आमतौर पर किसी राजनीतिक गठबंधन का प्रमुख गठबंधन का सबसे बड़ा और चर्चित नेता बनता है। United Progressive Alliance (UPA) के अंदर यह प्रथा नहीं है। UPA का प्रमुख हमेशा से कांग्रेस पार्टी के खेमे से ही बनता आ रहा है। चाहे कांग्रेस पार्टी की राजनीतिक दुर्दशा जो भी हो, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता है।
लंबे अरसे से UPA की अध्यक्षता गांधी परिवार कर रहा है, लेकिन अब धीरे- धीरे बगावत के सुर सुनाई देने लगे हैं। कल तक जो नेता गांधी परिवार की चाटुकारिता करते थे, आज वो भी बगावत के सुर छेड़ रहा है। हाल में ही दिल्ली में एक प्रेस वार्ता के दौरान शिवसेना के बड़े नेता संजय राउत ने कहा कि , “UPA अब Paralysed (लकवाग्रस्त) हो चुका है। मुझे लगता है कि NCP प्रमुख शरद पवार को राष्ट्रीय स्तर पर UPA का नेतृत्व करना चाहिए।”
बता दें कि, अभी UPA की प्रमुख सोनिया गांधी हैं। अभी ऊपर संदर्भ में हमने संजय राउत के एक हफ्ते पहले का बयान का जिक्र किया, लेकिन संजय राउत ने अगस्त 2020 में जो बयान दिया था, उसे भी साझा करना बेहद जरूरी है। 26 अगस्त 2020 को संजय राउत ने कहा था कि, “गांधी परिवार कांग्रेस का आधार कार्ड है। चाहे वह सोनिया गांधी हों, राहुल गांधी हों या प्रियंका गांधी हों। गैर-गांधी के लिए पार्टी का नेतृत्व करने की मांग उचित नहीं है। मुझे गांधी परिवार के बाहर कोई नेता दिखाई नहीं देता, जो पार्टी का नेतृत्व कर सके ।”
संजय इस बयान के 6-7 महीने बाद ही चाटुकारिता से बगावत पर उतर आए हैं। अगर विस्तार में बताएं तो, शिवसेना UPA का हिस्सा भी नहीं है। शिवसेना ने कांग्रेस के साथ महाराष्ट्र में सत्ता के लालच में आकर गठबंधन किया था। लालच में आकर बेमेल सरकार बनाना अब कांग्रेस और शिवसेना दोनों के लिए महंगा पड़ रहा है, क्योंकि दोनों पार्टियों के पास विचारधारा और सिद्धांत की भारी कमी है।
जब संजय ने शरद पवार को UPA प्रमुख बनाने के लिए प्रचार प्रसार किया था उसके जवाब में कांग्रेस के नेताओं ने भी संजय के ऊपर जुबानी हमले किए। महाराष्ट्र के राजस्व मंत्री बाला साहब थोरात ने संजय को कुछ भी बोलने से पहले सोचने की नसीहत दे दी। साथ ही में थोरात ने यह याद दिलाया कि वर्तमान समय में महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी की सरकार है, तो वो कांग्रेस की ही बदौलत है।
संजय के बयान से नाराज होने वाले थोरात अकेले नेता नहीं है। थोरात से पहले महाराष्ट्र कांग्रेस के प्रवक्ता सचिन सावंत और कांग्रेस से राज्यसभा सांसद हुसैन दलवई ने भी तीखी प्रतिक्रिया दी थी। अगर हम महाराष्ट्र में चल रहे घटनाक्रम पर ध्यान दें तो बहतु कुछ साफ नजर आ रहा है। सबसे पहले, अगर कोई नेता सोनिया गांधी के अलावा UPA के लिए दूसरा विकल्प बताता है, तो उस पर विचार-विमर्श करने की जगह उसकी आलोचना होने लगती है।
कांग्रेस पार्टी, जो कथित रूप से खुद को लोकतंत्र का रक्षक बताती है, के अंदर लोकतंत्र के लिए कोई जगह नहीं है। दूसरा संकेत यह मिलता है कि महाविकास अघाड़ी सरकार के तीनों पहिए (शिवसेना, NCP और कांग्रेस) एक साथ नहीं चल रहे हैं।
हाल में ही महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख के ऊपर पूर्व मुम्बई पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह द्वारा भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए गए हैं। आरोप के बाद गठबंधन की सरकार खतरे में नजर आ रही है, क्योंकि शिवसेना कभी अनिल का बचाव कर रही है, तो कभी उसको ‘accidental’ गृह मंत्री बोल रही है। शरद पवार ने सीधे तौर पर अपने पार्टी के नेता अनिल देशमुख का बचाव कि या है। वहीं कांग्रेस ने भ्रष्टाचार के आरोप पर कोई टिप्पणी नहीं की।
कांग्रेस की चुप्पी से यह साफ संकेत मिल रहा है कि महाराष्ट्र सरकार में कांग्रेस एक अप्रासंगिक पार्टी से ज्यादा कुछ भी नहीं है। तीसरा संदेश यह है कि, NCP नेता अनिल देशमुख पर भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद भी शिवसेना NCP को जिम्मेदार ठहराने के बजाय शरद पवार की चाटुकारिता कर रही है।
पवार की चाटुकारिता करने की दो वजहें हो सकती हैं, एक तो दोनों दलों के बीच घनिष्ठ प्रेम हो या दूसरा शिवसेना खुद को बचाने के लिए शरद की चाटुकारिता कर रही है। दोनों कारणों में से दूसरे कारण की संभावना ज्यादा है, क्योंकि हाल ही में खबर आई थी कि शरद पवार ने अमित शाह से मुलाकात की थी। इसकी वजह से शिवसेना को डर सता रहा है कि कहीं NCP, MVA छोड़कर चली गई तो उद्धव ठाकरे पांच साल तो दूर की बात ढाई साल भी मुख्यमंत्री पद पर नहीं रह पाएंगे।
खैर कारण जो भी हो आज महाराष्ट्र सरकार हर पैमाने पर विफल नजर आ रही है। फिर चाहे स्वास्थ्य की बात हो, कानून व्यवस्था की या फिर महाराष्ट्र की राजनीति की, हर तरफ से उद्धव ठाकरे की सरकार विफल नजर आ रही है। राजनीतिक स्थि रता और महाराष्ट्र की जनता के लिए महाविकास अघाड़ी सरकार को गिराना मजबूरी से ज्यादा जरूरी हो चुका है।