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गोत्र प्रणाली ने भारत को कोरोना काल में तबाही से बचाया, वैज्ञानिक सबूत इस दावे को सही ठहराते हैं

गोत्र प्रणाली और कोरोना वायरस: कैसे एक प्राचीन हिंदू प्रथा ने देश को तबाही से बचाया

Abhinav Kumar द्वारा Abhinav Kumar
13 July 2021
in संस्कृति
गोत्र व्यवस्था क्या है
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गोत्र व्यवस्था क्या है? इसका वैज्ञानिक विश्लेषण :

कोविड-19 का कोई धर्म नहीं है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि कोविड धर्मनिरपेक्ष भी है। अगर आंकड़ों को देखा जाए तो इस्लामिक देशों में संक्रमण और मृत्यु दर भारत जैसे देशों के मुकाबले अधिक है। भारत में मुख्य रूप से हिंदू, कोरोना वायरस की दूसरी लहर को प्रबलता के साथ झेलते दिखे। महामारी के चरम पर भी भारत में मृत्यु दर मुख्य रूप से ईसाई देश अमेरिका की तुलना में छह गुना कम देखा गया। कहीं ना कहीं गोत्र व्यवस्था ने इसमें बड़ा योगदान निभाया है। लेकिन यह गोत्र व्यवस्था क्या है? और कैसे गोत्र व्यवस्था ने हिन्दुओं को कोरोना जैसी महामारी से काफी हद तक बचाया? आइये जानते है इस विस्तृत लेख में।

CSIR यानी नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, टेक्नोलॉजी एंड डेवलपमेंट स्टडीज के डॉ शिव नारायण निषाद ने हाल ही में खुलासा किया कि कोविड -19 से मृत्यु दर “कई देशों में एक समान है, परन्तु भारत में अभी भी यह सबसे कम है।”

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तो, यहाँ सवाल उठता है कि देश की हिंदू आबादी में कोरोना से होने वाली मृत्यु का जोखिम क्यों कम है?

सबसे पहले समझते है गोत्र व्यवस्था क्या है?

इसका उत्तर हिन्दुओं के बीच प्राचीन समय से प्रचलित ‘गोत्र व्यवस्था’ है। हिंदू संस्कृति में, गोत्र का अर्थ कुल या वंश होता है। यदि दो व्यक्तियों का गोत्र एक समान है तो इसका अर्थ ये है कि वो दोनों एक ही कुल में जन्में हैं। यदि गोत्र एक है अर्थात वे एक ही पूर्वज की उत्पति हैं, ऐसे में वो दो लोग भाई-बहन के रिश्ते के बंध जाते हैं।

आम तौर पर, हिंदू धर्म एक ही परिवार में या एक ही कुल में शादी करने की अनुमति नहीं देता है, और अगर कोई ऐसा करता है तो उसे Incest (कौटुम्बिक व्यभिचार) कहा जाता है। परंतु किसी लड़के और लड़की का गोत्र अलग है और जाति समान है तो वो दोनों शादी के बंधन में बंध सकते हैं। इस प्रकार, हजारों साल पहले ही हिंदू समाज में एक ही गोत्र से शादी नहीं करना धीरे-धीरे एक मौखिक कानून बन गया है।

तो, क्या यह कहना व्यावहारिक होगा कि वैदिक सभ्यता के दौरान विकसित गोत्र प्रणाली, जो अपने ही गोत्र में विवाह को प्रतिबंधित करती है, उससे वैज्ञानिक रूप से आनुवंशिक बीमारियों का जोखिम कम होता है? क्या यह प्रणाली हिंदुओं को कोरोना जैसे घातक महामारी में भी बाकि लोगों की तुलना में अधिक immune बनाती है? खैर, 10वीं कक्षा के जीव विज्ञान का ज्ञान रखने वाला व्यक्ति भी समझ सकता है कि आखिर ऐसा क्यों है।

और पढ़े : [वैज्ञानिक विश्लेषण]: इसलिए हिन्दू नहीं करते एक गोत्र में विवाह

गोत्र व्यवस्था का वैज्ञानिक विश्लेषण

गोत्र व्यवस्था प्रमुख रूप से हिंदुओं में अंत:प्रजनन यानी inbreeding होने से रोकती है। हालाँकि genetic defects के लिए इनब्रीडिंग सीधे तौर पर जिम्मेदार नहीं है, यह सिर्फ Homozygosity की frequency को बढ़ाता है। Homozygosity उस स्थिति को कहते हैं जिसमें एक ही व्यक्ति में identical alleles of a gene पाए जाते हैं।

Sexual Reproduction से जब नई प्रजाति का जन्म होता है तो वो  अपने जनक से भिन्न होते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि इस प्रक्रिया में नर और मादा के बीच यौन संबंध से बनने वाले भ्रूण में दोनों के ही DNA होते हैं जिस वजह से शिशु में दोनों के गुण पाए जाते हैं। शिशु का DNA नर और मादा के DNA से मिलकर बनता है तो जीन में म्युटेशन होता है और प्रकृति में विविधता बनी रहती है जो नेचर को बैलेंस करने के लिए जरुरी भी है।

मनुष्य के लिए आनुवंशिक परिवर्तन (hereditary change) का काफी महत्व है और इसका जिम्मेदार जेनेटिक मटेरियल होता है। जेनेटिक मटेरियल में म्युटेशन अच्छा भी है और बुरा भी। अगर ये अच्छा होता है तो नई पीढ़ी शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ होती है और उसमें कई नए गुण विकसित होते हैं लेकिन अगर यही म्युटेशन गलत हुआ तो नई पीढ़ी में कुछ ऐसे असमान्य बदलाव होते हैं जो उसे बीमार या जीवनभर के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से अपाहिज बना देते हैं।

और पढ़े : चैती छठ पर्व क्या है और इतिहास क्या है और 2022 में चैती छठ कब है?

एक ही गोत्र में विवाह करने ने दुष्प्रभाव 

आंतरिक प्रजनन यानी इनब्रीडिंग से अगली पीढ़ी कमजोर और बीमारू पैदा होती हैं और उनके जीन में भी कोई विविधता नहीं होती जिससे homozygosity को बढ़ावा मिलता है और इनके Allele यानि की  जेनेटिक तत्व में कोई बदलाव देखने को नहीं मिलता। लेकिन सेक्सुअल रिप्रोडक्शन की प्रक्रिया से किसी भी जीव या जंतु या मनुष्य की प्रजातियों में विविधता बनी रहती है और Allele यानि की इनके जेनेटिक तत्व में heterozygosity भी बनी रहती है।

एलील किसी जीन के विभिन्न रूपांतरों को कहते हैं। मनुष्यों में 46 क्रोमोज़ोम होते हैं, जो 23 के जोड़े में होते हैं। स्त्री और पुरूष में 22 जोड़े एक समान होते हैं जबकि 23 वें जोड़े के क्रोमोज़ोम स्त्री और पुरूष में समान नहीं होते जिन्हें विषमजात गुणसूत्र यानि की heterosomes कहते हैं, जिनमें से शिशु में आधे माता व आधे पिता से आते हैं। इसका मतलब है कि प्रत्येक जीन के 2 एलील्स शिशु में होते हैं।

हालांकि, कुछ ऐसे deleterious recessive alleles होते हैं जो तभी डोमिनेंट होते हैं जब एक जैसे recessive एलिल साथ आते हैं। अगर एक ही गोत्र के स्त्री और पुरुष के बीच यौन संबंध बनते हैं या यूं कहें कि पारिवारिक रक्त सम्बन्धों (बाप-बेटी, बहन-भाई) में बनने वाले यौन सम्बन्ध के बाद जन्म लेने वाले बच्चे में recessive एलिल डोमिनेंट हो जाते हैं और अगर वो recessive एलिल किसी रोग को साथ ले आते है तो सामान्य बच्चों की तुलना में ऐसे बच्चे बीमारू और ऐसे रोग से ग्रसित हो सकता है जिसका इलाज ही नहीं है।

गोत्र व्यवस्था पर किये गए शोध

देखा जाये तो गोत्र व्यवस्था का सिर्फ हिन्दुओं द्वारा ही पालन किया जाता है। इसी कारण से इस्लाम और इसाई धर्मों के अनुयायियों में इनब्रीडिंग होने की सम्भावना होती है। मुस्लिम बहुल देशों में Consanguineous marriages का प्रचलन अधिक है, और सऊदी अरब जैसे देशों में यह अनुपात लगातार बढ़ रहा है। सऊदी अरब में होने वाली सभी शादियों में से लगभग आधी शादियां चचेरे भाइयों के साथ होती हैं। कतर और संयुक्त अरब अमीरात जैसे इस्लामी देशों में यह संख्या समान रूप से अधिक है। अब तक आपने समझा की गोत्र व्यवस्था क्या है? और वैज्ञानिक विश्लेषण लेकिन अब आप पढ़िए की शोध क्या कहते है?

वर्ष 2017 में, हैदराबाद के Center for Cellular and Molecular Biology ने बताया कि मृत्यु दर और morbidity rates आम तौर पर अपने ही खून के रिश्तेदारों से विवाह या यौन संबंध के कारण बढ़ जाती है।

इसके अलावा, यह बताया गया है कि consanguinity कई बीमारियों का कारण है, जैसे कि हृदय रोग, multiple sclerosis, अवसाद, अस्थमा और PID। अब कोरोना वायरस की बात की करे तो इस साल जून में, TFIGlobal ने बताया था कि कैसे कोरोना वायरस के कारण इस्लामिक देशों में दुसरे देशों की तुलना से कई गुणा अधिक मृत्यु हो रही है।

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विदेशों से प्राप्त रिपोर्ट एवं आकड़े

फ्रांस, यूनाइटेड किंगडम और इज़राइल की रिपोर्ट से संकेत मिलता है कि इन देशों में COVID-19 महामारी के कारण मुस्लिम समुदायों में होने वाली मौतें, COVID-19 मृत्यु दर से होने वाली मौतों से बहुत अधिक है।

रॉयटर्स की रिपोर्ट माने तो Sub-Saharan Africa में पैदा हुए फ्रांसीसी निवासी के बीच फ्रांसीसी मूल के निवासियों की तुलना में 4.5 गुना अधिक मौतें दर्ज की गयी। इंग्लैंड में, COVID-19 से होने वाली मौतों के आंकड़ों से पता चलता है कि वहां रहने वाले मुसलमान सबसे ज्यादा प्रभावित समुदाय हैं। ब्रिटेन में रहने वाले मुसलमानों की मृत्यु दर देश में रहने वाले ईसाइयों की तुलना में दोगुनी है। इस बीच, इज़राइल में, पिछले महीने स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा प्रकाशित अध्ययन से पता चला है कि इज़राइली अरबों में कोरोना वायरस की मृत्यु दर पुरे इज़राइली आबादी की तुलना में तीन गुना अधिक है।

वहीँ Cogprints.org में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, मुस्लिम समुदाय में कुल विवाहों में से 13.56% consanguineous श्रेणी में आते हैं। हिंदुओं में यह संख्या 5.04% और ईसाइयों में 1.08% है। हालाँकि, अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों में, consanguineous विवाह की अवधारणा सामाजिक रूप से अधिक स्वीकार्य है। कुछ रिपोर्टों से पता चलता है कि कुछ देशों में ईसाइयों में consanguineous विवाहों की वास्तविक दर 15% तक हो सकती है।

हालाँकि, यह स्पष्ट है कि गोत्र क्या है व इसका पालन क्यों करना चाहिए और पालन नहीं करने वाले लोगों में घातक महामारी के आगे घुटने टेकने की अधिक संभावना है। यह नहीं भूलना चाहिए कि हर मौत देश के लिए एक दुर्भाग्य है। अगर हिंदुओं द्वारा गोत्र व्यवस्था का व्यापक रूप से पालन नहीं होता तो यह महामारी और अधिक विनाशकारी साबित हो सकती थी।

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