कुछ ही महीनों में अमेरिका के राष्ट्रपति का चुनाव होने वाला है। इस बार चुनाव में कई मुद्दे सामने है, कोरोना वायरस से लेकर चीन तक तथा George Floyed की हत्या से लेकर रूस तक। परंतु राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इस बार का मुख्य मुद्दा चीन पर केन्द्रित कर दिया है, और यही उनके लिए प्लस पॉइंट साबित होने जा रहा है। अधिकतर अमेरिकी चीन के खिलाफ हो चुके हैं और वे इस मामले पर अमेरिकी सरकार का समर्थन कर रहे हैं। ऐसा लगता है कि इसी समर्थन से डोनाल्ड ट्रम्प इस बार का राष्ट्रपति चुनाव भारी अंतर से जीतने वाले हैं।
दरअसल, अमेरिका में रिपब्लिकन पार्टी ने राष्ट्रपति के चुनाव में चीन का मुद्दा सबसे अहम बना दिया है जिससे अमेरिकी जनता में एक उत्साह देखने को मिल रहा है। अधिक से अधिक अमेरिकी, चाहे वो रिपब्लिकन हो या डेमोक्रेट्स हो सभी चीन के खिलाफ हो चुके हैं।
प्यू रिसर्च सेंटर के एक नए सर्वेक्षण के अनुसार, अमेरिकियों के विचारों में चीन के प्रति खटास कई गुना बढ़ चुकी है। इस सर्वे के अनुसार अमेरिका की 73% जनता का विचार चीन के खिलाफ है। वर्ष 2018 में केवल 47% अमेरिकियों ने चीन के प्रतिकूल विचार रखे थे, लेकिन तब से इस आंकड़े में 26% का उछाल देखने को मिला है, जो 15 वर्षों में उच्चतम स्तर है। इससे यह स्पष्ट होता है कि डोनाल्ड ट्रम्प चीन के खिलाफ मामलों पर अमेरिकी जनता का विश्वास जीत चुके हैं जिससे उन्हें चुनावों के दौरान फायदा मिलेगा।
यही नहीं लगभग दो-तिहाई अमेरिकियों (64%) का कहना है कि चीन ने कोरोनावायरस के प्रकोप से निपटने में घटिया काम किया। वहीं लगभग तीन-चौथाई यानि 78% का कहना है कि वुहान में COVID-19 के प्रकोप से निपटने के लिए चीनी सरकार के शुरुआती कदम के कारण कोरोनवायरस का वैश्विक प्रसार हुआ। यही नहीं अमेरिका में शी जिनपिंग के खिलाफ भी लोगों का गुस्सा देखने को मिला 77% लोगों का भरोसा शी जिनपिंग से उठ चुका है।
इसके अलावा उइगर मुस्लिमों के मुद्दे पर ट्रम्प सरकार द्वारा लिए गया फैसला भी मदद कर रहा है। कुछ दिनों पहले ही अमेरिका ने उइगर मुस्लिमों पर अत्याचार के कारण चीनी अधिकारियों पर प्रतिबंध लगा दिया था। इस फैसले का भी अमेरिका की जनता पर असर हुआ है और वे ट्रम्प सरकार के सख्त रवैये का समर्थन करते हैं। लगभग 73% का कहना है कि अमेरिका को चीन में मानवाधिकारों को बढ़ावा देने की कोशिश करनी चाहिए, भले इससे द्विपक्षीय आर्थिक संबंधों को नुकसान हो।
बता दें कि जैसे-जैसे अमेरिका में कोरोना का कहर बढ़ता गया, वैसे-वैसे राष्ट्रपति ट्रम्प की अप्रूवल रेटिंग भी 38 प्रतिशत पर आ गई थी। कोरोना के बाद अमेरिका के लोग ट्रम्प के खिलाफ हो गए थे, और उन्हें सत्ता से हटाने का मन बना चुके थे। कोरोना वायरस की भयावहता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यहां ग्राफ थमने का नाम नहीं ले रहा है और इसका शुरूआत में कारण ट्रम्प द्वारा बरती गई लापरवाही और वहाँ के लोगों की मानसिकता है।
यही लापरवाही इन पर भारी पड़ी। परंतु फिर डोनाल्ड ट्रम्प ने मामले की गंभीरता को समझा और चीन के खिलाफ कुछ भयंकर कड़े एक्शन भी लिए। उइगर मुस्लिमों के पक्ष में कानून बनाना हो, या चीनी मीडिया कंपनियों को अमेरिका में नियंत्रित करना हो, या फिर चीनी वाणिज्य दूतावास बंद करना हो। ट्रम्प की विदेश नीति कमाल की रही है। जो लड़ाई उन्होंने चीन के खिलाफ अकेले शुरू की थी, आज उस लड़ाई में भारत, UK, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे बड़े देश भी अमेरिका का साथ दे रहे हैं।
ट्रम्प द्वारा लिए गए चीन के खिलाफ फैसलों से चीन एक बार फिर से चुनावी मुद्दा बन गया और फायदा ट्रम्प को होने वाला है। हालांकि, डेमोक्रेट्स ने इस दौरान रूस को भी मुद्दा बनाने की भरपूर कोशिश की लेकिन सफल नहीं हो पाये। आज अमेरिकियों के लिए चीन सबसे बड़ी समस्या बना हुआ है। पहले से चीन विरोधी माहौल में ट्रम्प के फैसलों ने आग में घी की तरह काम किया और जनता में चीन के खिलाफ आक्रोश बढ़ गया। अब लगभग दो तिहाई अमेरिकी जनता चीन से नफरत करती है। इस नफरत का फायदा आने वाले चुनावों में रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प को मिलेगा और जनता उन्हें चीन के खिलाफ लिए गए फैसलों के कारण समर्थन देगी। अब यह स्पष्ट चीन चुनाव का मुख्य मुद्दा होगा और इससे डोनाल्ड ट्रम्प को फायदा होगा या यूं कहें कि ट्रम्प निश्चित रूप से जीतेंगे क्योंकि चीन पर ट्रम्प के विचार लोगों की भावनाओं के अनुरूप हैं।