मंत्रिमंडल विस्तार से एक दिन पहले पीएम मोदी ने सहकारिता मंत्रालय गठित किया। गृह मंत्री अमित शाह को सहकारिता मंत्री बनाया। सहकारिता मंत्रालय बना ही था कि इस पर राजनीतिक विवाद शुरू हो गया। विपक्षी पार्टियां सरकार की नियत पर सवाल उठा रही हैं। दूसरी तरफ महाराष्ट्र में अलग ही खेल चल रहा है। शरद पवार ने सहकारिता मंत्रालय का विरोध किया तो शिवसेना ने इसकी तारीफ की है। महाविकास अघाड़ी की दो मुख्य पार्टियों के अलग-अलग विचार कुछ तो इशारा करते हैं।
मोदी सरकार ने ‘सहकार से समृद्धि‘ के सपने को साकार करने के लिए यह मंत्रालय गठित किया है। अधिकारियों ने बताया है कि नया सहकारिता मंत्रालय देश में सहकारिता आंदोलन को मजबूत करने के लिए एक अलग प्रशासनिक, कानूनी और नीतिगत ढांचा प्रदान करेगा। यह सहकारी समितियों को जमीनी स्तर तक पहुंचाने वाले एक सच्चे जनभागीदारी आधारित आंदोलन को मजबूत बनाने में भी सहायता प्रदान करेगा।
जहां एक ओर शिवसेना के मुखपत्र सामना में सहकारिता मंत्रालय के गठन पर सरकार की तारीफों के पुल बांधे गए हैं, तो वहीं राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार सहकारिता मंत्रालय के विरोध में उतर गए हैं।
शिवसेना के मुखपत्र सामना में ये कहा गया है, “अगर शाह सहकारिता मंत्रालय के जरिए कुछ नया करना चाहते हैं तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए। यदि कोई यह कहता है कि केंद्र सरकार ने भ्रष्ट मंत्रियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए सहकारी संस्थाओं को अपने अधिकार में लिया है तो यह एक तरह से अपमान की बात है, क्योंकि शाह खुद गुजरात में सहकारिता आंदोलन से जुड़े रहे हैं। निश्चित तौर पर केंद्र के पास इन सहकारी संस्थाओं के माध्यम से राज्यों में विकास कार्यों को बढ़ाने की योजनाएं हैं।’’
इसके उलट राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार ने ये कहते हुए सहकारिता मंत्रालय का विरोध किया कि “राज्य में सहकारिता विभाग में नियम-कानून महाराष्ट्र के कानून के हिसाब से चलेगा और केंद्र सरकार को इसमें हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है।”
ये दो अलग-अलग पार्टियों के बयान कहे जा सकते हैं परंतु जब राज्य में एक साथ सरकार चला रहे हों और तब ऐसा विरोधाभास दिखे तो पता चलता है कि दोनों पार्टियों के बीच में सबकुछ सही नहीं चल रहा है।
महाराष्ट्र के सहकारिता आंदोलन भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुके हैं। प्रवर्तन निदेशालय महाराष्ट्र कोऑपरेटिव बैंक घोटाले में जांच कर रहा है। इसमें अजीत पवार के ऊपर भी केस दर्ज किया गया है। सिर्फ अजीत पवार ही क्यों इस मामले में शरद पवार को भी आरोपी बनाया गया है। एक गवाह के बयान के आधार पर शरद पवार का नाम आरोपियों की सूची में शामिल किया गया। उक्त गवाह ने अपने बयान में बताया था कि कैसे शरद पवार ने इस घोटाले में बड़ी भूमिका निभाई थी।
ऐसे में जबकि महाराष्ट्र सरकार की दो प्रमुख पार्टियां इस मुद्दे पर बंटी हुईं है कि क्या ये दोनों के बीच अनबन की ओर इशारा करता है ? क्या इसका परिणाम आने वाले दिनों में हमें देखने को मिलेगा ?
पिछले कुछ दिनों में कई बार ऐसे मौके आए हैं जब महाविकास अगाड़ी की सरकार के विचार कई मुद्दों पर अलग-अलग दिखे। कांग्रेस पार्टी ने तो कई बार शिवेसना-एनसीपी का खुलकर विरोध तक किया। ऐसे में देखना यही होगा कि महाविकास अघाड़ी की सरकार कब तक इन विरोधाभासों के साथ चलती है।
अब क्या पता किस बात कि आशंका शरद पवार को हुई और उन्होंने अविलंब नए सहकारिता मंत्रालय का विरोध कर उस पर प्रश्नचिन्ह खड़े कर दिये। अब जब शिवसेना का रुख इसपर बिलकुल विपरीत है तो मौजूदा महाराष्ट्र सरकार पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है वो तो आने वाले समय में पता चलेगा पर फिलहाल सहकारी से भयकारी हुए राजनेताओं के आने वाले बयानों में कितनी कटुता और मिठास दिखती है वो ज़रूर रोचक होगा।