हाशिये पर आ चुकी किसी भी संस्था का इलाज क्या है? संभवतः आप गलत व्यक्तियों को उनके पद से हटाकर स्थिति को ठीक करने की कोशिश करते हैं, लेकिन तब क्या हो जब एक ही पद पर लंबे अरसे से लोग जड़वत हो गए हों। यहां से मामला गंभीर हो जाता है। ऐसे संस्थाओ का एक ही इलाज है, उनकी आलोचना और उनकी जड़ों पर हमला!
भारत में न्यायपालिका कथित तौर पर ऐसी ही एक संवैधानिक निकाय है! आप आये दिन कई अजीबोगरीब बयान सुनते होंगे। आप के मन-मस्तिष्क में न्यायालय के फैसलों को लेकर भी कई सारी चीजें भरी होंगी, जिन्हें आप हमेशा याद भी करते होंगे। लेकिन आप सिर्फ सुन सकते हैं, अगर फैसला गलत भी है तो आप बोल इसलिए नहीं सकते हैं, क्योंकि फिर वो न्याय की पवित्रता से जोड़कर देखा जाने लगेगा। हालांकि, न्यायालय में मौजूद न्यायाधीश के चयन प्रक्रिया का क्या ही कहना। कौन क्या बनेगा, कौन कहां का जज बनेगा, वो कथित तौर पर गिनती के चंद लोगों द्वारा तय किया जाता है।
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न्यायपालिका और विधायिका की सांठगांठ को लेकर भी कई तरह के सवाल उठते रहे हैं, लेकिन कुछ दिनों पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अप्रत्यक्ष रूप से न्यायालय को कटघरे में खड़ा कर जो स्पष्ट संदेश दिया है, वह लाजवाब है। प्रधानमंत्री ने बताया कि कैसे नर्मदा बांध को पूरा करने से रोकने हेतु न्यायपालिका और पर्यावरण संरक्षण के सिपाही अवरोध उत्पन्न करते रहे। गौरतलब है कि न्यायपालिका उस समय एक ठोस निर्णय लेने से कतराती दिख रही थी।
राष्ट्रपति का स्पष्ट संकेत
अभी न्यायपालिका पीएम के इस संकेत से उबर पाती कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने एक और संकेत दे दिया है और यह वही संकेत है, जो बुनियाद को हिलाने के लिए काफी है! शनिवार को संविधान दिवस के समापन समारोह में बोलते हुए भारत के राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने न्यायपालिका में सही प्रतिभा लाने के लिए अखिल भारतीय न्यायिक सेवाओं की आवश्यकता के बारे में बात कही है।
राष्ट्रपति कोविंद ने कहा कि “न्यायपालिका की स्वतंत्रता से कोई समझौता नहीं किया जा सकता है, इस पर एक दृढ़ विचार रखते हुए, इसे थोड़ा भी कम किए बिना, उच्च न्यायपालिका के लिए न्यायाधीशों का चयन करने का एक बेहतर तरीका खोजा जा सकता है।” उन्होंने सुझाव दिया कि एक अखिल भारतीय न्यायिक सेवा हो सकती है, जो निचले स्तर से उच्च स्तर तक सही प्रतिभा का चयन, पोषण और बढ़ावा दे। उन्होंने यह भी कहा कि यह विचार नया नहीं है और परीक्षण किए बिना आधी सदी से भी अधिक समय से न्यायपालिका में लोग काम कर रहे हैं।
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राष्ट्रपति ने कहा, “मुझे यकीन है कि अन्य बेहतर सुझाव भी हो सकते हैं। अंततः इस परिवर्तन का मुख्य उद्देश्य न्याय वितरण तंत्र को मजबूत करना होना चाहिए।” जिस सभा में राष्ट्रपति महोदय ने यह बात बोलकर बिगुल बजाया है, उस कार्यक्रम में भारत के मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमना, केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश ए. एम. खानविलकर और एल. नागेश्वर राव मौजूद थे।
अपने बयानों में अत्यधिक विवेक का प्रयोग करें न्यायाधीश
राष्ट्रपति ने यह भी कहा कि जहां तीन महिला न्यायाधीशों का सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के रूप में शपथ लेना गर्व की बात है, वहीं न्यायपालिका में लैंगिक संतुलन में सुधार के लिए और भी बहुत कुछ किए जाने की आवश्यकता है। अभी न्यायपालिका के मठाधीश इस बात से उबर पाते कि न्यायाधीशों के फैसलों को लेकर भी राष्ट्रपति महोदय ने सुझाव दे दिया। राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने बीते दिन शनिवार को कहा, यह न्यायाधीशों पर निर्भर है कि वे अदालतों में अपने बयानों में “अत्यधिक विवेक” का प्रयोग करे।
उन्होंने कहा, “यह न्यायाधीशों पर भी निर्भर करता है कि वे अदालतों में अपने बयानों में अत्यंत विवेक का प्रयोग करें। अविवेकपूर्ण टिप्पणी, भले ही अच्छे इरादे से की गई हो, लेकिन वह न्यायपालिका को नीचा दिखाने के लिए संदिग्ध व्याख्याओं की जगह बनाता है।” राष्ट्रपति का यह बयान तब आया, जब वो शनिवार को उच्चतम न्यायालय द्वारा आयोजित संविधान दिवस समारोह के अवसर पर समापन भाषण को संबोधित कर रहे थे। इन भाषणों में एक संदेश छिपा है और वो यह है कि न्याय पद्धति में भारतीयता का ज्यादा से ज्यादा समावेश हो। ये भारतीय न्यायपालिका की स्वीकार्यता को और ज्यादा बढ़ाने के रूप में लिया जा सकता है।
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