जिस प्रकार से अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव विवादों के घेरे में फँसता ही चल जा रहा है, उससे अब चीन की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। पहले चीन अपनी आक्रामकता दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा था, और अब वह सीधा बैकफुट पर आ चुका है, मानो एक नए सिरे से शुरुआत कर रहा हो।
जब से अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव के परिणाम घोषित हुए हैं, चीन के स्वभाव में काफी व्यापक बदलाव आया है। उदाहरण के लिए महीनों से भारत-तिब्बत बॉर्डर यानि LAC पर चल रही तनातनी को खत्म करने की दिशा में चीन ने एक कदम आगे बढ़ाया है। इसके अलावा जहां वह ताइवान के विषय पर थोड़ा नरम हुआ है, तो वहीं बीजिंग अब जापान के सेंकाकू द्वीप समूह पर अपना दावा ठोकने से पीछे हटने की दिशा में भी बढ़ रहा है।
परंतु अचानक से ये बदलाव क्यों? ऐसा इसलिए क्योंकि चीन को अमेरिका के नेतृत्व के स्वभाव पर अभी तनिक भी भरोसा नहीं है। अभी कोई नहीं बता सकता कि 20 जनवरी को व्हाइट हाउस में जो बाइडन ही होंगे, या फिर डोनाल्ड ट्रम्प की वापसी होगी। इसलिए बीजिंग अपने कदम फूँक-फूँक के रख रहा है, ताकि उसे आगे चलकर अपनी अति सक्रियता के चलते कोई भारी नुकसान न हो।
उदाहरण के लिए पूर्वी लद्दाख में व्याप्त तनातनी को ही देख लीजिए। अब सूत्रों के अनुसार खबर ये आ रही है कि तीन स्टेप्स में पीछे हटने और मई से पहले की स्थिति बहाल करने की दिशा में काम होगा, जिसमें सर्वप्रथम दोनों पक्ष की सेनाएँ अपने-अपने टैंक पीछे हटायेंगी।
इसी प्रकार से ताइवान में भी चीन अपने सुर बदल रहा है। चीनी स्टेट काउन्सिल के ताइवान विभाग की प्रवक्ता ज़ू फेंगलियान की माने तो चीन भले ही ताइवान पर अपनी नीति नहीं बदलेगा, परंतु उसने ताइवान के साथ शांति बहाली की ओर इशारा अवश्य किया। पिछले कुछ महीनों से चीन ताइवान पर आक्रमण के दावे कर रहा था, परंतु अब ऐसा लगता है कि चीन दोबारा आक्रामक होने का जोखिम नहीं उठाना चाहता।
हालांकि, जापान के लिए चीन ने कोई बयान नहीं दिया है, लेकिन खबर स्पष्ट है – पिछले कई दिनों से सेंकाकू द्वीप समूह के आसपास चीन के जहाजों के मंडराने की खबर गायब सी हो गई है। जिस प्रकार से चीन चुनाव के पहले आक्रामक हो रहा था, उतनी ही नरमी से वह इस विषय पर चुनाव के पश्चात पेश आ रहा है।
चीन जानता है कि इस समय अमेरिका का नेतृत्व, भरोसा करने लायक नहीं है, और किसी को भी पता नहीं है कि आगे कौन अमेरिका की कमान संभालने वाला है। डोनाल्ड ट्रम्प भी चीन को कभी न भरने देने वाले घाव देना चाहते हैं, और इसीलिए उन्होंने बीजिंग से बातचीत को इच्छुक रक्षा मंत्री मार्क एस्पर को हटाकर पूर्व स्पेशल फोर्स अधिकारी क्रिस्टोफर मिलर को अभी के लिए रक्षा मंत्री नियुक्त किया है ।
ऐसे में अब पेंटागन चीन की ओर से गलती होने की प्रतीक्षा कर रहा है। चीन ने यदि कोई भी गलती की, और किसी भी मोर्चे पर वह फिसला, तो फिलहाल के लिए अमेरिकी प्रशासन उसे कच्चा चबाने के लिए पूरी तरह तैयार है। ऐसे में अमेरिकी नेतृत्व के बढ़ते असमंजस और अस्थिरता को देखते हुए बीजिंग के लिए यही श्रेयस्कर रहेगा कि वह स्थिति को नियंत्रण में रखे और ऐसा कोई काम न करे, जिससे उसका बर्बादी निश्चित हो।