विवादों का चीन से गहरा नाता रहा है। अपने सभी पड़ोसी देशों के साथ द्विपक्षीय सीमा और वित्तीय विवाद को लेकर चीन हमेशा ही उलझा रहता है। इन सब से इतर अब ये द्विपक्षीय मुद्दे चीन के लिए सामूहिक आलोचनाओं की वजह बन गए हैं। भारत, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान चारों के साथ ही चीन के विवाद हैं, लेकिन क्वाड के इन देशों ने चीन के खिलाफ एक दूसरे के मामलों में बोलकर पूरी लड़ाई को चीन बनाम क्वाड कर दिया है, जो उसके लिए खतरा बन गई है।
अकेले लड़ना चाहता है चीन
चीन आर्थिक रूप से काफी मजबूत देश माना जाता है। आर्थिक स्थिति ठीक होने का ही नतीजा है कि पूरी दुनिया के लगभग 90 प्रतिशत देशों में उसका निवेश है। इसलिए चीन केवल द्विपक्षीए विवाद करना चाहता है क्योंकि इससे वो उस देश पर भारी पड़ सकता है। भारत-तिब्बत सीमा क्षेत्र में दोनों देशों की सेनाओं का विवाद इसका उदाहरण है। चीन अकेले बातचीत के माध्यम से इसको सुलझाना चाहता है, या सही कहा जाए तो इलाके को कब्जाना चाहता है।
इसी तरह चीन का अमेरिका के साथ ट्रेड डील से लेकर जासूसी कांड और कोरोना वायरस पर काफी विवाद हो चुका है। वित्तीय से लेकर सैन्य सभी क्षेत्रों में अमेरिका चीन पर हमलावर हैं। वहीं, आस्ट्रेलिया के साथ भी आर्थिक प्रतिबंधों और जौ(बियर) के निर्यात को लेकर विवाद जारी है। चीनी छात्रों की ऑस्ट्रेलिया में बढ़ती संख्या और कम्युनिस्टों का लगातार बढ़ता प्रभाव आस्ट्रेलिया को ज्यादा रास नहीं आ रहा है, इस कारण चीन का इस पूरे मसले पर ऑस्ट्रेलिया के साथ विवाद है। वहीं, ऑस्ट्रेलिया ने चीन के बीआरआई प्रोजेक्ट को तवज्जो न देकर उसका खून पहले ही खौला दिया था।
दक्षिण चीन सागर पर चीन का जापान के साथ विवाद चल रहा है। सेनकाकू समेत इस क्षेत्र के 75 फीसदी द्वीपों पर चीन अपना दावा ठोकता है। इसके अलावा लगातार सैन्य गतिविधियों के चलते जापान चीन से परेशान रहता है। ये ऐसे कारण हैं जो इन दोनों ही देशों के विवादों की एक बड़ी वजह है। इन सभी देशों द्वारा जब ताइवान की बात की जाती है तो चीन की बौखलाहट सामने आती है।
चीन आर्थिक महाशक्ति होने के चलते तो इन देशों पर भारी पड़ता है, लेकिन जब बात समूह की आती है तो चीन का कद बौना हो जाता है। क्वाड इसका एक प्रत्यक्ष उदाहरण है। भारत, जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे चार देशों से मिलकर बने क्वाड ने चीन की नींदें उड़ा रखी हैं, क्योंकि इन देशों से जुड़े मसले द्विपक्षीय नहीं बल्कि क्वाड के खिलाफ के तौर पर देखे जाने लगे हैं।
दरअसल, अब क्वाड के देशों ने चीन के खिलाफ एकजुटता की ऐसी मिसाल पेश की है कि आर्थिक शक्ति माने जाने वाले चीन को इस सामूहिक हमले से बचने के लिए भी दिमाग लगाना पड़ रहा है। अमेरिका के साथ विवाद पर भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया साथ खड़े हो गए हैं, जिसका उदाहरण अमेरिका में चीनी छात्रों के वीजा नियम सख्त होने के बाद भारत में भी इनका सख्त होना है। इसी तरह भारत के सीमा विवाद पर भी अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनाल्ड ट्रंप और विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो के बयान आए दिन सामने आते हैं।
ऑस्ट्रेलिया को लेकर जहां चीन आर्थिक रूप से कदम उठा रहा है तो भारत और जापान , ऑस्ट्रेलिया की इस आर्थिक मंदी के दौर में मदद को आगे आए हैं। भारत का जौ आयात पर ऑस्ट्रेलिया को छूट और आयात नियमों को सहज करना इसका उदाहरण है। इसके अलावा जापान भी भारत और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर पूरे विश्व में सप्लाई चेन को विस्तार देने का काम कर रहे हैं।
साउथ चाइना-सी को लेकर जहां ऑस्ट्रेलिया और भारत ने चीन की खिलाफत करते हुए अपने युद्धपोत तैनात कर दिए हैं तो दूसरी ओर चीन के खिलाफ अपनी पुरानी दुश्मनी को देखते हुए अमेरिका भी जापान के समर्थन में इस क्षेत्र को सैन्य कार्रवाई के लिए घेर चुका है। यहां के कुछ द्वीपों पर अमेरिका का युद्धाभ्यास भी जारी है। दूसरी ओर चीन के खिलाफ इस मुहिम में जापान इन तीनों ही देशों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है जो कि चीन के लिए एक चिंताजनक बात है।
क्वाड न केवल खुद एक्शन में है, बल्कि आसियान देशों को भी मजबूत करने के लिए लगातार कदम उठा रहा है। भारत और जापान का अपने युद्धपोत म्यांमार और वियतनाम को देना ये साबित करता है कि क्वाड देश खुद को मजबूत करने के अलावा एक-दूसरे के मुद्दों पर भी सख्ती से बात करते हैं जिससे चीन को अधिक मुश्किलें हो रहीं हैं।
ऐसे में चीन के लिए ये एक मुश्किल बात ये है, अब उसे द्विपक्षीय नहीं बल्कि सामूहिक चेतावनियां मिल रहीं हैं जिसके सामने उसका टिकना काफी मुश्किल हैं क्योंकि इन चार देशों के आगे उसका कद काफी छोटा हो जाता है।