जो दिखता है, या जो दिखाया जाता है, आवश्यक नहीं कि वही सच हो। वामपंथी, इन्फोसिस और टाटा प्रकरण के सहारे यह वातावरण बनाने का प्रयास कर रहे हैं कि मोदी सरकार के अंतर्गत उद्योग भी स्वतंत्र नहीं है, और फोर्ड कंपनी के बोरिया बिस्तर समेटते ही वे ये दिखाना चाहते हैं कि भारत से सभी उद्योग अब अपने हाथ पीछे खींच रहे हैं। लेकिन भारत का एक चित्र और भी है, जो ये वामपंथी आपको कभी भी नहीं दिखाना चाहेंगे। जिस प्रकार से अनेक बाधाओं के बावजूद भारत चहुँमुखी प्रगति की ओर अग्रसर है, उससे प्रभावित होकर भारतीय उद्योगपति और सीईओ अब भारतीय कंपनियों में निवेश करने की ओर अधिक उत्सुकता दिखा रहे हैं, और भारत की फलती-फूलती अर्थव्यवस्था में अपना अधिक से अधिक योगदान देना चाहते हैं।
वो कैसे? इसके पीछे अनेक कारण हैं, जिनका एक विस्तृत विश्लेषण आवश्यक है। भारत के उद्योगपति, विशेषकर भारतीय कंपनियों के सीईओ अब विदेशी, मल्टीनेशनल कंपनियों को छोड़कर भारतीय कंपनियों को प्राथमिकता दे रहे हैं। इसका अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि 2020-21 में भारतीय कंपनियों के पंजीकरण में 26 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। जी हाँ, 26 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है।
उदाहरण के लिए जिन सीईओ ने भारतीय कंपनियों को प्राथमिकता देना शुरू किया है और विदेशी कंपनियों की तिलांजलि दी है, उनमें प्रमुख हैं – गोदरेज कंज्यूमर प्रोडक्ट्स लिमिटेड के सीईओ एवं निदेशक सुधीर सीतापति, जो पहले हिंदुस्तान यूनिलीवर के साथ कार्यरत थे। इनके अलावा माएर्स्क में पहले कार्यरत प्रदीप कपूर अब एयरटेल से जुड़े हैं, और इसी प्रकार से यूनिलीवर और कोलगेट पामोलिव को अपनी सेवाएँ देने वाले हेमंत बदरी अब फ्लिपकार्ट के सप्लाई चेन के मुखिया हैं और वरिष्ठ उपाध्यक्ष हैं।
और पढ़ें : गोयल और गडकरी: कोविड के बाद आए बड़े आर्थिक बदलाव के वास्तुकार
यह अभियान कितना सफल है, और भारत कितनी से आर्थिक प्रगति कर रहा है, इसका अंदाजा आप RPG ग्रुप के अध्यक्ष हर्ष गोएनका के बयान से लगा सकते हैं। आम तौर पर सरकार की नीतियों के आलोचक रहे हर्ष गोएनका भी इस अनोखी रीति की प्रशंसा किए बिना नहीं रह सके, और वे बोल पड़े, “और कंपनियों की तुलना में भारतीय कंपनियों में ज्यादा सक्रियता है, ज्यादा एक्शन है और ज्यादा ग्रोथ भी, जिसके कारण लोग आकर्षित हो रहे हैं, और इस अभियान का हिस्सा भी बन रहे हैं l”
लेकिन इसके पीछे कारण क्या है? ऐसा भी क्या किया है भारत सरकार ने, जिसके पीछे भारतीय उद्योगपति भारत में पुनः रुचि दिखाने लगे हैं। एकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, “निरंतर गति से बढ़ता स्टॉक मार्केट हो, विशाल पूंजी व्यय योजनाएँ हो, निजी इक्विटी, मर्जर और अधिग्रहण से संबंधित बातें हों, कॉर्पोरेट गवर्नेन्स में सुधार हो, या फिर नीति निर्माण में व्यापक बदलाव हो, ऐसे अनेक कारण है, जिनके कारण भारतीय कंपनियां उच्चतम प्रतिभा को आकृष्ट करने में सफल हो रही हैं।”
इसके पीछे केंद्र सरकार के व्यापक बदलावों की बहुत बड़ी भूमिका रही है, चाहे वो आधारभूत संरचना के दृष्टिकोण से हो, या फिर वित्तीय दृष्टिकोण से हो। TFI Post के एक विश्लेषणात्मक रिपोर्ट के अनुसार,
“पीयूष गोएल जब बिजली मंत्री थे, तो वे भारत के हर घर में बिजली पहुंचाने के मिशन पर थे। जिस तरह से उन्होंने काम किया वह वाकई काबिले तारीफ है। बिजली सूचना और ज्ञान प्राप्त करने का प्रमुख स्रोत है और इसकी कमी शिक्षा और स्वास्थ्य को प्रभावित करती है। संक्षेप में कहा जाए तो, बिजली का सीधा संबंध देश की अर्थव्यवस्था और देशवासियों के विकास से है। इसको हासिल करने की जिम्मेदारी श्री पीयूष गोयल के कंधों पर थी और उन्होंने कर दिखाया।
दूसरा नाम है भाजपा में संघ के सबसे विश्वस्त और नागपुर से लोक सभा सांसद नितिन गडकरी का। कोविड महामारी के दौरान सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री के तौर इनका कार्य अभूतपूर्व रहा। देश के बड़े हिस्से में कोविड लॉकडाउन और गतिशीलता पर प्रतिबंध के बावजूद राजमार्ग निर्माण चालू वित्त वर्ष के अप्रैल-मई में सालाना 74 फीसदी बढ़कर 24.1 किमी/दिन हो गया। नवीनतम राजमार्ग निर्माण संकेत देता है कि अर्थव्यवस्था का निर्माण क्षेत्र अपनी प्रगतिशीलता और उन्नति को बनाए हुए है।”
ऐसे ही प्रशासकों के प्रयासों के कारण भारत ने अनेकों बाधाओं और कोविड की दूसरी लहर के बावजूद 20.1 की अप्रत्याशित आर्थिक वृद्धि अप्रैल से जून के तिमाही में दर्ज कराई। ऐसे सकारात्मक वातावरण में कौन सा उद्योगपति काम करने को इच्छुक नहीं होगा? ऐसे में अगली बार कोई वामपंथी आपको भ्रमित करने का प्रयास करे और कहे कि मोदी सरकार देश बेचने पर तुली है, तो उनके कहे पर बिल्कुल न जाएँ, और वास्तविकता को खोजें, क्योंकि वास्तविकता तो एक सुनहरे भविष्य का संकेत दे रही है।