तुर्की की अर्थव्यवस्था इस समय बहुत बुरी हालत में है। जहां एक तरफ तुर्की दिवालिया होने के मुहाने पर हैं, तो वहीं तुर्की के राष्ट्राध्यक्ष एरदोगन न तुर्की के सेंट्रल बैंक के गवर्नर मुरात उयसाल को हटाकर पल झाड़ने का प्रयास किया, लेकिन अब उनकी यहीं नीति उनपर भारी पड़ती है।
हाल ही में तुर्की की बिगड़ती अर्थव्यवस्था के चलते तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन ने तुर्की के सेंट्रल बैंक के गवर्नर को पद से हटाकर स्थिति को संभालने की कोशिश की, परंतु ये दांव उन्हीं पर भारी पड़ गया, जब एर्दोगन के दामाद और तुर्की वित्त मंत्री, बेरात अलबायरक ने अपने पद से आधिकारिक तौर पर इस्तीफा दे दिया।
ये निर्णय तब आये हैं, जब तुर्की की अर्थव्यवस्था अपने सबसे खराब दौर से गुजर रही है। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले तुर्की की लीरा में करीब 30 प्रतिशत की गिरावट आई है, और इसके अलावा तुर्की को महंगाई, घटते निवेश और आर्थिक विकास की गिरती दर का भी सामना करना पड़ रहा है।
लेकिन इसके लिए स्वयं एर्दोगन ही जिम्मेदार हैं, क्योंकि जिस प्रकार से उन्होंने सीरिया, लीबिया और Nagorno-Karabakh (नागोर्नो-कारबाख़) की हिंसक झड़पों में जबरदस्ती हस्तक्षेप किया है, और कई पश्चिमी देशों से पंगा मोल लिया है, उसी का कारण है कि आज तुर्की पाई-पाई का मोहताज हो रहा है।
लेकिन एर्दोगन को इन सब से कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि उन्हें केवल अपनी छवि की चिंता है। इसीलिए उन्होंने तुर्की के सेंट्रल बैंक के गवर्नर को निष्कासित कर दिया, ताकि खुद पर कोई आंच न आने पाए। सच्चाई तो यह है कि मूरत उयसाल (Murat Uysal) को बलि का बकरा बनाया गया है, असल में एर्दोगन ही तुर्की के ब्याज दरों में बढ़ोत्तरी नहीं होने दे रहे थे, क्योंकि उनको लगता था कि ऊंचे ब्याज दरों से महंगाई बढ़ती है।
इसी भांति तुर्की के वित्त मंत्री बेरात अलबायरक ने जिस प्रकार से त्यागपत्र दिया है, और जिस प्रकार से एर्दोगन ने उसे स्वीकार किया है, उससे एक बात स्पष्ट हो जाती है – जो एर्दोगन की जी हुज़ूरी नहीं करेगा, उसे सत्ता से हाथ धोना पड़ेगा। अब तक बेरात अलबायरक को एर्दोगन का उत्तराधिकारी समझा जा रहा था, लेकिन जब वह एर्दोगन के लिए खतरा सिद्ध होने लगे, तो एर्दोगन ने उन्हें ऐसे निकाला, जैसे चाय में से मक्खी!
रॉयटर्स से बातचीत के अनुसार “मुरात को हटाकर जिसे [तुर्की सेंट्रल बैंक] प्रमुख नियुक्त किया गया है, उसके साथ बेरात नहीं काम कर सकते थे”। सच तो ये है कि तुर्की की अर्थव्यवस्था के कारण अब तुर्की के राज परिवार यानि एर्दोगन के परिवार में भी दरार पड़ने लगी है। इतना ही नहीं अब तुर्की की बिगड़ती अर्थव्यवस्था तुर्की की नीतियों पर भी पड़ने लगी है। एर्दोगन या तो लोगों को इस्तीफा देने के लिए विवश कर रहे हैं, या फिर उन्हें पद से जानबूझकर हटा रहे हैं, ताकि उनका प्रभुत्व तुर्की की राजनीति में बना रहे।
तुर्की की अर्थव्यवस्था नीति का पैमाना तय करने के लिए बेरत अलबायरक और मुरात उयसाल तुर्की का चेहरा माने जाते थे। परंतु जिस प्रकार से दोनों को अपने पद छोड़ा है, उससे एक बात तो सिद्ध होती है – तुर्की की अर्थव्यवस्था रामभरोसे है, जिसे एर्दोगन क्या, कोई भी नहीं बचा सकता।