। ईरान ने इस परिस्थिति का फ़ायदा उठाते हुए होर्मुज (Hormuz) की खाड़ी में अपनी शक्ति सुदृढ़ करने के प्रयास शुरू कर दिए हैं।
चीन का साथ पा कर ईरान ने भी अब होर्मुज (Hormuz) की खाड़ी में अपना नौसेना अभ्यास शुरू किया है। इस दौरान उसने अमेरिका के एयरक्राफ्ट कैरियर युएसएस निमित्ज की नक़ल बनाकर उसे होर्मुज (Hormuz) की खाड़ी में उतारा है। ‘मैक्सार टेक्नोलॉजीज’ की ओर से रविवार को ली गई तस्वीरों में ईरान की एक तेज रफ्तार नौका उस नकली विमानवाहक पोत की ओर जाती दिखाई दे रही है। यही नहीं मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो Iran ने क़तर के दो एयरबेस पर मिसाइल हमले भी किये हैं। इनमें से एक हमला अल धाफरा बेस पर हुआ था, जहां हमले के वक्त फ्रांस से भारत आ रहे भारतीय वायुसेना के राफेल जेट्स भी मौजूद थे। हालांकि, इन हमलों में इस्तेमाल किए गए रॉकेट्स अपने निशाने से चूक गए।
इरान यह सब कर रहा है ताकि वो पुनः क्षेत्रीय राजनीति में अपना प्रभाव स्थापित कर सके। अमेरिका के हाथों अपने कमांडर सुलेमानी की हत्या के बाद ईरान की स्थिति पश्चिम एशिया की राजनीति में कमजोर हुई है। सुलेमानी ही पुरे क्षेत्र में ईरान द्वारा चलाए जा रहे छद्म युद्धों का मुख्य कर्ताधर्ता था। उसने यमन में Iran समर्थक विद्रोहियों की अपनी पूरी एक फ़ौज तैयार कर ली थी। अपने सैन्य कमांडर और ईरान में नंबर दो की हैसियत रखने वाले सुलेमानी की हत्या के बाद, क्षेत्र में हूती विद्रोहियों सहित ईरान के जो भी सहयोगी हैं, उनका भरोसा ईरान पर से कमजोर न हो इसलिए ईरान ऐसी हरकतें कर रहा है।
ईरान का यह कदम चीन के भी हित में है क्योंकि इससे अमेरिका और अन्य देशों का ध्यान कुछ दिनों के लिए चीन से हट जाएगा। इसी कारण चीन ईरान को अमेरिका के खिलाफ लगातार बढ़ावा दे रहा है । Iran के सुप्रीम लीडर खोमैनी ने भी यह बयान दिया है कि वो अमेरिका के साथ किसी भी प्रकार की कोई न्यूक्लियर डील नहीं करेंगे। उन्होंने अपने बयान में कहा कि ट्रम्प चुनावी फायदे के लिए उनपर अभी डील करने का दबाव बना रहे हैं। वास्तव में कुछ ईरानी अधिकारियों की राय है कि यदि ट्रम्प को हराकर डेमोक्रेट्स अमेरिकी सरकार में आते हैं तो उनके साथ एक बेहतर डील की जा सकती है जो ईरान के हित में होगी।
यही नहीं, ईरान और चीन यह भी जानते हैं कि महामारी के इस दौर में अमेरिका के सहयोगी चीन के विरुद्ध भले ही एकजुट हो जाएं लेकिन जहाँ बात ईरान की आएगी वहां अमेरिका को भी सहयोगी खोजने में दिक्कत होगी। कोई भी देश इस विवाद में सीधे-सीधे जुड़ने से बचेगा ताकि उसे कच्चे तेल की आपूर्ति में बाधा ना आए। चीन जानता है कि ईरान का मोर्चा अमेरिका का ध्यान बंटाएगा और ईरान भी इस हालत का अपने हित में अधिक से अधिक उपयोग करना चाहेगा। फ़िलहाल चीन के साथ Iran 25 से अधिक समझौतों पर काम कर रहा है। खाड़ी में उपजे हालात और चीन के दम पर अपनी क्षमता से अधिक जोखिम उठा रहे ईरान को कहीं अपना ही कदम भारी न पड़ जाए।