अंडमान निकोबार के कमांड : इन दिनों चीन भारत को युद्ध के लिए उकसाने का भरसक प्रयास कर रहा है। इसके लिए उसने अनेकों प्रयास भी किए हैं, चाहे उत्तराखंड के बाराहोती में पैदल पुल ध्वस्त करना हो, या फिर अरुणाचल प्रदेश के तवांग क्षेत्र में असफल आक्रमण हो, चीन भारत-तिब्बत बॉर्डर के एक-एक मोर्चे पर भारत को चुनौती देने के लिए खुद को ‘पूरी तरह तैयार’ दिखाने का भरसक प्रयास कर रहा है।
लेकिन भारत ने न केवल उसके हर प्रपंच का मुंहतोड़ जवाब दिया है, अपितु अंडमान निकोबार के रूप में एक कमांड भी तैयार कर किया है, जहां से चीन को वो ऐसा सबक सिखा सके कि वह दोबारा मुड़कर भारत पर आक्रमण करने का दुस्साहस नहीं कर पाये। इसकी ओर संकेत देते हुए भारत के वर्तमान चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत ने हाल ही में एक साक्षात्कार में स्पष्ट किया कि अंडमान निकोबार कमांड किसी भी प्रकार के खतरे से निपटने हेतु पूर्णतया सक्षम है।
इस संयुक्त कमांड के 21 वें स्थापना दिवस के अवसर पर CDS बिपिन रावत ने बताया, “8 अक्टूबर 2001 को अंडमान एवं निकोबार कमांड की स्थापना हमारे देश के ‘एक्ट ईस्ट’ नीति को और मजबूत बनाने के लिए की गई थी, ताकि हम न केवल ऐसे रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण द्वीपों पर अपना वर्चस्व स्थापित कर सके, अपितु आक्रमणकारी शक्तियों का डटकर सामना भी कर सके।”
स्पष्ट शब्दों में जनरल रावत ने जता दिया कि यदि चीन ने ज़रा भी गड़बड़ करने का प्रयास किया, तो भारत न सिर्फ उसे मुंहतोड़ जवाब देने के लिए तैयार के लिए तैयार है, अपितु अंडमान निकोबार के ‘कमांड’ से चीन को पटक पटक के धो सकता है। ये रणनीतिक रूप से भी और ऐतिहासिक रूप से भी भारत के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण रहा है।
शायद इसीलिए प्रख्यात क्रांतिकारी नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 1943 में जापानियों से इन द्वीपों का अधिग्रहण किया था। जनरल रावत का यह संदेश चीन के लिए इसलिए भी काफी भयानक है क्योंकि अंडमान एवं निकोबार कमांड अपने आप में एक अनोखी कमांड है, और भारत में ऐसी सिर्फ दो कमांड है। दूसरी कमांड Strategic Forces Command है, जो भारत के न्यूक्लियर संपत्तियों की रक्षा करती है।
ऐसे में भारत ने स्पष्ट किया है कि चीन को वह कहीं भी, कभी भी, और किसी भी मोर्चे से परास्त करने में सक्षम है, क्योंकि 1962 एक अपवाद था, नियति नहीं।
इसके अलावा चीन एक बात और भूल रहा है, यदि भारत किसी मोर्चे पर सबसे अधिक शक्तिशाली और खतरनाक है, तो वह समुद्री मोर्चा है। इस मोर्चे पर उसने पाकिस्तान को तब बुरी तरह धोया था, जब उसके पास भारत से कहीं ज्यादा बेहतर संसाधन और शस्त्र थे। अब जब भारत के पास सभी प्रकार के अत्याधुनिक शस्त्र हैं, विश्व के अनेक शक्तिशाली देशों का कूटनीतिक समर्थन है, तो क्या चीन एक दिन भी इस मोर्चे पर टिक पाएगा?
इसके अलावा भारत निरंतर समुद्री मोर्चे पर क्वाड समूह, यानि अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया एवं जापान के साथ युद्ध अभ्यास करता है, और अंडमान निकोबार क्षेत्र भी इनके दायरे से बाहर नहीं है।
TFI के ही एक विश्लेषणात्मक रिपोर्ट के अनुसार, “Quad ग्रुप ने भारत के जरिये चीन को समुद्र के रास्ते घेरने की तैयारी कर ली है। नई दिल्ली ने इस बार ऑस्ट्रेलिया को वार्षिक नौसेना अभ्यास मालाबार में न्योता देने का निर्णय लिया है। यह अभ्यास बंगाल की खाड़ी में इस वर्ष के अंत में होगा, और इसी परिप्रेक्ष्य में अगले हफ्ते ऑस्ट्रेलिया को आधिकारिक तौर पर निमंत्रण भेजा जाएगा। तद्पश्चात अमेरिका और जापान को भी न्योता भेजा जाएगा।ऑस्ट्रेलिया इस युद्ध अभ्यास का बहुत पहले से हिस्सा बनना चाहता था, पर भारत किन्हीं कारणों से ये स्वीकृति नहीं दे पाता था। लेकिन अब चीन के विरुद्ध आक्रामक नीति के अंतर्गत भारत ने यह हिचकिचाहट बहुत पीछे छोड़ दी है।”
अब एक तरफ चीन ये सोचकर छाती चौड़ी कर रहा है कि वह भारत तिब्बत बॉर्डर पर मोर्चाबंदी करके भारत पर दबाव बनाएगा और उसे डरा धमकाकर अपनी बात मनवा लेगा। परंतु तवांग में PLA के गुंडों को सबक सिखाकर और फिर अंडमान निकोबार के ‘कमांड’ की बात याद दिलाकर कहीं न कहीं भारतीय सेना ने राजकुमार के उस बहुचर्चित संवाद को भी याद दिलाया है कि, “हम तुम्हें मारेंगे, और जरूर मारेंगे, लेकिन वो बंदूक भी हमारी होगी, गोली भी हमारी होगी और वक्त भी हमारा होगा।”