पंजाब के हालिया राजनीतिक उथल-पुथल ने यह साबित किया है कि एक सैनिक अंततः सैनिक ही होता है, फिर पेशा चाहे कोई भी हो। राजनीति हो, कूटनीति हो, वकालत हो या फिर खेल, परंतु पद प्रतिष्ठा और सत्ता के मद मोह से परे राष्ट्र निमित्त हेतु अनवरत युद्धरत रहता है। कैप्टन अमरिंदर सिंह पूर्व सैनिक और सैन्य इतिहासकार भी हैं। अतः पंजाब घटनाक्रम के सन्दर्भ में उनका राजनैतिक दृष्टिकोण भी सैन्य रणनीति सम हैl पंजाब में चल रहे राजनैतिक उथल-पुथल भारतीय राजनीति के विकृत चेहरे का एक मानक उदाहरण है। इसमें सब कुछ है, सिद्धू की सत्ता लोलुपता से लेकर कांग्रेस की किंकर्तव्यविमूढ़ तक। राजनैतिक शिथिलता से लेकर कैप्टन की कर्तव्य परायणता तक। पद प्रतिष्ठा मद-मोह और सत्ता को नकारते, दुत्कारते पंजाब में कप्तान अमरिंदर सिंह राष्ट्रीयता रक्षण हेतु लड़ते रहे और लड़े भी क्यों ना? रक्त में पड़े सैन्य संस्कार और माटी की महक उद्वेलित जो करती है। आइये, इस लेख के माध्यम से हम आपको पंजाब के राजनैतिक घटनाक्रम का वृतांत वर्णन के साथ-साथ कप्तान के अपमान के साथ-साथ उस प्रश्न का भी विश्लेषण करेंगे कि क्या होगा अगर इस बागी कप्तान ने एक अलग दल का निर्माण कर लियाl
राष्ट्रवाद के वातावरण में राष्ट्र विरोधी विचार रखनेवाला ज्यादा दिन नहीं रह सकताl 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव पूर्व सिद्धू ने भाजपा का दामन छोड़ कांग्रेस का हाथ पकड़ लिया। चुनाव में कांग्रेस विजयी हुई। लेकिन कांग्रेस के इस पंजाब विजय में अमरिंदर की बड़ी भूमिका थी। उनकी लगन और मेहनत ने कांग्रेस को संजीविनी प्रदान कर पंजाब में सत्तासीन कर दिया, लेकिन नेतृत्व अगर निर्बल हो तो तत्काल प्रभाव से अराजकता और निरंकुशता का सृजन करती है। कांग्रेस का नेतृत्व आप सभी जानते हैं? और ऊपर से केंद्रीय नेतृत्व के कल्याणकारी और विकासशील प्रयासों जैसे नागरिकता संशोधन कानून और किसान कानून ने पंजाब को विकास के पथ पर तीव्रता से अग्रसर किया। केंद्रीय मंत्रिमंडल में हरदीप सिंह पुरी जैसे नेताओं का प्रतिनिधित्व और अफगानिस्तान के रक्षण कार्य प्रशंसनीय रहे। केसरिया भाईचारा और प्रखर राष्ट्रवाद से लबरेज पंजाब का विकास होना और उसे मुख्यधारा से जुड़ना खालिस्तानी और पाकिस्तान समर्थकों को रास नहीं आया।
ऊपर से कप्तान द्वारा अवैध तस्करी नशीले पदार्थ की बिक्री और आतंकवाद पर करारे प्रहार में इनकी रीड तोड़ दी। सिद्धू ने राष्ट्रपक्ष और विधायक दल के नेता कैप्टन अमरिंदर सिंह की अवज्ञा करते हुए करतारपुर कॉरिडोर के उद्घाटन समारोह में गये थे। पाकिस्तानी आकाओं, सैन्य संस्थानों और आलाकमानों से उनकी नजदीकियां छुपी हुई नहीं है। अनुच्छेद 370 कश्मीर मसला हो या सीएए- एनआरसी जैसे कानूनों पर कुछ राष्ट्र विरोधी बयानों के कारण सिद्धू द्वारा नियुक्त कुछ सलाहकारों को कैप्टन अमरिंदर सिंह द्वारा निष्कासित भी किया गया था। अपमान का दंश झेल रहे कप्तान ने कई अवसरों परसिद्धू के राष्ट्र विरोधी तत्वों से जुड़ाव और भारत पर पड़ने वाले इसके प्रभाव का उल्लेख किया। परंतु, सैनिक में अभी हार नहीं मानी है। कप्तान के राजनैतिक ताकत और उनके इच्छाशक्ति को देखते हुए कांग्रेस भी जानती है भारतीय सेना का ये जवान बिना लड़े पीछे नहीं हटेगा। अतः अमरिंदर द्वारा राजनीतिक दल के नव निर्माण की संभावना प्रबल है। शायद इसीलिए कप्तान द्वारा किसी भी प्रतिकार को निष्प्रभावी करने हेतु अशोक गहलोत द्वारा Tweet के माध्यम से दो बार यह याचना की गई कि कांग्रेस के सम्मानित राजनेता होने के नाते अमरिंदर कृपा करके कोई ऐसा कदम नहीं उठाए जिससे कांग्रेस सहित को नुकसान पहुंचे। सिद्धू के बजाय मुख्यमंत्री पद के लिए अंबिका सोनी का नाम उछाला जाना भी कांग्रेस में अमरिंदर के भय को दर्शाता है। अतः संभावना निश्चित है कि सिद्धू और उनके राष्ट्र विरोधी समर्थकों को रोकने के लिए अमरिंदर एक नए दल का निर्माण करें।
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कांग्रेस सिद्धू और राष्ट्र विरोधी ताकतों को रोकने की मंशा से अमरिंदर सिंह अगर नए दल का गठन करते हैं तो राजनैतिक रूप से दो परिस्थितियों के चरितार्थ होने की प्रबल संभावना है।
प्रथम यह कि अमरिंदर सिंह खुद के बलबूते पर पंजाब में चुनाव लड़ेंगे। भविष्य के गर्भ में समाए इस संभावनाओं की ओर अगर कप्तान उन्मुख होते हैं तो उससे सिर्फ उनकी राजनैतिक पहचान एक वोट कटवा तक ही सीमित रह जाएगी। पंजाब में कांग्रेस के पास एक दल की आधारभूत संरचना है। सिद्धू को खालिस्तानी समर्थन के साथ-साथ पंजाब में पल्लवित हो रहे कुछ चरमपंथी और अलगाववादी गुटों का भी समर्थन प्राप्त है। अकाली दल भी राजनैतिक विवशता के कारण इन्हीं गुटों पर आश्रित है। इनके प्रति अपनी स्वामी भक्ति और कर्तव्यनिष्ठा का परिचय देते हुए किसान कानून के मुद्दे पर हरसिमरत कौर ने इस्तीफा तक दे दिया था। पंजाब में इन गुटों की स्वार्थ की राजनीति करने वाले बहुतेरे चेहरे है। अत: इस राजनीतिक प्रतिद्वंदिता में अकेले अमरिंदर सिर्फ अप्रासंगिकता की ओर अग्रसर होंगे।
दूसरी परिस्थिति यह हो सकती है कि अमरिंदर भाजपा में शामिल हो जाएं। भाजपा से हाथ मिलाना अमरिंदर के लिए एक राजनीतिक दूरदर्शिता को प्रतिबिंबित करेगा। उनका यह राजनीतिक निर्णय उनके राजनीतिक भविष्य को सफलता की ओर ले जायेगा । वैसे भी राजनीति में एक कहावत है कि ना कोई अस्थाई दोस्त होता है और ना ही कोई अस्थाई शत्रु। फिर राष्ट्रवादी संस्कारों में पले अमरिंदर और भाजपा का एक निश्चित और सामान शत्रु होगा। दोनों की निर्बलता एक दूसरे के संबल से ढक जाएगी। जैसे भाजपा को मुख्यमंत्री पद हेतु एक राष्ट्रवादी सिख चेहरा मिलेगा और अमरिंदर को एक राष्ट्रवादी संगठन। जैसे भाजपा को अमरिंदर के पीछे लामबंद उच्च जाति के जट मतदाताओं का समर्थन प्राप्त होगा, तो वही अमरिंदर को भाजपा के पीछे लामबंद दलित, हिंदू और गैर सिखों का। दोनों एक दूसरे को सत्तासीन करने का माध्यम बनेंगे और पंजाब में केसरिया भाईचारा का गौरवशाली ध्वज लहराएगा। अमरिंदर और भाजपा के गठजोड़ से पंजाब में केसरिया भाईचारा के नाम से जिस राजनीतिक समीकरण का उदय होगा वह गणितीय और सामाजिक दोनों रूप से अभेद्य तथा अजेय होगा।
अमरिंदर लड़ेंगे। वे निश्चित लड़ेंगे। उनके संग संस्कार नैसर्गिक रूप से उन्हें प्रेरित करेंगे। कांग्रेस एक दल के रूप में और उसका राजनैतिक आलाकमान एक सतत और सशक्त नेतृत्व प्रदान करने में पूर्णत: विफल रहा। उसकी विफलता उसकी असमर्थता के कारण है। कांग्रेस पंजाब और राष्ट्रीय स्तर पर वह एक सशक्त और कल्याणकारी नेतृत्व का सृजन तो नहीं कर पाई, बल्कि इसके बदले कट्टरपंथी और सिद्धू जैसे राष्ट्र विरोधी स्लीपर सेल को अपनी राष्ट्र विरोधी नेताओं को आगे बढ़ने का अवसर जरूर प्रदान कर दिया। अतः इन राष्ट्र विरोधी ताकतों के मंसूबों को ध्वस्त करने, अपनी राजनैतिक प्रसंगिकता के संरक्षण और केसरिया भाईचारे की नींव रख राष्ट्र निर्माण और पंजाब की सत्ता में सदैव के लिए स्थापित होने हेतु अमरिंदर भाजपा से हाथ मिला सकते हैं।
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