चीनी Apps को बैन कर देने के बाद अब भारत, चीन के प्रोपोगेंडा मशीनरी को एक और झटका देने वाला है। रिपोर्ट के अनुसार भारत के साथ सीमा साझा करने वाले देशों के शैक्षिक संस्थानों के साथ किसी भी समझौता MOU पर हस्ताक्षर करने से पहले भारतीय विश्वविद्यालयों को सरकार से पूर्व अनुमति प्राप्त करना अनिवार्य होगा। भारत के इस कदम से सबसे बड़ा झटका चीन के Confucius Institute को लगेगा। बता दें कि 9 अगस्त की समीक्षा के बाद इस प्रस्ताव को अब मूर्त स्वरूप देने का कार्य शुरू हो चुका है।यानि मोदी सरकार ने चीन को भारतीय बाजार से खदेड़ने के साथ ही शिक्षण संस्थानों को भी चीनी प्रभाव से मुक्त करने का अभियान चला दिया है।
बता दें कि भारत के शिक्षा मंत्रालय ने भी विभिन्न शिक्षण संस्थानों और Confucius Institute के बीच हुए कुछ 54 समझौतों, MoU का भी पुनर्निरीक्षण किया था। गौरतलब है कि इन संस्थानों में JNU , BHU , कलकत्ता विश्वविद्यालय , मुंबई विश्वविद्यालय , लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी और IIT जैसे प्रतिष्ठित कॉलेज और विश्वविद्यालय शामिल हैं। इसमें सर्वाधिक 12 संस्थान JNU से संबन्धित हैं।हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार जिन अधिकारियों ने समीक्षा के आगे नाम नहीं बताने की शर्त पर बताया कि दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय का HANBAN के साथ भी एक समझौता ज्ञापन हस्ताक्षरित है, जो कि कन्फ्यूशियस संस्थानों का मुख्यालय है और प्रोपोगेंडा का केंद्र भी है।
चीन का यह संस्थान Confucius Institute, दुनिया भर के प्रमुख शिक्षण संस्थानों के साथ शैक्षणिक सहयोग को बढ़ाने और चीनी प्रोपोगेंडा फैलाने का काम करता है। बात इतनी सीधी नहीं है, इस संस्थान को चीन का शिक्षा मंत्रालय ही फंड मुहैया कराता है और इसके माध्यम से चीन दूसरे देशों में अपने संस्कृति और अपनी भाषा का प्रचार करता है तथा इन शिक्षण संस्थानों में पढ़ने वाले छात्रों पर मनोवैज्ञानिक विजय हासिल करने की कोशिश करता है जिससे उस देश के शिक्षा क्षेत्र को प्रभावित कर, उसे चीन और CCP के प्रति अनुकूल बनाया जा सके और CCP को अपना प्रोपोगेंडा फैलाने में आसानी हो।चीन इन संस्थानों के ज़रिये शिक्षक और पाठ्यपुस्तक भी प्रदान करता है और अपने कार्यक्रम के ज़रिये लगभग 500 प्राथमिक और माध्यमिक कक्षाओं में चीनी भाषा की शिक्षा भी देता है।
कन्फ्यूशियस प्रोग्राम Chinese Language Council International के कार्यालय द्वारा वित्त पोषित है। यह चीन के मुख्य प्रोपोगेंडा मशीनरी United Front के कार्य विभाग से जुड़ा हुआ है, जिसके प्रमुख अब स्वयं चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग हैं। यूनाइटेड फ्रंट ही वो एक संस्था है जो चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की अन्य देशों में बेहतर छवि के निर्माण में, गुप्त जानकारियां एकत्रित करने और प्रोपेगेंडा फैलाने के लिए जानी जाती है।इसमें वो सब सामाजिक संगठन, धार्मिक निकाय, विश्वविद्यालय, अनुसंधान संस्थान और व्यक्ति जुड़े हुए हैं जो चीन तथा कम्युनिस्ट पार्टी के लिए विश्व के अनेक देशों, विश्वविद्यालयों में प्रोपेगैंडा फैलाते हैं। इस संस्था को शी जिनपिंग Magic Weapon भी कह चुके हैं।
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी पोलित ब्यूरो स्टैंडिंग कमेटी के रैंकिंग सदस्यों को यह कहते हुए सुना गया है कि Confucius Institute बीजिंग की सॉफ्ट पावर को प्रोजेक्ट करने के लिए विदेशी प्रचार का हिस्सा हैं।
ये कुछ-कुछ ऐसा ही है जैसे इंग्लैंड अपने उपनिवेशों के साथ करता था। इसके माध्यम से चीन ने यूएस,यूके, ऑस्ट्रेलिया आदि प्रमुख देशों के बुद्धिजीवी वर्ग को अपने प्रोपोगेंडा का शिकार बनाया था। ऑस्ट्रेलिया ने इसी के खिलाफ सितम्बर 2019 में जाँच भी शुरू की थी, वहीं स्वीडन ने अपने यहां ऐसी सभी संस्थानों को बंद कर दिया है। जबकि अमेरिका में भी इस मामलें में जाँच बैठा दी गई है। भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने भी भारत के उच्च शिक्षण संस्थानों में चीन के बढ़ते प्रभाव को लेकर चेतावनी जारी की थी।
भारत के अंदर भी ये संस्थान काफी समय से खुफिया एजेंसियों के रडार पर हैं। वर्ष 2018 की Daily Pioneer की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय खुफिया एजेंसियों को संदेह है कि बीजिंग खुफिया जानकारी जुटाने के लिए दुनिया भर में Confucius Institute का उपयोग कर रहा है।
चीन को पता है कि वह किसी भी देश से पारंपरिक युद्ध नहीं जीत सकता है, इसलिए वह United Front के माध्यम से Confucius Institute जैसी संस्थाओं का सहारा लेकर अपने दुश्मनों को कमजोर करता है। अब कई देशों के साथ भारत भी चीन को मदद पहुंचाने वाले सभी माध्यमों को निशाना बना रहा है जिससे चीनी प्रोपोगेंडा को ध्वस्त किया जा सके। Confucius Institute इसी क्रम का एक हिस्सा है, आने वाले समय में चीन को भारत के खिलाफ मदद करने वाले सभी विकल्पों को बंद कर दिया जाएगा।