जम्मू कश्मीर में एक बार फिर से आतंकी गतिविधियां तेज हो गई है। खबरों की मानें तो प्रदेश में कई आतंकी संगठन सक्रिय हो गए हैं। पिछले कुछ दिनों में चुन-चुन कर हिंदुओं को मौत के घाट उतारने की खबरें सामने आई है। दहशतगर्दी का आलम एक बार फिर जम्मू कश्मीर को अपने आगोश में लेता दिख रहा है। सेना पर पत्थरबाजी करने वाले कश्मीरी पत्थरबाज अब आतंकियों के लिए काम करते दिख रहे हैं। आतंकी पहले खुद ही राज्य में घटनाओं को अंजाम देते थे लेकिन अब वो कश्मीरी युवाओं का सहारा ले रहे हैं। जिन्हें हाइब्रिड आतंकी की संज्ञा दी गई है। राज्य में लगातार बिगड़ रहे हालात के कारण पिछले तीन दशक से आंतकरोधी अभियान में लगे सुरक्षा बलों के सामने अब कानून-व्यवस्था को दुरुस्त करने की एक नई चुनौती खड़ी हो गई है। साथ ही उपर्युक्त घटनाओं ने घाटी में सुरक्षा की बागडोर को संभाल रही एजेंसियों को अपनी रणनीति के बारे में नए सिरे से सोचने पर मजबूर कर दिया है।
पत्थरबाज बनें कॉन्ट्रैक्ट किलर
सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक इस महीने हमले में अभी तक सात हिंदुओं की हत्या हुई है और इन हमलों को आतंकवादियों ने नहीं युवा कश्मीरियों ने अंजाम दिया है। आतंकवादियों ने पैसे और ड्रग्स का लालच देकर युवा कश्मीरियों से इस घटना को अंजाम दिलाया है। दैनिक जागरण की रिपोर्ट के मुताबिक गृहमंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा, “निर्दोष नागरिकों की चुन-चुनकर हत्या के पीछे भले ही आतंकियों का हाथ हो, लेकिन इसमें ऐसे युवाओं को इस्तेमाल किया गया है, जिनका आतंकी घटनाओं से कोई संबंध नहीं रहा है। न ही इन युवाओं ने कभी आतंकी संगठनों का दामन थामा है।“
कई अधिकारियों ने दावा किया कि जम्मू कश्मीर में हुई हत्याओं के लिए युवाओं को आतंकियों की ओर से दस-दस हजार रुपये और पिस्तौल दी गई थी। घटना को अंजाम देने के बाद उनसे पिस्तौल वापस ले ली जाती है और वे वापस सामान्य जीवन जीने लगते हैं। सुरक्षा एजेंसियों की ओर से इन्हें ‘हाइब्रिड आतंकी’ की संज्ञा दी गई हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक इस विशेष हमलों के लिए पाकिस्तानी आतंकी संगठनों द्वारा इन कश्मीरी पत्थरबाजों को पिस्तौलें दी गई और हत्या के बाद उनसे वापस ले ली गई, जिससे वे आसानी से आबादी वाले इलाकों में अपने घरों में लौट सकें और पुलिस को कभी इनपर शक भी ना हो।
स्थानीय आतंकियों से घिरे हुए हैं कश्मीर के लोग
आतंकियों के इस स्वरुप से लड़ना जरूरी है और इसके लिए सरकार को रणनीति में बदलाव भी करना होगा। खबरों की मानें तो आतंकवादी संगठन में शामिल होने के एक महीने के भीतर अधिकांश आतंकवादी रंगरूटों को मार दिया जाता है या गिरफ्तार कर लिया जाता है। जनवरी 2021 में जम्मू-कश्मीर में 52 स्थानीय आतंकवादी सक्रिय थे, जिनमें से 20 मारे गए और नौ को शामिल होने के पहले महीने के भीतर गिरफ्तार कर लिया गया। अब फिर से ऐसी स्थितियां देखने को मिल रही है जो काफी चुनौतीपूर्ण है।
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जम्मू कश्मीर में हाल ही में हुई हत्याओं को लेकर प्रदेश के आईजी ने कहा, “बड़ी संख्या में आतंकवादियों के मारे जाने और उनके समर्थन ढांचे के नष्ट होने से आतंकवादियों के आका निराश हो गए है और उन्होंने अपनी रणनीति बदल दी है और झल्लाहट में महिलाओं सहित अल्पसंख्यक समुदायों के निहत्थे पुलिसकर्मियों, राजनेताओं, नागरिकों को निशाना बनाना शुरू कर दिया है।”
ऐसी घटनाओं को अंजाम देने के लिए ही हाइब्रिड आतंवादियों का इस्तेमाल किया जा रहा है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि ऐसे आतंकियों से निपटना आतंकरोधी दस्ते के लिए मुश्किल काम है। पिछले 30 सालों से सुरक्षा एजेंसियां आतंकियों की मौजूदगी की खुफिया सूचना के आधार पर ऑपरेशन को अंजाम देती रही है, जिसमें अधिकांश मामले में मुठभेड़ में आतंकियों को मार गिराया जाता रहा है।
सरकार सर्विलांस ताकत मजबूत कर रही है लेकिन आवश्यक है कि नई रणनीति के हिसाब से बदलाव किया जाए और आतंकवादियों की कमर तोड़ी जाए। स्थानीय लोग जो आतंकियों का समर्थन कर रहें हैं, आतंकी संगठनों में शामिल हो रहे हैं या फिर आतंकियों के लिए काम कर रहे हैं, ऐसे लोगों को चुन-चुनकर निकालने की जरुरत है जिससे जम्मू कश्मीर में शांति स्थापित हो पाए।