सभी अटकलों पर लगाम लगाते हुए भारतीय जनता पार्टी ने दो चरणों के चुनाव के लिए अपने उम्मीदवारों की सूची निकाल दी है। वो सभी लोग जो पॉल बाबा ऑक्टोपस बन रहे थे कि कौन कहाँ जीतेगा, कहाँ लड़ेगा, सब साफ हो गया। दूसरी बात यह कि भाजपा ने यह भी बता दिया कि पार्टी कोई पकड़े या छोड़े, काम अपने तरीके से होगा। कम से कम भाजपा की सूची में जो भी लोग हैं, उसमें से 20% लोग पहली बार टिकट से लड़ रहे हैं।
खैर, इन सबके बीच जो सबसे जरूरी बात वह यह है कि भाजपा ने प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को गोरखपुर से टिकट दिया है और इस फैसले का जितना राजनीतिक महत्व है, उतना ही यह ताकत से भी जुड़ा हुआ है।
अब यह स्पष्ट हो गया है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अगले महीने गोरखपुर (शहरी) सीट से विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। भाजपा ने शनिवार दोपहर अपने उम्मीदवारों की पहली सूची जारी करते हुए योगी आदित्यनाथ को गोरखपुर से चुनाव लड़ाने का फैसला किया है।
गोरखपुर (शहरी) सीट के लिए मतदान 3 मार्च को होगा जब छठे और अंतिम चरण का चुनाव होगा। यह इलाका मुख्यमंत्री का गढ़ है और 2017 तक उन्हें लगातार पांच बार लोकसभा के लिए वोट दिया है।
टिकट बंटवारे के बाद केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने संवाददाताओं से कहा, “काफी विचार-विमर्श के बाद यह फैसला किया गयाहै और पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने अंतिम फैसला लिया है।”
उन्होने आगे कहा, “योगी जी ने कहा कि किसी भी सीट से चुनाव लड़ूंगा, जहां पार्टी मुझसे पूछती है और यह पार्टी का फैसला था।”
आदित्यनाथ ने अपने गढ़ से समाचार एजेंसी ANI को बताया, “मैं गोरखपुर से मुझे मैदान में उतारने के लिए पीएम मोदी, भाजपा प्रमुख जेपी नड्डा, (और) केंद्रीय संसदीय समिति का आभारी हूं। भाजपा ‘सबका साथ, सबका विकास’ के मॉडल पर काम करती है। भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाएगी। “
पहले ऐसी अटकलें थीं कि मुख्यमंत्री, जो पहले कभी विधानसभा चुनाव में नहीं खड़े हुए, वह अयोध्या या मथुरा में से किसी एक जगह से चुनाव लड़ सकते हैं।
भाजपा की सूची में विविधताओं की कमी नहीं है। पार्टी द्वारा नामित 107 उम्मीदवारों में से 44 ओबीसी समुदायों से हैं। जिनके वोटों को व्यापक रूप से यूपी चुनाव जीतने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके अलावा भाजपा द्वारा अनुसूचित जाति के भी 19 उम्मीदवार उतारे गए हैं। OBC और अनुसूचित जाति उत्तरप्रदेश के मजबूत वोट बैंक रहे हैं।
भाजपा ने 10 महिला उम्मीदवारों के भी नाम बताए हैं। यूपी की 403 सदस्यीय विधानसभा की अन्य 296 सीटों के लिए उम्मीदवारों की घोषणा बाद में की जाएगी।
और पढ़ें: भाजपा के लिए पूर्वांचल में जीत हासिल करना इतना आसान नहीं है, जितना लोग समझते हैं
पूर्वांचल पर कब्जा करने की तैयारी है-
कहा जाता है कि पूर्वांचल उत्तर प्रदेश की सत्ता की चाबी है। उत्तर प्रदेश की गद्दी का रास्ता यही से होकर गुजरता है, शायद इसीलिए पीएम मोदी ने विगत 8 महीनों में 6 बार पूर्वांचल का दौरा कर लिया और कई विकास परियोजनाओं का अनावरण भी किया। इसीलिए क्षेत्रीय नेता अपनी गणितीय गणना के आधार पर पार्टी बदल रहे हैं, ताकि उन्हें भी सत्ता का थोड़ा सा स्वाद मिल जाए!
वर्ष 2017 में पूर्वांचल के 26 जिलों के 156 विधानसभा सीटों में से भाजपा ने106 सीटों पर जीत हासिल की थी।
जैसे उत्तरप्रदेश में पुर्वांचल महत्वपूर्ण है, उसी प्रकार से बनारस और गोरखपुर पुर्वांचल के लिए महत्वपूर्ण है। गोरखपुर दशकों से भाजपा का गढ़ रहा है, खासकर 1980 के दशक के अंत और 1990 के दशक की शुरुआत में राम मंदिर आंदोलन के बाद से गोरखपुर में सिर्फ भाजपा की तूती बोलती रही है।
योगी आदित्यनाथ ने 1998, 1999, 2004, 2009 और 2014 में लगातार पांच बार गोरखपुर लोकसभा सीट जीती है। यह हिंदुत्व का गढ़ तब भी अजेय रहा, जब समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का दबदबा था। इसलिए भाजपा ने इस बेल्ट में योगी आदित्यनाथ को उतारकर इस गढ़ पर कब्जा करने का मन बना लिया है।
जहां एक तरफ दूसरे राजनीतिक दल के मुखिया चुनाव लड़ने से भी घबड़ा रहे हैं, वहीं योगी आदित्यनाथ ने एकदम पुराने तरीके से राजनीति करने की ठानी है।
एक तरफ बहुजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा ने कह दिया है कि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगी तो दूसरी ओर सपा के अखिलेश यादव ने भी चुनाव ना लड़ने का मन बना लिया है।
SC मिश्रा ने कहा है कि “मैं राज्यसभा का सदस्य हूं और मायावती को तीन राज्यों में पार्टी की चुनावी तैयारियों की समीक्षा करनी है। हम विधानसभा चुनाव नहीं लड़ रहे हैं।”
असल में इन नेताओं को डर है। वह अपनी साख को दांव पर नहीं लगाना चाहते हैं। वहीं दूसरी ओर योगी आदित्यनाथ एकदम रास्ते पर चल रहे हैं। सपा और बसपा MLC के रास्ते विधानसभा में घुसने का ख्वाब लेकर चले हैं तो दूसरी ओर योगी आदित्यनाथ को MLA वाला रास्ता ही सही दिख रहा है।
जहां एक ओर बाकी के राजनीतिक दल उथल-पुथल में हैं, वहीं भाजपा ने सब कुछ स्पष्ट करते हुए चुनाव लड़ने का मन बनाया है। यही अंतर योगी आदित्यनाथ की स्वीकार्यता बताने के लिए काफी है।