लगता है अब धीरे धीरे तुर्की के राष्ट्राध्यक्ष एर्दोगन को भी अकल आने लगी है। इसे अल्लाह की रहमत समझिए या खुद की सूझबूझ, परंतु अब एर्दोगन दोबारा से मिडिल ईस्ट के ताकतवर देशों, विशेषकर सऊदी अरब और इज़रायल के साथ अपने संबंध बहाल करना चाहते हैं।
जी हाँ, आपने ठीक पढ़ा। जनवरी में गल्फ कोऑपरेशन काउन्सिल की बैठक में सऊदी अरब और उसके साथियों ने ये निर्णय लिया है कि कतर के साथ वे अपने संबंध बहाल करेंगे। दरअसल, 2017 में कतर को कट्टरपंथी संगठन मुस्लिम ब्रदरहुड को सऊदी अरब के विरुद्ध भड़काने के लिए दोषी पाया गया था, जिसके चलते क़तर के साथ अरब देशों के संबंधों में कड़वाहट देखने को मिली थी परन्तु अब कतर के बदले रुख को देखते हुए सऊदी के नेतृत्व वाले गल्फ कोऑपरेशन काउन्सिल को यह निर्णय लेना पड़ा।
तो इसका तुर्की से क्या संबंध है? दरअसल, जब दोहा एक वैकल्पिक इस्लामिक जगत का खाका बुन रहा था, तो उसे सबसे पहले अंकारा में स्थित एर्दोगन प्रशासन का ही समर्थन मिला। लेकिन कतर से दो कदम आगे बढ़कर तुर्की ने सऊदी अरब को ही इस्लामिक जगत के निर्विरोध नेता की कुर्सी से बेदखल करने की ओर अपना कदम बढ़ाया।
इसके बाद सऊदी अरब ने धीरे धीरे तुर्की से दूरी बनानी शुरू कर दी। 2017 से तुर्की से आ रहे उत्पादों पर जो अनाधिकारिक प्रतिबंध लगा था, उसे सितंबर 2020 में सऊदी अरब ने आधिकारिक मुहर दी। लेकिन अब दोहा और रियाद में बेहतर संबंधों को देखते हुए तुर्की ने भी सुलह की पेशकश की है, जिससे स्पष्ट संकेत जाता है कि एर्दोगन अब वास्तव में समझ गये हैं कि उनकी भलाई सऊदी और इजराइल के साथ ही है।
एर्दोगन के अनुसार, “हम चाहते हैं कि गल्फ कोऑपरेशन में हमारा पोजीशन पहले जैसा हो। इससे गल्फ कोऑपरेशन और मजबूत बनेगा”। अब यह निर्णय यूं ही नहीं लिया गया है, क्योंकी एर्दोगन को सऊदी अरब के प्रतिबंध के कारण तुर्की के अर्थव्यवस्था को होने वाले नुकसान का आभास हो चुका है। महंगाई आसमान छू रही है, तुर्की की मुद्रा रसातल में है, और तो और तुर्की में कोई भी अहम देश निवेश करने से पहले दस बार सोच रहा है।
लेकिन तुर्की की यह भलमनसाहत केवल सऊदी तक ही सीमित नहीं है। कुछ ही हफ्तों पहले तुर्की ने कूटनीतिक तौर पर इज़राएल के साथ अपने संबंध बहाल किए थे। तुर्की को भी पता है कि यदि इज़राएल से दुश्मनी मोल ली, तो उसका भी हाल वही होगा जो आज ईरान और सीरिया का है। इसीलिए एर्दोगन इज़राएल से संबंध सुधारने की दिशा में अपने कदम बढ़ा चुके हैं।
ऐसे में अब तुर्की द्वारा सऊदी अरब और इज़रायल जैसे देशों से संबंध बहाल करने की दिशा में आगे बढ़ना ये स्पष्ट संकेत देता है कि तुर्की के राष्ट्राध्यक्ष एर्दोगन को आभास हो चुका है कि वह अपनी नीतियों में कहां गलत जा रहे थे। यदि उन्होंने यह निर्णय पहले ही लिए होते, तो तुर्की को आज यह दिन न देखना पड़ता।