पिछले 30 वर्षों से अधिक समय से शरिया कानून की जकड़ में रहे सूडान को अब इस्लामिक क़ानूनों से छुटकारा मिल गया है। अब सूडान की सरकार ने इस उत्तरी अफ्रीकी राष्ट्र में 30 साल के इस्लामी शासन को समाप्त करते हुए राज्य से धर्म को अलग करने के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।
Bloomberg की रिपोर्ट के अनुसार सूडान के प्रधानमंत्री Abdalla Hamdok और सूडान पीपुल्स लिबरेशन मूवमेंट (नॉर्थ) विद्रोही समूह के नेता Abdel-Aziz al-Hilu ने पिछले सप्ताह इथियोपिया की राजधानी Addis Ababa में एक प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए जिसमें सूडान की सरकार को किसी भी धर्म से अलग रखने की बात की गयी है।
पिछले महीने, सूडान के न्याय मंत्री, Nasredeen Abdulbari, ने शराब और धर्मत्याग पर प्रतिबंध समाप्त करने की घोषणा की, और पारंपरिक शारीरिक दंड का उपयोग करने पर रोक लगा दी। ये कदम सूडान को पारंपरिक शरीयत या इस्लामी कानून से दूर करने के व्यापक प्रयास का हिस्सा हैं, जो दशकों से इस देश में कानून का आधार रहा है।
जब से ओमर अल बशीर की सरकार को हटा कर नई सरकार बनी है तब से ही नई सरकार ने कई सुधार किए हैं जो एक उदार राज्य की ओर एक कदम माना जा सकता है। हालांकि, यह बदलाव नाजुक है क्योंकि सूडान तीन दशकों से अधिक समय से इस्लामिक कानून के अंतर्गत रहा है।
जब से नई सरकार आई है तब से धर्मत्याग के दंड के रूप में मौत की सजा को हटा दिया गया है, गैर-मुस्लिमों को निजी तौर पर शराब पीने की अनुमति दी, सार्वजनिक रूप से कोड़े मारने की सज़ा को हटा दिया गया, महिला जननांग विकृति यानि FMG पर प्रतिबंध लगा दिया, और महिलाओं को अपने पति की अनुमति के बिना अपने बच्चों के साथ अकेले यात्रा करने की अनुमति दे दी गई है।
हालांकि, कुछ सूडानी राज्यों में FGM पहले से ही अवैध था लेकिन इन प्रतिबंधों की व्यापक रूप से अनदेखी की गई थी। पूरे देश में FGM पर प्रतिबंध लगाने के पिछले प्रयास हुए हैं लेकिन लंबे समय तक क्रूर शासक उमर अल-बशीर की संसद ने इन पर पानी फेर दिया था। परंतु इस वर्ष 22 अप्रैल को आपराधिक कानून में एफजीएम संशोधन को मंजूरी दी गई थी। संशोधन के तहत, जो कोई भी चिकित्सा प्रतिष्ठान के अंदर या कहीं और एफजीएम करता है, उसे तीन साल की सजा और जुर्माना का सामना करना पड़ सकता है।
बता दें कि जब पिछले वर्ष सूडान में सत्ता के खिलाफ आंदोलन चल रहा था तो बशीर के खिलाफ आंदोलन में महिलाएं सबसे आगे थीं।
बशीर की सरकार ने विभिन्न तरीकों से महिलाओं के साथ भेदभाव किया, जिसमें महिलाओं को ट्राउजर पहनने से रोकना भी शामिल था। पिछले वर्ष ही नवंबर में सूडान ने Public Order Act को भी निरस्त कर दिया, जिससे महिलाओं के अपने मन से घूमने और कपड़े पहने को नियंत्रित किया जाता था।
बता दें कि सूडान में ओमर अल-बशीर ने वर्ष 1989 में एक सैन्य तख्तापलट में सत्ता हासिल की थी, जिसे राष्ट्रीय इस्लामिक मोर्चा के नेता शेख हसन अल-तुरबी ने अपना समर्थन दिया था। दोनों ने साथ मिल कर सूडान में इस्लामिक शासन की सत्ता स्थापित कर इस देश का संस्थागत रूप से इस्लामीकरण किया।
सूडान को इस्लामिक गणतंत्र बनाने के बाद बशीर ने शरीया कानून ही लागू कर दिया था, जैसे महिलाओं और पुरुषों के अधिकारों में भेदभाव, शराब पर प्रतिबंध और इन नियमों के उल्लंघन पर सार्वजनिक दंड देने जैसे नियम लागू कर दिये थे। बशीर और तुरबी ने 1996 तक ओसामा बिन लादेन जैसे आतंकवादियों को भी अपने देश में बुलाता था, जिसके बाद अमेरिका ने इसे ईरान, उत्तर कोरिया और सीरिया के साथ वर्ष 1993 में ब्लैक लिस्ट में डाल दिया गया था। अल-बशीर के शासन में सूडान पर इज़राइल के खिलाफ युद्ध में कट्टरपंथी इस्लामी ताकतों का समर्थन करने का आरोप लगाया गया था।
हालांकि, बदलते सरकार के साथ अब इन दोनों देशों के साथ सूडान के रिश्ते भी सुधर रहे हैं। सूडान की सरकार द्वारा शरीयत कानून से अपने सरकार को अलग करने के बाद अब अमेरिका और इजरायल दोनों सूडान से संबंध बेहतर करने का प्रयास कर रहे हैं। एक तरफ अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पेओ ने पिछले महीने इस देश की यात्रा की थी तो वहीं इजरायल भी इनके साथ शांति समझौते के लिए बातचीत कर रहा है।
शरीयत कानून के कारण अभी तक इस देश का विकास नहीं हुआ और यह विश्व के सबसे गरीब देशों में से एक है। न ही यहाँ किसी प्रकार का निवेश है और न ही रोजगार। अगर सूडान के अमेरिका के साथ संबंध बेहतर होते हैं और अमेरिका उसे ब्लैक लिस्ट से हटा देता है तो यह सूडान की जनता के लिए सोने पर सुहागा होगा। सूडान अमेरिका द्वारा अपनी लिस्टिंग से जुड़े प्रतिबंधों को हटवाने के लिए बेताब है जिससे उसे अन्य देशों के साथ अपने सम्बन्धों को सुधारने और अपनी अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण में मदद मिले। नई सरकार के इस्लामिक क़ानूनों को कूड़े में डालने के बाद अब सुडान के लिए कई राहें खुल जाएगी, जिसके बाद वहाँ के लोगों का विकास संभव हो सकेगा। सबसे अहम स्वतन्त्रता तो महिलाओं को मिलेगी जिन्हें कई असहनीय क़ानूनों से छुटकारा मिल चुका है।