ऑस्ट्रेलिया में चीनी हितों के लिए काम करने वाले बहुत से लोग हैं, जिन्हें चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और फर्मों द्वारा समर्थन प्राप्त है, जो देश में अरबों डॉलर का निवेश करते हैं और कई लोगों को रोजगार देते हैं। चीनी सरकार ने ऑस्ट्रेलिया में एक पूरा प्रोपोगेंडा तंत्र बनाया हुआ है और अब स्कॉट मॉरिसन की सरकार बाहरी तथा भीतरी दोनों मोर्चो पर चीन से लड़ाई लड़ रही है। इसलिए, ऑस्ट्रेलिया में चीन द्वारा बनाए गए उसके Ecosystem को नष्ट करने के लिए, मॉरिसन सरकार ने घोषणा की है कि यदि ऑस्ट्रेलिया में काम करने वाले विदेशी पत्रकार, ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ बोलते हैं तो वे वहां की संघीय एजेंसियों के जांच के दायरे में आ जाएंगे।
संघीय एजेंसियां उन लोगों पर भी नज़र रखेंगी जो ऑस्ट्रेलियाई लोकतंत्र में हस्तक्षेप करने की कोशिश करते हैं या बौद्धिक संपदा की चोरी करने की कोशिश करते हैं। ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्री और गृह मंत्री देश के आंतरिक और बाहरी दुश्मनों से निपटने के लिए समन्वित प्रयास कर रहे हैं।
गृह मामलों के मंत्री पीटर डटन ने ऑस्ट्रेलियाई ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन (ABC) को कहा कि “यदि लोग यहां पत्रकारों के रूप में काम कर रहे हैं और वे समाचार पर निष्पक्ष रूप से रिपोर्ट कर रहे हैं, तो यह ठीक है। अगर ये लोग पत्रकारों या व्यवसायिक नेताओं के रूप में संदेश दे रहे हैं, और इस बात के सबूत हैं कि वे ऑस्ट्रेलियाई कानून के विपरीत काम कर रहे हैं तो ASIO और AFP और अन्य एजेंसियां इसपर एक्शन लेंगी ।” उन्होंने आगे कहा, ‘यदि किसी प्रकार की जासूसी की जाती है या हमारे मामले में हस्तक्षेप करने के प्रयास हुए तो यह चिंता की बात है, लेकिन हमारे देश में आने वाले पत्रकार सभी जांच से होते हुए एक आम नागरिक की तरह रहते है तो हमें कोई परेशानी नहीं है।’
ऑस्ट्रेलियाई सरकार द्वारा पत्रकारों और कार्यकर्ताओं को जांच के दौरान किसी को भी न बख्शने के फैसले की प्रशंसा की जानी चाहिए, क्योंकि लोकतांत्रिक देशों में सरकारें उनके खिलाफ कार्रवाई करने से परहेज करती हैं, भले ही वे देश विरोधी पक्ष पेश कर रहे हों या करते आए हो। “प्रेस की आज़ादी” के नाम पर, ये पत्रकार उस देश के खिलाफ ही लिखते है जहां वे कार्यरत हैं।
भारत स्वतंत्रता के बाद से ही ऐसे पत्रकारों और कार्यकर्ताओं का शिकार रहा है। Mark Tully जैसे बीबीसी से जुड़े पत्रकार देश के औपनिवेशिक दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करते रहे। यह समझने वाली बात है कि जिस ब्रिटिश सरकार ने भारत को दशकों तक अपना उपनिवेश बनाए रखा वहीं के Dalrymple जैसे इतिहासकारों ने आज भी हमारे इतिहास की झूठी तस्वीर पेश करना जारी रखा और औपनिवेशिक शक्तियों के दृष्टिकोण का प्रचार किया, चाहे वह मुगल हों या ब्रिटिश।
इसलिए, यह महत्वपूर्ण है कि दुनिया भर की सरकार, विशेष रूप से भारत, ऑस्ट्रेलिया जैसे देश, या दक्षिण पूर्व एशिया के लोग अब अपने देश की संप्रभुता के दृष्टिकोण को और व्यापक करे और झूठ फैलाने वाले पत्रकारों और कार्यकर्ताओं के विशेष वर्ग पर नज़र रखें।
आज, किसी भी दूसरे देश में काम करने वाले किसी भी पत्रकार के पास उस देश के अधिकांश सार्वजनिक दस्तावेजों तक पहुंच है,कारण है लोकतांत्रिक देशों में सरकारों का अपने नागरिकों के साथ बहुत पारदर्शी होना है। लेकिन, जब यह जानकारी विदेशों में साझा की जाती है, विशेष रूप से चीन जैसे देश में, तो वो उस देश के महत्वपूर्ण हस्तियों को आसानी से टारगेट बनाता है।
हाल ही में इंडियन एक्सप्रेस की एक जांच में पता चला है कि भारत के लगभग सभी महत्वपूर्ण व्यक्तियों पर Shenzhen स्थित एक चीनी कंपनी द्वारा निगरानी रखी जा रही है, जिसके चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के साथ-साथ पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के साथ घनिष्ठ संबंध हैं। मंत्रियों, महापौरों, सरपंचों और विधायकों से लेकर संसद के सदस्यों तक, डेटाबेस में 1,350 राजनेता और कानूनविद् शामिल हैं। जाहिर है, सार्वजनिक दस्तावेजों और पत्रकारों-एक्टिविस्ट वर्ग के माध्यम से ही ऐसी जानकारी जुटाई जा सकती है। इसलिए, आधुनिक डिजिटल दुनिया में संप्रभुता को बनाए रखने के लिए, पत्रकारों की निगरानी करना महत्वपूर्ण है।
अब ऑस्ट्रेलिया ने वही करने का फैसला लिया है। Mark Tully या विलियन डेलरिम्पल जैसे गिद्धों से देश को बचाने के लिए मोदी सरकार को भी ऑस्ट्रेलिया के इस फैसले के बाद इसी तरह के प्रस्ताव को विचार कर उसे लागू करना चाहिए।