समय और जरूरतों के आधार पर चीन का विरोध करने वाला तुर्की अब चीन का एक मित्र देश बन गया है जो चीन का ग्राहक है। बिगड़ती अर्थव्यवस्था और कम होती लोकप्रियता के बाद तुर्की के राष्ट्रपति तैयब एर्दोगन अब चीन के ग्राहक बन गए हैं। तुर्की अपनी जरूरतों के चलते चीन के प्रति अपनी श्रद्धा दिखा रहा है तो दूसरी ओर चीन उसे भर-भर के पैसा दे रहा है जिससे तुर्की और चीन के रूख में अब कुछ खास फर्क नहीं रह गया है।
बेहद बुरे हैं हालात
तुर्की के अपने हालात बेहद ही खराब हैं। ऐसे में यहां आर्थिक से लेकर राजनितिक स्तर पर राष्ट्रपति एर्दोगन की निंदा कौर आलोचना हो रही है। एक समय तक लोकतांत्रिक देश कहलाने वाला तुर्की अब तानाशाह देश बन गया है। यहां के केंदीय बैंकों से लेकर अदालतों तक पर राष्ट्रपति एर्दोगन का नियंत्रण है। कोरोनावायरस के कारण तुर्की को लगातार आर्थिक मोर्चे पर मुंह की खानी पड़ी है उसका मुख्य पर्यटन उद्योग लगभग ठप है विदेशी भंडार तेजी से खत्म हो रहा है। गुथेनबर्ग विश्वविद्यालय द्वारा जारी लिबरल लोकतांत्रिक देशों की सूची में तुर्की विकसित देशों की तुलना में 20 अंक और नीचे खिसक कर चीन के करीब चला गया है। पश्चिमी देशों के निवेशकों का तुर्की में निवेश न के बराबर हो गया है। ऐसे में तुर्की चीन की पर निर्भरता को बढ़ा रहा है और चीम यही चाहता भी है।
चीन से व्यापारिक समझौते
पश्चिम एशिया में अपनी धाक जमाने के लिए चीन तुर्की का पूरी तरह साथ भी दे रहा है। रूस के बाद तुर्की अब चीन में सबसे ज्यादा निर्यात करता है। साल 2016 से अब तक दोनों देशों के बीच 10 से ज्यादा समझौतों पर हस्ताक्षर हुए हैं। जिनमें परमाणु, स्वास्थ्य और ऊर्जा के समझौते सबसे महत्वपूर्ण हैं। चीन अब तक 2016 से 2019 तुर्की में 3 बिलियन से ज्यादा का निवेश कर चुका है अगले साल तक इसे बिल्कुल दोगुना करने की बात भी कह रहा है।
बेहद मुश्किल वक्त में चीन एर्दोगन को मजबूत करने के साथ ही देश में कैश प्रवाह को भी प्रभावित कर रहा है। 2018 में जब तुर्की की करेंसी लीरा के दाम 40 प्रतिशत तक गिरे थे तो चीन के औद्योगिक और वाणिज्यक बैंक ने तुर्की को ऊर्जा परिवहन योजना के लिए 3.6 बिलियन का लोन दिया। दोनों देशों के बीच केंद्रीय बैंकों के बीच नकदी के प्रवाह से जुड़े अहम समझौते हैं। चीन ने तुर्की को वित्तीय सहयोग पहुंचाने के लिए तुर्की के व्यापारियों को युआन में भुगतान की अनुमति दी है जिससे उन्हें व्यापार में भी सरलता हो रही है।
चीन के बीआरआई प्रोजेक्ट के जरिए तुर्की को बड़ी मात्रा में आमदनी हो रही है तो वहीं इसके बदले चीन विस्तारवाद की नीति के तहत भूमध्य सागर पर अपनी रणनीतिक स्थिति को मजबूत कर रहा है। बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए तुर्की ने पूर्वी क्षेत्र में रेल का बड़ा जाल बिछाया है। तुर्की में एर्दोगन द्वारा शुरु किए गए बर्बाद हो चुके प्रोजेक्ट को चीनी निवेशकों ने बचाने में मदद की है। यहीं नहीं इस्तांबुल के नगरपालिका चुनवों के दौरान एर्दोगन के लिए समर्थन जुटाने की जरुरतों के तहत करीब एक बिलियन से ज्यादा का कैश का ट्रांसफर चीन और तुर्की के केंद्रीय बैंकों के बीच स्वैप समझौते के तहत किया गया था जो कि इससे पहले 2012 में आखिरी बार नवीनीकृत किया गया था।
दुनिया के लिए खतरा
तुर्की एक ऐसा देश है जो अपने लोकतांत्रिक मूल्यों की हत्या कर रहा है। एक वक्त था जब तुर्की उइगर मुस्लिमों के मुद्दे पर चीन की आलोचना करता था। लेकिन अब चीन को इस मामले में कुछ बोलना तो दूर तुर्की खुद उइगर मुस्लिमों पर अत्याचार में शामिल हो गया है। तुर्की भी दूसरे देशों के साथ नाइंसाफी का रवैया अख्तियार कर रहा है। चीन की तरह ही तुर्की भी अब एक अति राष्ट्रवादी देश बन गया है। हागिया सोफिया को जिस तरह से उन्होंने अदालत के जरिए मस्जिद घोषित करवाया है वो उनके तानाशाही के रवैए को दिखाता है।
चीन दक्षिण एशिया से लेकर साइथ चाइना सी तक अपना प्रभाव जमाने के लिए गुंडई करता है, ठीक वही हरकतें उसका क्लांइट देश तुर्की भी अपने पड़ोसी देशों अर्मेनिया और साइप्रस के साथ कर रहा है। तुर्की के इस रवैए के चलते ही अब फ्रांस और जर्मनी उससे खफा हैं और प्रतिबंध लगाने की धमकियां भी दे रहे है। चीन की तरह ही तुर्की भी विस्तारवाद की नीति पर काम कर रहा है जो कि विश्व के लिए एक नए ख़तरे की तरह है।
एक तरह से देखा जाये तो चीन के पैसों और मदद के दम पर तुर्की उसका एक क्लाइंट बन गया है। एक तो वो चीन के कर्ज के बड़े दल-दल में धंस चुका है जो उसके लिए ही खतरनाक है तो दूसरी ओर वो भी चीन के नक्शे-कदम पर चलते हुए दुनिया के लिए चुनौतीपूर्ण स्थितियां पैदा कर रहा है, जिसमें राष्ट्रपति एर्दोगन की एक बड़ी भूमिका है।